Friday, 2 March 2018

पुरूषोत्तम मास




सूर्यका मेषादि द्वादश राशियोंपर जब संक्रमण होता है, तब संवत्सर बनता है, जो सौर वर्ष कहलाता है । जिस मासमे किसी राशिपर संक्रमण नही होता, वह पुरूषोत्तम मास कहलाता है । इस मासमे नियमसे रहकर भगवानकी विधीपूर्वक पूजा करनेसे भगवान अत्यंत प्रसन्न होते है, और भक्तिपूर्वक भगवानकी पूजा करनेवाला पृथ्वीपर सब प्रकारके सुख भोगकर मृत्युके बाद भगवानके दिव्य गोलोकमे निवास करता है । इस मासमे तीर्थोंमे, घरोंमे, और मंदिरोंमे जगह-जगह भगवानकी कथा होनी चाहिये । भगवानका विशेष रूपसे पूजन होना चाहिये । व्रत-नियमदिका आचरण करते हुए दानधर्म करना चाहिये । इस मासमे गेहू, चावल, सफेद धान, मूग, जौ, तिल, मटर, ककडी, केला, कटहल, आम, पीपल, जीरा, सोंठ, इमली, सुपारी, आवला, सेंधा नमक आदि हविष्यान्नका ही भोजन करना चाहिये । इस मासमे जमीनपर सोना, पत्तलमे भोजन करना, दिनभर उपवास करके शामको एक वक्त खाना, रजस्वला स्त्रीसे दूर रहना चाहिये ।
प्रात:काल सूर्योदयसे पूर्व उठकर शौच, स्नान, संध्या आदि अपने-अपने अधिकारके अनुसार नित्यकर्म करके भगवानका स्मरण करना चाहिये । इस मासमे दररोज भागवतका पाठ करना महान पुण्यदायक है । एक लाख तुलसीपत्रसे शालग्राम भगवानका पूजन करनेसे अनंत पुण्य प्राप्त होता है । विधीपूर्वक षोडशोपचारसे नित्य भगवानका पूजन करना चाहिये । इस मासमे दररोज इस मंत्रका बार-बार जप करनेसे पुरूषोत्तम भगवानकी प्राप्ती होती है,
गोवर्धनधरं वंदे गोपालं गोपरूपिणम् । गोकुलोत्सवमीशानं गोविंदं गोपिकाप्रियम् ॥
मंत्र जपते समय नवीन मेघश्याम द्विभुज मुरलीधर पीतवस्त्रधारी श्रीराधिकाजीके सहित श्री पुरूषोत्तम भगवानका ध्यान करना चाहिये ।
श्रध्दाभक्तिपूर्वक भगवानका नामजप, स्थान-स्थानमे भगवान्-नाम संकीर्तन, गोरक्षाके लिये दान, विधवा-अनाथ-असहाय लोगोंकी निष्काम सेवा, धार्मिक आचरणोंका पालन, धात्री स्नान, ब्राह्मणोंको दान आदि इस मासमे विशेष रूपसे करना चाहिये ।
बृहद् नारदीय पुराणामे इस मासमे किसका दान करनेसे क्या लाभ होता है इसका उपदेश  भगवान  श्रीकृष्णने  नारदजीको किया था ।  जो इस प्रकार है-- ब्राह्मणको दीप-दान करनेसे  सौंदर्य,  संपत्ती,  ज्ञान  और मोक्षकी  प्राप्ती  होती है । सुवर्ण-दान  करनेसे सभी  मनोरथ  पुर्ण  होते है ।  गो-दान  करनेसे  पापमुक्ती  होती है । रजत-दान  करनेसे  पितरोंको  संतुष्टी  प्राप्त  होती है । ताम्र-दान  करनेसे  महादेव  प्रसन्न  होते है । हिरे-माणिक दान करनेसे यश-किर्ती  प्राप्त  होती है । मोती-दान  करनेसे मुक्ती  प्राप्त  होती है ।  कंबल-दान  करनेसे  पापक्षय  होता है ।  वस्त्र  दान  करनेसे शांती  प्राप्त  होती है ।  लोकर-वस्त्र  दान  करनेसे  भय  मुक्तता  प्राप्त  होती है ।  अन्नदान करनेसे सर्व  सिध्दीकी  प्राप्ती  होती है ।  जल  दान  करनेसे अक्षय  पुण्य  प्राप्त  होते है ।  पादत्राण  दान  करनेसे  यम-यातनासे  मुक्तता  प्राप्त  होती है ।  धृतपात्र  दान  करनेसे  अक्षय  सूर्यलोककी  प्राप्ती  होती है । तीलपात्र  दान  करनेसे रूद्रलोककी  प्राप्ती  होती है ।  सप्तधान  दान  करनेसे  सप्तर्षी  प्रसन्न  होते है ।  धृत-विलायची  युक्त  लडू  दान  करनेसे  गोलोककी  प्राप्ती  होती है । धृत-पक्व  मोदक  दान  करनेसे  कार्य  सिध्दीकी  प्राप्ती  होती है । भागवत  ग्रंथ  दान  करनेसे तिनो कुलोंका(पिताके कुल्, माताके कुल और पत्नीके कुल)  उध्दार  होता है ।  पती-पत्नीको    अनारसे  पात्रासहीत  दान  करनेसे  जन्म-मरणके  दुष्ट  चक्रसे मुक्ती  मिलती है ।

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