Monday, 20 November 2017

सति सावित्रीस यमराजाचे वरदान




प्राचीन  काळातील  घटना  आहे.  अश्वपती  नावाच्या  राजाची एक  तेजस्वी  कन्या  सावित्रीचा विवाह द्युमत्सेन  राजाचा सदगुणसंपन्न  पुत्र  सत्यवानाशी झाला. सावित्रीने  सेवा,    विनय,  संयम,  मधुर  संभाषण,  कार्यकुशलता  या  सद्गुणांमुळे  सासरच्या  सर्वांस  आनंदीत  केले.  पतिची  एकांतामध्ये  सेवा  करून  पतिला  सुख  दिले.  परंतू  नारदांच्या  उपदेशाने(सत्यवान एक  वर्षांनी  शरीर  सोडणार  आहे.)  सावित्रि  चिंतातूर  झालेली  होती.  ती  दिवस  मोजीत  होती.  आता  तो  दिवस  आला.  आज  पासून  चौथ्या  दिवशी  सत्यवान  मरणार  हे  सावित्रिने  जाणले.  तेव्हा  तीने  तीन  रात्रीचे  व्रत  सुरू  केले.  ती  दिवस  रात्र  उपवास  करून  तटस्थ  उभी  राहीली.  ज्या  दिवशी  सत्यवान  मरणार  त्या  दिवशी  तो  नेहमी  प्रमाणे  वनामध्ये  लाकडे  तोडून  आणावयास  निघाला.  तेव्हा  सावित्रि  त्याच्या  बरोबर  वनामध्ये  गेली.  वनामध्ये  लाकडे  तोडून  झाल्यावर  सत्यवानाचा  मृत्युकाळ  आला.  साक्षात यमदेव  सत्यवानाचा  प्राण  नेण्यासाठी  आला.  पतिव्रता असल्याने ते  प्रत्यक्ष  सावित्रिने पाहिले.  तेव्हा  त्याच्या  मागोमाग  सावित्रि  जाऊ  लागली.  तीन  दिवसांच्या  व्रतामुळे  ती  यमदेवाच्या  मागे  जाण्यास  सिध्द  झाली  होती. 
यमदेव--हे  सावित्रि,  आता  तू  परत  जा.  पतिच्या  मृतदेहाचे  अग्निसंस्कार  कर.  सावित्रि--हे  यमदेवा,  जेथे  माझ्या  पतिचे  प्राण  चालले  आहेत  तेथे  मी  जाणार  हाच  सनातन  धर्म  आहे.  तपस्या,  पतिप्रेम,  व्रतपालन  यामुळे  तूमच्या  मागे  येण्याची  माझी  गति  थांबणार  नाही. धर्मपालन, वनवास, व तपस्या केवळ जितेंद्रिय सत्पुरूष करू शकतात. विवेक आणि वैराग्यानेच मनुष्य अंतिम ध्येय साध्य करू शकतो. सर्व  सत्पूरूष  धर्मास  श्रेष्ठ  मानतात. अशा सत्पूरूषांचा सहवास कल्याणकारी असतो. त्यांची सेवा करण्याची संधी मिळणे हे भाग्य च होय.  
सत्पूरूषांचा  सत्संग  वाया जात नसतो. मन, वाणी व कर्माने कोणत्याही प्राणीमात्रांशी कधीही द्वेष न करणे हाच सत्पूरूषांचा स्वभाव असतो. हे यमराज, संपूर्ण  प्रजा  आपल्याच  हूकुमाने  जीवन  जगते  आहे.  काही  मनुष्य  अल्पायुषी  असतात, प्रत्येक मनुष्य  दैवाधीन  आहे.  शरणागत  ऋषीमुनींवर  आपण  दया  करतात  तर  मग आपण माझ्यावर दया का  करीत  नाहीत.  आपण विवस्वानाचे प्रतापी पुत्र आहात. आपण सर्व प्रजेचे पालन समतापूर्वक धर्मानुसार करीत आहात, म्हणून आपणांस धर्मराज म्हणतात. सत्पुरूषांचा  प्रसाद  कधीही  व्यर्थ  होत  नाही.  सत्पुरूषांना  कोणी  आपला  नाही    परका  नाही.  ते  सदा  सर्वदा  सर्वांसाठी  शुभकामना  करतात. 
सावित्रिची संतांवरची  भक्ती  ऐकून आणी तीच्या  पतिव्रताने  यमदेव सावित्रि वर  प्रसन्न  झाले.
यमदेव--हे  सावित्रि,  तहानलेल्यास पाणी मिळाल्यावर जो आनंद मिळतो, तसाच आनंद मला आता  तू सांगितलेल्या तत्त्वज्ञाने  मिळालेला आहे. तूझ्या  मधुर  संभाषणाने  मी  तूझ्यावर  प्रसन्न  झालो  आहे. वरदान  माग.  सत्यवानाचे  आयुष्य  सोडून  कोणताही  वर  माग,  मी तूला वरदान देईन. 
सावित्रिने प्रथम तीच्या सासऱ्यांसाठी वर मागितला. ते राज्य-विना  वनामध्ये  निवास  करीत  आहेत,  ते  अंध  आहेत.  त्यांना  राज्य  प्राप्ती    तेजस्वी  दृष्टी  लाभो. त्यानंतर तीने आपल्या पित्या साठी वर मागितला. ते  पुत्रहिन  आहेत.  त्यांना  एक  पुत्र  प्राप्त  व्हावा. त्यानंतर तीने आपल्या साठी वर मागितला. मी  आणि  सत्यवान  या  दोघांच्या  संयोगाने  आम्हांस पराक्रमी  शंभर  पुत्र  व्हावेत.
यमदेव--हे  सावित्रि,  तथास्तु.  तूला  तेजस्वी,  पराक्रमी  शंभर  पुत्र  प्राप्त  होतील.  सावित्रि--हे  यमदेवा, सत्पुरूषांचा  प्रसाद  कधीही  व्यर्थ  होत  नाही.  सत्पुरूषांना  कोणी  आपला  नाही    परका  नाही.  ते  सदा  सर्वदा  सर्वांसाठी  शुभकामना  करतात.  आपण  मला  पुत्रप्राप्तीचा  वर  दिलात.  तो  पति  शिवाय  कसा  पूर्ण  होणार.  पति  शिवाय  मला  कोणतेच  सुख  नको.  पति  शिवाय  मला  स्वर्गप्राप्ती  नको.  पति  शिवाय  मला  संपत्ती  नको.  पति  शिवाय  मला  जिवन  सुध्दा  नको.  शंभर  पुत्रांचा  वर  पति  शिवाय  पूर्ण  होणार  नाही.  म्हणून  सत्यवानास  प्राणदान  द्या. 
यमदेव--हे  सावित्रि,  तथास्तु.  तू  मला  धर्मयुक्त  संभाषणाने  पूर्ण  संतुष्ट  केलेले  आहेस.  हे घे सत्यवानाचे प्राण.  हा  सत्यवान  निरोगी,  तूझ्या  बरोबर  चारशे  वर्षे  जगेल.  धर्माचरणाने  हा  विश्वविख्यात  होईल. 
अशा  प्रकारे  सावित्रिने  यमदेवाकडून  वरदान  प्राप्त  करून  घेतले.  सत्यवान  जिवंत  झाला.  सत्यवानाच्या  आई-वडीलांस  दृष्टी  प्राप्त  झाली.  राज्य  प्राप्त  झाले.  शंभर  पुत्र  प्राप्त  झाले.  सावित्रिस  शंभर  भाऊ  झाले.  सावित्रिस  शंभर  पुत्र  प्राप्त  झाले.  अशा  रितीने  पतिव्रता  सावित्रिने  सर्वांचे  कल्याण  करून  घेतले. 

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