सूर्यका मेषादि द्वादश राशियोंपर जब संक्रमण होता है, तब संवत्सर बनता है, जो
सौर वर्ष कहलाता है । जिस मासमे किसी राशिपर संक्रमण नही होता, वह पुरूषोत्तम मास कहलाता है । इस मासमे नियमसे रहकर
भगवानकी विधीपूर्वक पूजा करनेसे भगवान अत्यंत प्रसन्न होते है, और भक्तिपूर्वक भगवानकी
पूजा करनेवाला पृथ्वीपर सब प्रकारके सुख भोगकर मृत्युके बाद भगवानके दिव्य गोलोकमे
निवास करता है । इस मासमे तीर्थोंमे, घरोंमे, और मंदिरोंमे जगह-जगह भगवानकी कथा
होनी चाहिये । भगवानका विशेष रूपसे पूजन होना चाहिये । व्रत-नियमदिका आचरण करते
हुए दानधर्म करना चाहिये । इस मासमे गेहू, चावल, सफेद धान, मूग, जौ, तिल,
मटर, ककडी, केला, कटहल, आम, पीपल, जीरा, सोंठ, इमली, सुपारी, आवला, सेंधा नमक आदि
हविष्यान्नका ही भोजन करना चाहिये । इस मासमे जमीनपर सोना, पत्तलमे भोजन करना,
दिनभर उपवास करके शामको एक वक्त खाना, रजस्वला स्त्रीसे दूर रहना चाहिये ।
प्रात:काल सूर्योदयसे पूर्व उठकर शौच, स्नान, संध्या आदि अपने-अपने अधिकारके
अनुसार नित्यकर्म करके भगवानका स्मरण करना चाहिये । इस मासमे दररोज भागवतका पाठ
करना महान पुण्यदायक है । एक लाख तुलसीपत्रसे शालग्राम भगवानका पूजन करनेसे अनंत
पुण्य प्राप्त होता है । विधीपूर्वक षोडशोपचारसे नित्य भगवानका
पूजन करना चाहिये । इस मासमे दररोज इस मंत्रका बार-बार जप करनेसे पुरूषोत्तम
भगवानकी प्राप्ती होती है,
गोवर्धनधरं वंदे गोपालं गोपरूपिणम् । गोकुलोत्सवमीशानं गोविंदं गोपिकाप्रियम्
॥
मंत्र जपते समय नवीन मेघश्याम द्विभुज मुरलीधर पीतवस्त्रधारी श्रीराधिकाजीके
सहित श्री पुरूषोत्तम भगवानका ध्यान करना चाहिये ।
श्रध्दाभक्तिपूर्वक भगवानका नामजप, स्थान-स्थानमे भगवान्-नाम संकीर्तन,
गोरक्षाके लिये दान, विधवा-अनाथ-असहाय लोगोंकी निष्काम सेवा, धार्मिक आचरणोंका
पालन, धात्री स्नान, ब्राह्मणोंको दान आदि इस मासमे विशेष
रूपसे करना चाहिये ।
बृहद् नारदीय पुराणामे इस मासमे किसका दान करनेसे क्या लाभ होता है इसका उपदेश भगवान श्रीकृष्णने
नारदजीको किया था । जो इस प्रकार
है-- ब्राह्मणको दीप-दान करनेसे सौंदर्य, संपत्ती, ज्ञान और मोक्षकी प्राप्ती
होती है । सुवर्ण-दान करनेसे सभी मनोरथ
पुर्ण होते है । गो-दान
करनेसे पापमुक्ती होती है । रजत-दान करनेसे
पितरोंको संतुष्टी प्राप्त
होती है । ताम्र-दान करनेसे महादेव
प्रसन्न होते है । हिरे-माणिक दान करनेसे
यश-किर्ती प्राप्त होती है । मोती-दान करनेसे मुक्ती
प्राप्त होती है । कंबल-दान
करनेसे पापक्षय होता है ।
वस्त्र दान करनेसे शांती
प्राप्त होती है । लोकर-वस्त्र
दान करनेसे भय
मुक्तता प्राप्त होती है ।
अन्नदान करनेसे सर्व सिध्दीकी प्राप्ती
होती है । जल दान करनेसे
अक्षय पुण्य प्राप्त
होते है । पादत्राण दान करनेसे यम-यातनासे
मुक्तता प्राप्त होती है ।
धृतपात्र दान करनेसे
अक्षय सूर्यलोककी प्राप्ती
होती है । तीलपात्र दान करनेसे रूद्रलोककी प्राप्ती
होती है । सप्तधान दान करनेसे सप्तर्षी
प्रसन्न होते है । धृत-विलायची
युक्त लडू दान करनेसे गोलोककी
प्राप्ती होती है । धृत-पक्व मोदक
दान करनेसे कार्य
सिध्दीकी प्राप्ती होती है । भागवत ग्रंथ
दान करनेसे तिनो कुलोंका(पिताके
कुल्, माताके कुल और पत्नीके कुल)
उध्दार होता है । पती-पत्नीको
अनारसे पात्रासहीत
दान करनेसे जन्म-मरणके
दुष्ट चक्रसे मुक्ती मिलती है ।
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