Saturday, 17 March 2018

माघ मास



माघ मासमे छ: प्रमुख व्रतपर्वोत्सव है ।
(१)वसंतपंचमी(माघ शुक्ल पंचमी)
माघ शुक्ल पंचमीको सरस्वती-पूजनका महत्त्व अनुपम है । वसंतपंचमी सरस्वतीका आविर्भाव-दिवस है । प्रात:काल उठकर कलशकी स्थापना करके सरस्वतीकी पूजा करे । वेदोक्त अष्टाक्षरयुक्त सरस्वतीके मूलमंत्रका पठण करे । (मूलमंत्र--श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा) तदनंतर सरस्वतीकी स्तुति करे । 
या  कुन्देन्दु  तुषारहार  धवला  या  शुभ्रवस्त्रावृता । या  वीणावर  दण्ड  मण्डितकरा  या  श्वेतपद्मासना । ।
या  ब्रह्माच्युत  शंकरप्रभृतिभि  र्देवैः  सदा  वंदिता । मां  पातु  सरस्वती  भगवती  निःशेषजाड्यापहा । ।
इसी प्रकार सरस्वतीकी आराधना करके विद्या प्राप्त होती है । महर्षी वाल्मीकि, व्यास, वसिष्ठ, विश्वामित्र तथा शौनक आदि ऋषी सरस्वतीकी आराधना करके विद्यासंपन्न हुए है ।

(२)अचलासप्तमी व्रत(माघ शुक्ल सप्तमी)
अचलासप्तमी पुराणोंमे रथ, सूर्य, भानु, अर्क आदि अनेक नामोंसे विख्यात है और उन-उन नामोंसे अलग-अलग साधनाए बताई गयी है, जिनके पालनसे सभी अभिलाषाए पूरी होती है । प्रात:कालमे नदीमे स्नान करके सूर्यकी आराधना करके नदिमे दिपदान करना यही इस व्रतकी मुख्य साधना है । ब्राह्मणको दक्षिणासहित भोजन करवाये । जो एक दिन अचलासप्तमीका व्रत करता है, उसे संपूर्ण माघस्नानके फल मिलता है, व्रतके दिन केवल फलाहार करनेका विधान है ।  अचलासप्तमीका व्रत करनेसे मनुष्यका कल्याण होता है ।

(३)भीष्माष्टमी व्रत(माघ शुक्ल अष्टमी)
माघ शुक्ल अष्टमीको बालब्रह्मचारी भीष्मपितामहने सूर्यके उत्तरायण होनेपर अपने प्राण छोडे थे । उनकी पावन स्मृतीमे यह पर्व मनाया जाता है । प्रात:कालमे नदीमे स्नान करके भीष्म पितामहके निमीत्त हाथमे तिल, जल आदि लेकर अपसव्य और दक्षिणाभिमुख होकर तर्पण करे । तदनंतर सव्य होकर सूर्यको अर्घ्य दे । जो इस भीष्माष्टमी व्रत करता है, वह सुंदर और गुणवान संतति प्राप्त करता है, उस दिन श्राध्दका व्रत करनेका विधान है ।  इस व्रत करनेसे मनुष्यके एक वर्षके पाप नष्ट होते है ।

(४)माघी पूर्णिमा व्रत(माघ पूर्णिमा)
माघमासकी पूर्णिमा तीर्थस्थलोंमे स्नान-दानादिके लिये परम फलदायिनी है । तीर्थराज प्रयागमे इस दिन स्नान, दान, गोदान एवं यज्ञका अनंत फल मिलता है । प्रात:काल स्नान करके विष्णुका पूजन करे । फिर पितरोंका श्राध्द करे । असमर्थोंको भोजन, वस्त्र, तथा आश्रय दे । तिल, कंबल, कपास, गुड, घी, मोदक, जूते, फल, अन्न, यथाश्क्ति सुवर्ण्, रजत आदिका दान दे तथा पूरे दिनका व्रत रखकर ब्राह्मणोंको भोजन दे और सत्संग एवं कथाकीर्तनम दिन-रात बिताकर दूसरे दिन पारण करे । इस दिन यदि शनि मेषराशिपर, गुरु और चंद्रमा सिंहराशिपर तथा सूर्य श्रवणनक्षत्रपर हो तो महामाघी पूर्णिमा योग होता है, जो स्नान-दानादिके लिये अक्षय फलदायिनी होती है ।

(५)षटतिला एकादशी व्रत(माघ कृष्ण एकादशी )
इस दिन छ: प्रकारसे तिलोंका उपयोग किया जाता है, इसीलिये इसे षटतिला कहा जाता है । इस दिन (१)तिलोंके जलसे स्नान, (२)तिलका उबटन, (३)तिलसे हवन, (४) तिलोंके जलका पान, (५)तिलका भोजन, (६)तिलका दान करनेसे समस्त पापोंका नाश होता है । इस दिन काले तिल तथा काली गायके दानका भी बडा माहात्म्य है । प्रात:काल स्नान करके श्रीकृष्णका निरंतर जप करे, दिनभर उपवास करे, रात्रिमे जागरण तथा तिलसे हवन करे, भगवानके पूजन करे । द्वादशीको ब्राह्मण भोजन कराकर पारण करे । इस व्रतसे सभी मनोकामनाए पूर्ण होती है ।

(६)मौनी अमावस्या व्रत(माघ अमावस्या)
इस पवित्र तिथिपर मौन रहकर स्नान-दान करनेका विशेष महत्त्व है । इस दिन त्रिवेणी अथवा गंगातटपर स्नान-दानकी अपार महिमा है । प्रात:काल स्नान करके तिल, तिलके लड्डू, तिलका तेल, आवला, वस्त्र आदिका दान करना चाहिये । ब्राह्मणको दक्षिणासहित भोजन देना चाहिये   । इस दिन यदि रविवार, व्यतिपात और श्रवणनक्षत्र हो तो अर्धोदययोग होता है, इस योगमे सभी स्थानोंका जल गंगातुल्य होता है, इस योगमे थोडा किये हुए स्नान-दानका फल मेरूसमान होता है ।



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