पौषमास मे सात प्रमुख व्रतपर्वोत्सव है ।
(१)मकरसंक्राति(१४जनवरी)
मकरसंक्रातिपर्व प्राय:
प्रतिवर्ष १४जनवरीको होता है । इस दिन सूर्य अपनी कक्षाओंमे परिवर्तन कर
दक्षिणायनसे उत्तरायण होकर मकर-राशिमे प्रवेश करते है । जिस राशिमे सूर्यकी
कक्षाका परिवर्तन होता है, उसे संक्रमण या संक्राति कहा जाता है । मकरसंक्रातिपर्वमे
स्नान-दानका विशेष महत्त्व है । मकरसंक्रातिसे सूर्यकी गति तिल-तिल बढती है,
इसलिये इस दिन तिलके विभिन्न मिष्टान्न बनाकर एक-दूसरेको वितरित करते हुए
शुभकामनाए देते है । मकरसंक्रातिसे दिन बढने लगता है और रात्रिकी अवधि कम होती
जाती है । इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राध्द तथा अनुष्ठान करना चाहिए । इस दिन
किया हुआ दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है ।
(२)आरोग्य व्रत(पौष शुक्ल
द्वितीया)
पौष शुक्ल द्वितीयाको
सृदृढ आरोग्य प्राप्तीके लिये आरोग्य व्रत किया जाता है । इस दिन गोश्रृंगोदक(गायोंकी
सीगोंको धोकर लिये हुए जल) से स्नान करके सफेद वस्त्र धारणकर सूर्यास्तके बाद
बालेंदु(द्वितीयाके चंद्रमा) का गंध आदिसे पूजन करे । चंद्रमाका अस्त होने तक गुड,
दही, खीर और लवणसे ब्राह्मणको संतुष्टकर केवल गोरस(छाछ) पीकर जमीनपर शयन करे ।
पारणके दिन इक्षुरससे भरा घडा, सुवर्ण, और वस्त्र ब्राह्मणको देकर उन्हे भोजन
करानेसे रोगोंकी निवृती और आरोग्यप्राप्ती होती है ।
(३)मार्तंड सप्तमी व्रत(पौष
शुक्ल सप्तमी)
पौष शुक्ल सप्तमीको भगवान
सूर्यके उद्देश्यसे हवन करके गोदान करनेसे उत्तम फल प्राप्त होता है । इस दिन भगवान
सूर्यकी आराधनाके कारण इस व्रतको मार्तंड सप्तमी व्रत कहते है ।
(४)एकादशीव्रत(पौष शुक्ल एकादशी)
पौष शुक्ल एकादशीको भगवान श्रीकृष्णकी
उपासना करके गोदान करनेसे उत्तम पुत्र प्राप्ती होती है । इसलिये इसको पुत्रदा एकादशी
कहते है । इस दिन उपवास करके रात्रिको जागरण करके भगवान श्रीकृष्णका संकिर्तन करना
चाहिये ।
(५)त्रयोदशीव्रत(पौष शुक्ल
त्रयोदशी)
पौष शुक्ल त्रयोदशीको भगवान
विष्णुकी निरंतर उपासना करके घृतदान करनेसे कल्याणकी प्राप्ती होती है । इस दिन एकभुक्त
उपवास करके रात्रिको जागरण करके भगवान विष्णुका संकिर्तन करना चाहिये ।
(६) एकादशीव्रत(पौष कृष्ण एकादशी)
पौष कृष्ण एकादशीको भगवान
श्रीकृष्णकी उपासना करके गोदान करनेसे सभी कार्य सफल होते है । इसलिये इसको सफला
एकादशी कहते है । इस दिन उपवास करके रात्रिको जागरण करके भगवान श्रीकृष्णका
संकिर्तन करना चाहिये ।
(७)सुरूपा द्वादशीव्रत(पौष
कृष्ण द्वादशी)
पौष कृष्ण द्वादशीको भगवान
श्रीकृष्णकी उपासना करके गोदान करनेसे सौंदर्य, सुख, संतान, और सौभाग्यप्राप्ती
होती है । इसलिये इसको सुरूपा द्वादशीव्रत कहते है । इस दिन उपवास करके रात्रिको
जागरण करके भगवान श्रीकृष्णका संकिर्तन करना चाहिये ।
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