आश्विनमास मे चार प्रमुख व्रतपर्वोत्सव है ।
(१)शारदीय नवरात्र पर्व (आश्विनमास
शुक्ल प्रतिपदा)
आश्विनमास शुक्ल प्रतिपदासे
नवमी तक शारदीय नवरात्र पर्व होता है । शारदीय नवरात्रमे शक्तिकी उपासना होती है ।
यम-नियमका पालन करते हुए भगवती दुर्गाकी आराधना करे । जितने मात्राकी श्रध्दा होती
है, उतनी मात्रामे फल मिलता है । नौ रात्रियोंतक व्रत करनेसे व्रत पूर्ण होता है ।
दुर्गा पूजामे प्रतिदिन वैशिष्ट्य होता है । प्रतिपदाको केशसंस्कारक द्रव्य—आवला,
सुगंधित तेल, आदिसे दुर्गाकी पूजा करे । द्वितीयाको बाल बाधने-गूधनेवाले सूतसे,
तृतीयाको सिंदूरसे, चतुर्थीको तिलक्, नेत्रांजनसे, पंचमीको चंदन और आभूषणसे,
षष्ठीको पुष्पमालासे, सप्तमीको ग्रहमध्यपूजनसे, अष्टमीको सर्वांग पूजनसे नवमीको
महापूजा और कुमारी–पुजन करे । दशमीको ब्राह्मण दक्षिणा सहित भोजन करवाये । इस व्रतसे
ऎश्वर्य, विद्या, मोक्षकी प्राप्ती होती है ।
(२) विजया दशमी (आश्विनमास
शुक्ल दशमी)
विजया दशमीका त्योहार
वर्षा-ऋतुकी समाप्ती तथा शरत-ऋतुके आरंभका सूचक है । इस दिन ब्राह्मण सरस्वती
पूजन, क्षत्रिय शस्त्र पूजन, वैश्य लक्ष्मी पूजन करते है । सायंकालमे सीम्मोल्लंघन
करे । इस दिन श्रीरामजीने रावणका वध किया था, इसलिये विजया दशमी कहा जाता है ।
(३) कोजागर व्रत (आश्विनमास पूर्णिमा)
इस दिन महालक्ष्मी
रात्रीमे देखती है, कौन जाग रहा है, उसे धन देती है, इसलिये कोजागर व्रत कहा
जाता है । इस दिन महालक्ष्मीका पूजन करके दिनभर उपवास करे । रात्रीके समय घृतपूरित
और गंध-पुष्पोंसे पूजित यथाशक्ति दिपकोंको प्रज्वलित करके तुलसी, अश्वत्थवृक्षोंके
नीचे रखे । कोजागर व्रतसे मनुष्य संपत्तीवान होता है।
(४) शरतपूर्णिमा (आश्विनमास पूर्णिमा)
आश्विनमास पूर्णिमाके
रात्रिमे चांदनीमे अमृतका निवास रहता है, इसलिये उसकी किरणोंसे अमृतत्व और्
आरोग्य्की प्राप्ती सुलभ होती है । इस दिन
प्रात:काल अपने आराध्य देवको सुंदर वस्त्राभुषणसे सुशोभित करके उनका यथाविधि षोडशोपचार
पूजन करे । अर्धरात्रिके समय गो-दुग्ध्से बनी खीरका भगवानको भोग लगाए । तद नंतर
खीरसे भरे पात्रको एक घंटातक खुली चांदनीमे रखे । पूर्ण चंद्रमाका पूजन करके
प्रसादरूपी खीरका पान करे । इस दिन
कास्यपात्रमे घी भरकर सुवर्णसहित ब्राह्मणको दान देनेसे मनुष्य ओजस्वी होता है ।
इसी दिन महारास लिला हुई थी, इसलिये इसे रासोत्सव भी मनाया जाता है ।
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