भाद्रपद मास मे नौ प्रमुख व्रतपर्वोत्सव है ।
१)हरितालिकाव्रत (भाद्रपद मास शुक्ल तृतीया)
भाद्रपद शुक्ल तृतीयाको
सौभाग्यवती स्त्रिया अपने अखंड सौभाग्यकी रक्षाके लिये तथा कुमारी कन्याए अपने
मनोवांछित वरकी प्राप्तीके लिये बडी श्रध्दा, विश्वास और लगनके साथ हरितालिकाव्रत
करती है । इस पूरे दिन निष्ठावाली स्त्रिया जलतक नही ग्रहण करती । शिव-पार्वतीका
पूजन करती है । दूसरे दिन प्रात:काल स्नानके पश्चात स्त्रिया सौभाग्यद्रव्य ब्राह्मणको
दान करती है । ब्राह्मणको सुग्रास भोजन कराकर स्वयं अन्न ग्रहण कर व्रतका पारण
करती है ।
२)गणेशचतुर्थी (भाद्रपद मास शुक्ल चतुर्थी)
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थीके
दिन नक्तव्रत करते है । यह दिन सिध्दविनायक चतुर्थीके नामसे जाना जाता है । इस दिन किया गया दान,
स्नान, उपवास और अर्चन गणेशजी कृपासे सौ गुना हो जाता है, परंतु इस चतुर्थीको चंद्रदर्शन निषेध किया गया है । इस
दिन चंद्रदर्शनसे मिथ्या कलंक लगता है । इस
दिन प्रात:काल स्नानादिके बाद गणेशजीका मुर्ती बनाकर यथाविधि षोडशोपचार पूजन करे ।
हररोज इक्कीस मोदकका गणेशजीको भोग लगाकर ब्राह्मणको दान करे । यह दस दिनका व्रत है
। भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशीके दिन गणेशजीके मुर्तीका विसर्जन करे । इस व्रतसे मनुष्यका दु:ख
नष्ट होता है ।
३)ऋषीपंचमी (भाद्रपद मास
शुक्ल पंचमी)
इस दिन किये जाने व्रतको ऋषीपंचमी
व्रत कहते है । यह व्रत ज्ञात-अज्ञात पापोंके शमनके लिये किया जाता है, अत:
स्त्री-पुरूष दोनो इस व्रत करते है । इस व्रतमे सप्तर्षीयों सहित अरुन्धतीका पूजन
होता है, इसलिये इसे ऋषीपंचमी कहते है । इस दिन प्रात:कालसे मध्यान्ह पर्यंत उपवास
करके स्नान करे, पंचगव्यका पान करे । कलशकी पूजा करे, कलशके पास ही अष्टदल कमल
बनाकर उसके दलोमे कश्यप, अत्रि, भरद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि तथा वसिष्ठ
इन सप्तर्षीयों और वसिष्ठ पत्नी देवी अरुन्धतीकी प्रतिष्ठा करे । सबका यथाविधि
षोडशोपचार पूजन करे । कलश और यथाशक्ति ब्राह्मणको दान करे । इस व्रतमे हलसे जुते हुए खेतका अन्न
खाना वर्ज्य है । ब्राह्मण भोजन कराकर ही स्वयं प्रसाद ग्रहण करे ।
४) श्रीराधाजन्माष्टमी
(भाद्रपद मास शुक्ल अष्टमी)
भाद्रपद शुक्ल अष्टमीको मध्यान्हकालमे
श्रीराधाजीका यज्ञभुमीमे प्राकट्य हुआ था । इसलिये यह श्रीराधाजन्माष्टमीव्रत है ।
इस व्रतसे बहुत बडे-बडे पाप तुरंत नष्ट होते है । इस दिन प्रात:काल स्नानादि करके श्रीराधाकृष्णकी
मुर्तीकी प्रतिष्ठा करे । यथाविधि षोडशोपचार पूजन करे, भक्तीमे दत्तचित्त होकर
ध्यान करे । दिनभर श्रीराधाकृष्णका स्मरण करके रातको जागरण करे । दूसरी कोई वार्ता
न करे । श्रीराधाकृष्णका संकिर्तन करे । जो मनुष्य नित्य निरंतर राधा-राधा कहता है,
स्मरण करता है, वह सब तीर्थोंके संस्कारसे युक्त होकर सब प्रकारकी विद्या
प्राप्तीमे प्रयत्नवान बनता है । सुखी, मानी, धनी और सर्वगुणसंपन्न होता है,
धर्मार्थीको धर्म प्राप्त होता है, अर्थार्थीको अर्थ प्राप्त होता है, कामार्थीको
पूर्णकाम प्राप्त होता है, मोक्षार्थीको मोक्ष प्राप्त होता है,
५) भागवत सप्ताह (भाद्रपद
मास शुक्ल नवमीसे पुर्णिमा तक)
भाद्रपद शुक्ल नवमीसे
पुर्णिमा तक भागवत सप्ताह करते है । व्यासनंदन शुकदेवजीने परिक्षितराजाको भाद्रपद शुक्ल
नवमीसे पुर्णिमा तक भागवत का उपदेश किया था । यह सात दिन एकाग्र होकर श्रध्दासे भागवत
उपदेश श्रवण करके परिक्षितराजाको मोक्ष प्राप्त हुआ था ।
इसलिये भाद्रपद शुक्ल
नवमीसे पुर्णिमा तक भागवत सप्ताह आयोजित करे, उपदेशज्ञान आत्मसात करे और मोक्ष प्राप्त
करे, जो मनुष्यमात्रका एकमात्र लक्ष्य है ।
६) दशावतार व्रत (भाद्रपद
मास शुक्ल दशमी)
भाद्रपद शुक्ल दशमीको
दशावतारकी पूजा करके दशावतार व्रत करते है । इस दिन प्रात:काल पवित्र नदीमे स्नान
करके पितरोंका तर्पण करे । मत्स्य, कच्छ,
वराह, नृसिंह, वामन, परशूराम, श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध, कल्कि इन
दशावतारोंकी प्रतिष्ठा करे । यथाविधि षोडशोपचार पूजन करे, भक्तीमे दत्तचित्त होकर ध्यान करे । प्रथम वर्ष अपूपका भोग
लगाये । द्वितीय वर्षमे खीरका भोग लगाये । तृतीय वर्षमे पुरणपोलीका भोग लगाये ।
चतुर्थ वर्षमे मोदकका भोग लगाये । पाचवे वर्षमे सत्यनारायण प्रसादका भोग लगाये । छ्ठे
वर्षमे नारलीभातका भोग लगाये । सातवे वर्षमे शिकरणका भोग लगाये । आठवे वर्षमे
श्रीखंडका भोग लगाये । नवे वर्षमे बासुंदीका भोग लगाये । दसवे वर्षमे अपूपका भोग
लगाये । हर बरस दस ब्राह्मणोंको दक्षिणासहित भोजन कराए । इसप्रकार दस वर्षोंतक व्रत
करे । इस व्रतसे विष्णुलोककी प्राप्ती होती है ।
७) वामनजयंती (भाद्रपद मास
शुक्ल द्वादशी)
भाद्रपद शुक्ल द्वादशीको मध्यान्हकालमे
भगवान वामनका अवतार हुआ है । इसलिये इसी दिन वामनद्वादशी व्रत करते है । इस दिन
प्रात:काल स्नान करके भगवान विष्णुका चिंतन करे । मध्यान्हकालमे भगवान वामनके
मुर्तीकी प्रतिष्ठा करे । यथाविधि षोडशोपचार पूजन करे, भक्तीमे दत्तचित्त होकर ध्यान करे । ब्राह्मणको भगवान वामन
समझकर ब्राह्मणकी यथाविधि षोडशोपचार पूजन करे । दक्षिणा देकर भिक्षा भोजन दिजीये ।
स्वयं केवल फलाहार करके उपवास करे । इस व्रत करनेसे भगवानका दर्शन होता है ।
८)अनंत चतुर्दशी (भाद्रपद
मास शुक्ल चतुर्दशी)
भाद्रपद मास शुक्ल
चतुर्दशीको अनंत चतुर्दशी कहते है और अलोना(नमक रहित) व्रत किया जाता है ।
पूर्णिमाका समायोग होनेसे इसका फल और बढ जाता है । इस दिन पक्वान्नका नेवेद्य लेकर
पवित्र नदीतटपर जाकर स्नान करे । नदीतटपर
कलश स्थापित कर उसकी पूजा करे । कलशपर भगवान विष्णुकी मुर्तीकी प्रतिष्ठा करे ।
यथाविधि षोडशोपचार पूजन करे, मुर्तीके
संमुख चौदह ग्रंथियुक्त अनंतसूत्र(पीला दोरा) रखे । ॐअनंताय नम: इस नाममंत्रका १०८
बार जप करे । उस अभिमंत्रित अनंतसूत्रको
पुरूष दाहिने हाथ और स्त्री बाये हाथमे बांध ले । ब्राह्मणको पक्वान्नका भोजन दक्षिणासहित
करवाये । स्वयं प्रसाद ग्रहण करे और भगवान अनंतका ध्यान करते हुए घर जाना ।
९) पितृपक्ष ( भाद्रपद मास
कृष्ण प्रतिपदासे अमावस्यातक)
इन पंद्रह दिनोंमे
पितरोंको जल देकर उनकी मृत्युतिथीपर श्राध्द करे । पितरोंका ऋण श्राध्दों
द्वारा चुकाया जाता है । श्राध्दमे यथाशक्ती दान देकर ब्राह्मणोंको भोजन करवाये । पिंडदान
करनेवाला दिर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, बल, लक्ष्मी, धन-धान्य प्राप्त करता है ।
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