कार्तिकमास मे चौदह प्रमुख व्रतपर्वोत्सव है ।
(१)अन्नकोट महोत्सव (कार्तिकमास
शुक्ल प्रतिपदा)
कार्तिकमासके शुक्ल
प्रतिपदाको अन्नकोट महोत्सव मनाया जाता है । इस दिन गोवर्धनकी पूजा करके अन्नकोट
महोत्सव मनाये । इससे भगवान विष्णुकी प्रसन्नता प्राप्त होती है । इस दिन
प्रात:काल घरके द्वारदेश्मे गौके गोबरका गोवर्धन बनाये तथा उसे वृक्ष-शाखा,
पुष्पादिसे सुशोभित करे । गोवर्धनकी षोडशोपचारपुर्वक पूजा करे ।छप्पन प्रकारके व्यंजन
बनाकर गोवर्धनरूप भगवानको भोग लगाये । प्रसादके रूपमे भक्तोंको वितरित करे ।
व्रजमे इसकी
विशेषता है ।
(२)यमद्वितीया (कार्तिकमास
शुक्ल द्वितीया)
कार्तिकमासके शुक्ल द्वितीयाको
यमद्वितीया कहते है । इस दिन यमुना-स्नान, यम-पूजन और बहनके घर भाईका भोजन विहित
है । इससे यमराज प्रसन्न होते है । इस दिन बहन भाईकी गंधाक्षतासे पूजन करे ।
विभिन्न प्रकारके उत्तम व्यंजन परोसकर उसका अभिनंदन करे । इसके बाद भाई बहनको
यथाशक्ति वस्त्र-आभूषणादि देकर उसका शुभाशिष प्राप्त करे । इस व्रतसे भाईकी
आयुवृध्दि और् बहनको सौभाग्यसुखकी प्राप्ती होती है ।
(३)सूर्यषष्ठी-महोत्सव (कार्तिकमास शुक्ल षष्ठी)
कार्तिकमासके शुक्ल
षष्ठीको सूर्यकी और देवीकी पूजा करके
सूर्यषष्ठी-महोत्सव मनाये जाता है । सूर्यषष्ठीके अवसरपर सायंकालीन प्रथम अर्घ्यसे पूर्व
मिट्टीकी प्रतिमा बनाकर षष्ठीदेवीका आवाहन एवं पूजन करे । दूसरे दिन प्रात: अर्घ्यके
पूर्व षष्ठीदेवीका विसर्जन करे । इस प्रकार इस पावन व्रतमे शक्ति और ब्रह्म दोनोकी
उपासनाका फल एकसाथ प्राप्त होता है ।
(४)गोपाष्टमी-महोत्सव (कार्तिकमास शुक्ल अष्टमी)
कार्तिकमासके शुक्ल
प्रतिपदासे लेकर सप्तमीतक गो-गोप-गोपीयोंकी रक्षाके लिये भगवान श्रीकृष्ण गोवर्धनपर्वतको
धारण किये रहे । आठवे दिन इंद्रकी आंख खुली और वे अहंकाररहित होकर भगवान श्रीकृष्णकी
शरणमे आये । कामधेनुने भगवानका अभिषेक किया उसी दिन भगवानका नाम गोविंद पडा । उसी
समयसे कार्तिक शुक्ल अष्टमीको गोपाष्टमी-महोत्सव मनाया जाने लगा, जो अबतक चला आ
रहा है । इस दिन प्रात:काल गौओंको स्नान कराये, गंध-पुष्पादिसे उनका पूजन करे और
अनेक प्रकारके वस्त्रालंकारोंसे अलंकृत करके गोपालोंका पूजन करे, गौओंको
गोग्रास देकर उनकी परिक्रमा करे । उनकी चरणरजको मस्तकपर धारण करे, सौभाग्यकी
वृध्दि होती है ।
(५)अक्षय नवमी (कार्तिकमास
शुक्ल नवमी)
कार्तिकमास शुक्ल नवमीको
स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्नादिके दानसे अक्षय फल प्राप्त होता है । इस दिन आवला
वृक्षके नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर ॐ धात्र्यै नम: मंत्रका जप करे । षोडशोपचारसे पूजन
करके पितरोंका तर्पण करे । कर्पूर - दिपसे आरती करे । फिर आवला वृक्षकी प्रदक्षिणा
करे । आवला वृक्षके नीचे ब्राह्मण-भोजन कराये । उसको कूष्मांड(फल), यथाशक्ति
सुवर्णदान करे ।
(६)देवोत्थापनी एकादशी(कार्तिकमास
शुक्ल एकादशी)
भगवानने शंखासुरको मारकर
क्षीर-सागरमे सो गये । चार मासतक सोते रहे और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जगे ।
इसीलिये इस दिनको देवोत्थापनी एकादशी कहते है । इस दिन उपवास करे, नामस्मरण करे । रात्रि
जागरण करे । भगवान श्रीकृष्णकी षोडशोपचारसे पूजन करे । ब्राह्मणको यथाशक्ति सुवर्णदान करे । द्वादशीको सुग्रास ब्राह्मण-भोजन
कराये ।
(७)तुलसी-विवाह (कार्तिकमास
शुक्ल एकादशी)
कार्तिक शुक्ल एकादशीको तुलसी-विवाहका
भी आयोजन किया जाता है । इस दिन तुलसीका विवाह शालग्रामकी मर्तिके साथ मनाया जाता
है । विवाहकी सभी विधी बडे उत्साहके साथ मनाते है ।
(८)वैकुंठचतुर्दशी (कार्तिकमास
शुक्ल चतुर्दशी)
इस दिनमे भगवान विष्णुकी
और नरकके अधिपती यमराजकी पूजा की जाती है । प्रात:काल स्नानादिसे निवृत्त होकर
दिनभरका उपवास, नाम-स्मरण करे, रात्रीमे भगवान विष्णुकी कमलपुष्पोंसे पूजा करे ।
दूसरे दिन शिवजीका पूजन करे । ब्राह्मणको यथाशक्ति दान करके सुग्रास ब्राह्मण-भोजन
कराये । वैकुंठचतुर्दशीका यह पावन व्रत शैवों एवं वैष्णवोंकी एकता और ऎक्यका प्रतिक है
। इस पावन व्रतका फल स्वयं शिवजी बताते है—जो वैकुंठचतुर्दशीका यह पावन व्रत
श्रध्दासे करेगा उसे वैकुंठलोककी प्राप्ती होगी ।
(९)भीष्मपंचकव्रत(कार्तिकमास
शुक्ल एकादशीसे पूर्णिमा तक)
कार्तिक शुक्ल एकादशीसे
पूर्णिमा तक अनुष्ठान करके भीष्मजीने भगवानको प्रसन्न किया था, इसीलिये यह व्रत भीष्मपंचकव्रतसे
प्रसिध्द है । यथाशक्ति सुवर्णकी भगवान लक्ष्मी-नारायणकी मूर्ति बनवाकर उसकी
प्रतिष्ठाकर षोडशोपचारसे पूजन करे । पहले दिन भगवानके ह्रदयका कमलपुष्पोंसे पूजन
करे । दूसरे दिन भगवानके कटिप्रदेशका बिल्वपत्रोंसे पूजन करे । तिसरे दिन
भगवानके घुटनोंका केतकीपुष्पोंसे पूजन करे
। चौथे दिन भगवानके चरणोंका चमेलीपुष्पोंसे पूजन करे । तथा पाचवे दिन भगवानके संपूर्ण
अंगका तुलसीके मंजरियोंसे पूजन करे । नित्यप्रति ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का मंत्र
जप करे । पाच दिन उपवास व्रत करे । निरंतर भगवानका चिंतन करे । व्रतांतमे पारणाके
समय ब्राह्मण दंपतीको यथाशक्ति दान करके सुग्रास ब्राह्मण-भोजन कराये । इस व्रतसे
भगवान प्रसन्न होते है ।
(१०)कार्तिक पूर्णिमा (कार्तिकमास पूर्णिमा)
कार्तिक पूर्णिमा बडी
पवित्र तिथी है । इस तिथीको ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, अंगिरा और आदित्य आदिने महापुनीत
पर्व प्रमाणित किया है । अत: इसमे किये हुए स्नान, दान, होम, यज्ञ, और उपासना
आदिका अनंत फल होता है । इस दिन गंगास्नान और सायंकाल दिपदानका विशेष महत्व है ।
इस दिन कृत्तिका नक्षत्र हो तो यह महाकार्तिकी होती है, इस दिन भरणी नक्षत्र हो तो
विशेष फल देती है, इस दिन रोहिणी नक्षत्र हो तो इसका फल और बढ जाता है ।
(११)करवाचौथ व्रत(कार्तिकमास
कृष्ण चतुर्थी)
यह करवाचौथका व्रत अखंड
सुहाग देनेवाला है । अपने पतिकी दीर्घ आयु एवं स्वास्थ्यकी मंगल कामना करके भगवान
चंद्रमाको अर्घ्य अर्पित कर व्रतको पूर्ण होता है । इस दिन स्त्रिया पूर्ण
सुहागिनका रूप धारण कर वस्त्राभूषणोंको पहनकर भगवान चंद्रमासे अपने अखंड सौभाग्यकी
प्रार्थना करती है । यह प्रणभी लेती है कि मन, वचन एवं कर्मसे प्तिके प्रति पूर्ण
समर्पणकी भावना रखेगी ।
(१२)गोवत्सद्वादशीव्रत (कार्तिकमास
कृष्ण द्वादशी)
कार्तिक कृष्ण द्वादशीको भक्तिपूर्वक
गोमाताका पूजन किया जाता है । पुरे दिनमे केवल फलाहार करके गोमाताका चिंतन करे ।
ब्रह्मचर्यपूर्वक पृथ्वीपर शयन करे । जो इस व्रत श्रध्दासे करता है, वह गौके जितने
रोऎ है, उतने वर्षोंतक गोलोकमे वास करता है ।
(१३)धनतेरस(कार्तिकमास
कृष्ण त्रयोदशी)
इस दिन चांदीका बर्तन
खरीदना अत्यंत शुभ माना गया है । यह दिन यमराजको प्रसन्न करनेका भी है । सायंकाल
घरके बाहर मुख्य दरवाजेपर एक पात्रमे अन्न रखकर उसके उपर यमराजके निमीत्त
दक्षिणाभिमुख दिपदान करे । इससे यमराज प्रसन्न होते है, और अकस्मात मृत्यु नही
होती ।
(१४)धन्वंतरिका जन्मोत्सव(कार्तिकमास
कृष्ण त्रयोदशी)
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशीको धन्वंतरिका
जन्मोत्सव मनाया जाता है । इसी दिन संसारके समस्त ऒषधियोंको कलशमे भरकर प्रकट हुए
थे । इस दिन श्रध्दासे धन्वंतरिका पूजन किया जाता है । लोगोंके दीर्घ जीवन तथा
आरोग्यलाभके लिये मंगलकामना की जाती है ।
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