माघ मासमे छ: प्रमुख
व्रतपर्वोत्सव है ।
(१)वसंतपंचमी(माघ शुक्ल पंचमी)
माघ शुक्ल पंचमीको सरस्वती-पूजनका महत्त्व अनुपम है । वसंतपंचमी सरस्वतीका
आविर्भाव-दिवस है । प्रात:काल उठकर कलशकी स्थापना करके सरस्वतीकी पूजा करे ।
वेदोक्त अष्टाक्षरयुक्त सरस्वतीके मूलमंत्रका पठण करे । (मूलमंत्र--श्रीं ह्रीं
सरस्वत्यै स्वाहा) तदनंतर सरस्वतीकी स्तुति करे ।
या कुन्देन्दु तुषारहार
धवला या शुभ्रवस्त्रावृता । या वीणावर
दण्ड मण्डितकरा या
श्वेतपद्मासना । ।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभि
र्देवैः सदा वंदिता । मां
पातु सरस्वती भगवती
निःशेषजाड्यापहा । ।
इसी प्रकार सरस्वतीकी आराधना करके विद्या प्राप्त होती है । महर्षी वाल्मीकि,
व्यास, वसिष्ठ, विश्वामित्र तथा शौनक आदि ऋषी सरस्वतीकी आराधना करके विद्यासंपन्न
हुए है ।
(२)अचलासप्तमी व्रत(माघ शुक्ल सप्तमी)
अचलासप्तमी पुराणोंमे रथ,
सूर्य, भानु, अर्क आदि अनेक नामोंसे विख्यात है और उन-उन नामोंसे अलग-अलग साधनाए
बताई गयी है, जिनके पालनसे सभी अभिलाषाए पूरी होती है । प्रात:कालमे नदीमे स्नान
करके सूर्यकी आराधना करके नदिमे दिपदान करना यही इस व्रतकी मुख्य साधना है ।
ब्राह्मणको दक्षिणासहित भोजन करवाये । जो एक दिन अचलासप्तमीका व्रत करता है, उसे
संपूर्ण माघस्नानके फल मिलता है, व्रतके दिन केवल फलाहार करनेका विधान है । अचलासप्तमीका व्रत करनेसे मनुष्यका कल्याण होता
है ।
(३)भीष्माष्टमी व्रत(माघ शुक्ल अष्टमी)
माघ शुक्ल अष्टमीको
बालब्रह्मचारी भीष्मपितामहने सूर्यके उत्तरायण होनेपर अपने प्राण छोडे थे । उनकी
पावन स्मृतीमे यह पर्व मनाया जाता है । प्रात:कालमे नदीमे स्नान करके भीष्म पितामहके
निमीत्त हाथमे तिल, जल आदि लेकर अपसव्य और दक्षिणाभिमुख होकर तर्पण करे । तदनंतर
सव्य होकर सूर्यको अर्घ्य दे । जो इस भीष्माष्टमी व्रत करता है, वह सुंदर और गुणवान संतति प्राप्त करता है, उस दिन श्राध्दका व्रत करनेका विधान है । इस व्रत करनेसे मनुष्यके एक वर्षके पाप नष्ट
होते है ।
(४)माघी पूर्णिमा व्रत(माघ
पूर्णिमा)
माघमासकी पूर्णिमा
तीर्थस्थलोंमे स्नान-दानादिके लिये परम फलदायिनी है । तीर्थराज प्रयागमे इस दिन
स्नान, दान, गोदान एवं यज्ञका अनंत फल मिलता है । प्रात:काल स्नान करके विष्णुका
पूजन करे । फिर पितरोंका श्राध्द करे । असमर्थोंको भोजन, वस्त्र, तथा आश्रय दे ।
तिल, कंबल, कपास, गुड, घी, मोदक, जूते, फल, अन्न, यथाश्क्ति सुवर्ण्, रजत आदिका
दान दे तथा पूरे दिनका व्रत रखकर ब्राह्मणोंको भोजन दे और सत्संग एवं कथाकीर्तनम
दिन-रात बिताकर दूसरे दिन पारण करे । इस दिन यदि शनि मेषराशिपर, गुरु और चंद्रमा
सिंहराशिपर तथा सूर्य श्रवणनक्षत्रपर हो तो महामाघी पूर्णिमा योग होता है, जो स्नान-दानादिके
लिये अक्षय फलदायिनी होती है ।
(५)षटतिला एकादशी व्रत(माघ
कृष्ण एकादशी )
इस दिन छ: प्रकारसे
तिलोंका उपयोग किया जाता है, इसीलिये इसे षटतिला कहा जाता है । इस दिन (१)तिलोंके
जलसे स्नान, (२)तिलका उबटन, (३)तिलसे हवन, (४) तिलोंके जलका पान, (५)तिलका भोजन, (६)तिलका दान करनेसे समस्त पापोंका नाश
होता है । इस दिन काले तिल तथा काली गायके दानका भी बडा माहात्म्य है । प्रात:काल
स्नान करके श्रीकृष्णका निरंतर जप करे, दिनभर उपवास करे, रात्रिमे जागरण तथा तिलसे
हवन करे, भगवानके पूजन करे । द्वादशीको ब्राह्मण भोजन कराकर पारण करे । इस व्रतसे
सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है ।
(६)मौनी अमावस्या व्रत(माघ
अमावस्या)
इस पवित्र तिथिपर मौन रहकर
स्नान-दान करनेका विशेष महत्त्व है । इस दिन त्रिवेणी अथवा गंगातटपर स्नान-दानकी
अपार महिमा है । प्रात:काल स्नान करके तिल, तिलके लड्डू, तिलका तेल, आवला, वस्त्र
आदिका दान करना चाहिये । ब्राह्मणको दक्षिणासहित भोजन देना चाहिये । इस दिन यदि रविवार, व्यतिपात और श्रवणनक्षत्र
हो तो अर्धोदययोग होता है, इस योगमे सभी स्थानोंका जल गंगातुल्य होता है, इस योगमे
थोडा किये हुए स्नान-दानका फल मेरूसमान होता है ।
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