ज्येष्ठ मास मे दो प्रमुख व्रतपर्वोत्सव है ।
१)गंगा दशहरा (ज्येष्ठ मास शुक्ल द्वितीया)
ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीयाको पावन गंगा नदीका अवतरण धरतीपर
हुआ । इस तिथीको यदी सोमवार और हस्तनक्षत्र हो तो यह दिन सब पापोंको हरण करनेवाला
होता है । इस दिन गंगास्नान एवं गंगापूजनसे दस प्रकारके पापोंका नाश होता है ।(तीन
कायिक, चार वाचिक, तथा तीन मानसिक) बिना दिये हुए दूसरेकी वस्तु लेना,
शास्त्रवर्जित हिंसा करना तथा परस्त्री गमन करना -- तीन कायिक पाप है, कटु बोलना, झूठ बोलना, परोक्षमे किसीका दोष कहना तथा
निष्प्रयोजन बाते करना --चार वाचिक पाप है, तथा दूसरेके द्रव्यको अन्यायसे लेनेका विचार करना, मनसे दूसरेका अनिष्ट चिंतन
करना तथा नास्तिक बुध्दि रखना--तीन मानसिक पाप है ।
इसलिये इसे दशहरा कहा जाता
है । प्रात:काल गंगाजीमे स्नान करके गंगाके उत्पत्तीस्थान हिमालय एवं भगीरथका
नाममंत्रसे पूजन करे । पूजामे दस प्रकारके पुष्प, दशांग धूप, दस दिपक, दस प्रकारके
नैवेद्य, दस तांबूल एवं दस फल होना चाहिए । दक्षिणा भी यथाशक्ती दस ब्राह्मणोंको
दे दे । दस प्रकारके पापोंका नाश होनेके लिये सभी वस्तुए दसकी संख्यामे निवेदित
करे
।
।
२)वटसावित्री व्रत (ज्येष्ठ
मास पूर्णिमा)
वट देववृक्ष है । वटवृक्षके
मूलमे भगवान ब्रह्मा, मध्यमे विष्णु तथा अग्रभागमे महादेव है । देवी सावित्रीभी वटवृक्षमे
प्रतिष्ठित रहती है । पाच वटोंसेयुक्त स्थानको पंचवटी पहते है । हनिकारक गैसोंको
नष्टकर वातावरणको शुध्द करनेमे तथा औषधीके रुपमे भी वटवृक्षका विशेष महत्त्व है ।
जैसे वटवृक्ष दीर्घकालतक अक्षय बना रहता है, उसी प्रकार दीर्घ आयु, अक्षय सौभाग्य
तथा अभ्युदयकी प्राप्तिके लिये वटवृक्षकी आराधना की जाती है । इसी वटवृक्षके नीचे सावित्रीने
अपने पतिव्रतसे मृत पतिको पुन: जिवीत किया था । तबसे यह व्रत सावित्रीके नामसे
किया जाता है । प्रात:काल स्नान करके महिलाए अपने अखंड सौभाग्य एवं कल्याणके लिये
यह व्रत करे । वटवृक्षके मूलको जलसे सींचे । यथाविधी पूजन करे । साथमे यमराजका भी
पूजन करे । १०८ बार सूत लपेटकर परिक्रमा
करे । सौभाग्य वस्तुंका ब्राह्मण्को दान करे । इस व्रतसे सभी मनोरथ पूर्ण होते है,
सारी विपत्तीया दूर होती है ।
No comments:
Post a Comment