आषाढ मास मे दो प्रमुख व्रतपर्वोत्सव है ।
१)जगन्नाथकी रथयात्रा (आषाढ मास शुक्ल द्वितीया)
आषाढ मास शुक्ल द्वितीयासे
दशमीतक नौ दिन यह पुरीमे होनेवाली जगन्नाथकी रथयात्रा विश्वप्रसिध्द है । तीन
रथोंका प्रचलन होता है । बलभद्रजीके रथका नाम तालध्वज, सुभद्राजीके रथका नाम
देवदलन, जगन्नाथजीके रथका नाम नंदीघोष है । तीनो विग्रहोंको रत्नवेदीसे पहण्डी
करके रथोंपर अलग-अलग लाते है तथा बडदाण्डसे होकर रथोंको श्रीगुण्डिचा मंदिर तक
खींचकर ले जाते है । ये रथ प्रतिवर्ष नयी लकडीसे बनाये जाते है और कहीं भी लोहेके
काटो आदिका प्रयोग नही होता । श्रीगुण्डिचा मंदिरके शरघाबलि मैदानपर आठवे दिन तीनो
रथोंको घुमाकर सीधा किया जाता है । जगन्नाथकी यह रथयात्रा साम्य और एकताका प्रतीक है । जो यह रथयात्रामे
सहभागी होता है, उसके करोडो जन्मोंके पाप नष्ट होते है ।
२)गुरुपूर्णिमा (आषाढ मास पूर्णिमा)
पराशरकी कृपासे
वेदव्यासजीका अवतरण इस भारतवसुंधरापर आषाढकी पूर्णिमाको हुआ । इसलिये इसी दिन सभी
अपने-अपने गुरूकी पूजा विशेषरुपसे करते है । व्यासदेवजी गुरुओंकेभी गुरु माने जाते
है । यह गुरु-पूजा विश्वविख्यात है । यह पूर्णिमा सबसे बडी पूर्णिमा मानी जाती है;
क्योंकि परमात्माके ज्ञान, परमात्माके ध्यान, और परमात्माकी प्रीतीकी तरफ ले जानेवाली है यह पूर्णिमा । व्यासपूर्णिमाका
पर्व वर्षभरकी पूर्णिमा मनानेके पुण्यका फल तो देता ही है, साथ ही नयी दिशा, नया
संकेत भी देता है और कृतज्ञताका सदगुण भी भरता है । गुरुके प्रति कृतज्ञता
ज्ञापनका अवसर, ऋषिऋण चुकानेका अवसर, गुरूकी प्रेरणा और आशीर्वाद पानेका यही अवसर
है—व्यासपूर्णिमा ।
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