Friday, 29 September 2017

भगवान श्रीकृष्णका ध्यान



भगवान श्रीकृष्णका ध्यान
भगवान श्रीकृष्णका ध्यान भवसागरसे तारनेवाला हॆ । देवर्षि नारदजीने पापनाशक ध्यानका वर्णन किया हॆ ।  ध्यान करनेवाले मनुष्यको सदा शुध्दचित्त होकर पहले उस परम कल्याणमय सुन्दर वृन्दावनका चिन्तन करना चाहिये, जो फूलोंके समुदाय, मनोहर सुगन्ध और बहते हुए मकरन्द आदिसे सुशोभित सुन्दर-सुन्दर वृक्षोंके नूतन पल्लवोंसे झुका हुआ शोभा पा रहा हॆ तथा खिली हुई नवल मंजरियों और ललित लताओंसे आवृत हॆ । उस वनके भीतर भी एक कल्पवृक्षका चिन्तन करे, जो बहुत ही मोटा और ऊंचा हॆ, जिसके नये-नये पल्लव मूंगेके समान लाल हॆ, पत्ते मरकत मणिके सदृश नीले हॆ, कलिकाए मोतीके प्रभा-पुंजकी भाति शोभा पा रही हॆ और नाना प्रकारके फल पद्मराग मणिके समान जान पडते हॆ । समस्त ऋतुए सदा ही उस वृक्षकी सेवामे रहती हॆ तथा वह संपूर्ण कामनाओंको पूर्ण करनेवाला हॆ । फिर आलस्यरहित हो विद्वान पुरुष धारावाहिकरूपसे अमृतकी बूंदे बरसानेवाले उस कल्पवृक्षके नीचे सुवर्णमयी वेदीकी भावना करे, जो मेरु गिरिपर उगे हुए सूर्यकी भाति प्रभासे उद्भासित हो रही हॆ, जिसका फर्श जगमगाती हुई मणियोंसे बना हॆ, जो फूलोंके पराग-पुंजसे कुछ धवल वर्णकी हो गयी हॆ तथा जहा क्षुधा-पिपासा, शोक-मोह और जरा-मृत्यु ये छ: ऊर्मिया नही पहुचने पाती । उस रत्नमय फर्शपर रखे हुए एक विशाल योग-पीठके उपर लाल रंगके अष्टदल कमलका चिन्तन करके उसके मध्यभागमे सुखपूर्वक बॆठे हुए भगवान श्रीकृष्णका ध्यान करे, जो अपनी दिव्य प्रभासे उदयकालीन सूर्यदेवकी भाति देदीप्यमान हो रहे हॆ । भगवानके श्रीविग्रहकी आभा इंद्रके वज्रसे विदीर्ण हुए कज्जलगिरि, मेघोंकी घटा तथा नूतन नील-कमलके समान श्याम रंगकी हॆ, श्याम मेघके सदृश काले-काले घुंघराले केश-कलाप बडे ही चिकने हॆ तथा उनके मस्तकपर मनोहर मोर-पंखका मुकुट शोभा पा रहा हॆ ।  कल्पवृक्षके फूलोंसे, जिनपर भौरे मंडरा रहे हॆ, भगवानका श्रृंगार हुआ हॆ । उन्होने कानोमे खिले हुए नवीन कमलके कुंडल धारण कर रखे हॆ, चंचल भ्रमर उड रहे हॆ । उनके ललाटमे चमकीले गोरोचन तिलक चमक रहा हॆ तथा धनुषाकार भौहे बडी सुंदर प्रतीत हो रही हॆ । भगवानका मुख शरत्पूर्णिमाके कलंकहीन चंद्रमंडलकी भाति कांतिमान हॆ, बडे-बडे नेत्र कमलदलके समान सुंदर जान पडते हॆ, दर्पणके सदृश स्वच्छ कपोल रत्नोंके कारण चमकते हुए मकराकृत कुंडलोंकी किरणोंसे देदीप्यमान हो रहे हॆ तथा ऊंची नासिका बडी मनोहर जान पडती हॆ । सिंदूरके समान परम सुंदर लाल-लाल ओठ हॆ; चंद्रमा, कुंद और मंदार पुष्पकी-सी मंद मुसकानकी छटासे सामनेकी दिशा प्रकाशित हो रही हॆ तथा वनके कोमल पल्लवो और फूलोंके समूहद्वारा बनाये हुए हारसे शंखसदृश मनोहर ग्रीवा बडी सुंदर जान पडती हॆ । मंडराते हुए मतवाले भौरोंसे निनादित एवं घुटनोंतक लटकी हुई पारिजात पुष्पोंकी मालासे दोनो कंधे शोभा पा रहे हॆ । पीन और विशाल वक्ष:स्थलरूपी आकाश हाररूपी नक्षत्रोंसे सुशोभित हॆ तथा उसमे कौस्तुभमणिरूपी सूर्य भासमान हो रहा हॆ । भगवानके वक्ष:स्थलमे श्रीवत्सका चिन्ह बडा सुंदर दिखायी देता हॆ, उनके कंधे ऊंचे हॆ, गोल-गोल सुंदर भुजाए घुटनोंतक लंबी एवं मोटी हॆ, उदरका भाग बडा मनोहर हॆ, नाभि विस्तृत और गहरी हॆ तथा त्रिवलीकी रोमपंक्ती भवरोंकी पंक्तीके समान शोभा पा रही हॆ । नाना प्रकारकी मणियोंके बने हुए भुजबंद, कडे, अंगूठिया, हार, करधनी, नूपुर और पेटी आदि आभूषण  भगवानके श्रीविग्रहपर शोभा पा रहे हॆ; उनके समस्त अंग दिव्य अंगरागोंसे अनुरंजित हॆ तथा कटिभाग कुछ हलके रंगके पीतांबरसे ढका हुआ हॆ । दोनो जांघे और् घुट्ने सुंदर हॆ; पिंडलियोंका भाग गोलाकार एवं मनोहर हॆ; पादाग्रभाग् परम कांतिमान तथा ऊंचा हॆ और अपनी शोभासे कछुएके पृष्ठभागकी कांतिको मलिन कर रहा हॆ तथा दोनो चरण-कमल माणिक्य तथा दर्पणके समान स्वच्छ नखपंक्तियोंसे सुशोभित लाल-लाल अंगुलिदलोंके कारण बडे सुंदर जान पडते हॆ ।  मत्स्य, अंकुश, चक्र,  पताका, जौ, कमल और वज्र आदि चिन्होंसे चिन्हित लाल-लाल हथेलियो तथा तलवोंसे भगवान बडे मनोहर प्रतीत हो रहे हॆ । उनका श्रीअंग लावण्यके सार-संग्रहसे निर्मित जान पडता हॆ  तथा उनके सौंदर्यके सामने कामदेवके शरीरकी कांति फीकी पड जाती हॆ। भगवान अपने मुखारविंदसे मुरली बजा रहे हॆ; उस समय मुरलीके छिद्रोंपर उनकी अंगुलियोंके फिरनेसे निरंतर दिव्य रागोंकी सृष्टि हो रही हॆ, जिनसे प्रभावित हो समस्त जीव-जंतु जहा-के-तहा बॆठकर  भगवानकी ओर मस्तक टेक रहे हॆ । भगवान गोविंद अनंत आनंदके समुद्र हॆ । थनोंके भारसे लडखडाती हुई मंद-मंद गतिसे चलनेवाली गौए दातोंके अग्रभागमे चबानेसे बचे हुए तिनकोंके अंकुर लिये, पूछ लटकाये भगवानके मुखकमलमे आखे गडाये उन्हे चारों ओरसे घेरकर खडी हॆ । गौओंके साथ ही छोटे-छोटे बछडे भी भगवानको सब ओरसे घेरे हुए हॆ और मुरलीसे मंदस्वरमे जो मनोहर संगीतकी धारा बह रही हॆ, उसे वे कान लगाकर सुन रहे हॆ, जिसके कारण उनके दोनो कान खडे हो गये हॆ । गौओंके टपकते हुए  थनोंके आभूषणरूप दुधसे भरे हुए उनके मुख स्थिर हॆ, जिसने फेनयुक्त दूध बह रहा हॆ; इससे वे बछडे बडे मनोहर प्रतीत हो रहे हॆ । भगवानके ही समान गुण, शील, अवस्था, विलास तथा वेष-भूषावाले गोप भी, जो अपनी चंचल भुजाओंको सुंदर ढंगसे नचानेमे चतुर हॆ, वंशी और वीणाकी मधुर ध्वनिका विस्तार करके मंद, उच्च और तारस्वरमे कुशलतापूर्वक गान करते हुए भगवानको सब ओरसे घेरकर खडे हॆ । छोटे-छोटे ग्वाल-बाल भी भगवानके चारो ओर घूम रहे  हॆ; जाघसे ऊपर उनके मोटे कटिभागमे करधनी पहनायी गयी हॆ, जिसकी क्षुद्रघंटिकाओंकी मधुर झनकार सुनायी पडती हॆ । वे भोले-भाले बालक बघनखोंके सुंदर आभूषण पहने हुए हॆ । उनकी मीठी-मीठी तोतली वाणी साफ समझमे नही आती । भगवानके प्रति दृढ अनुराग रखनेवाली सुंदरी गोपांगनाए भी उन्हे प्रेमपूर्ण दृष्टिसे निहारती हुई सब ओरसे घेरकर खडी हॆ । गोपी, गोप और पशुओंके घेरेसे बाहर भगवानके सामनेकी ओर ब्रह्मा, शिव तथा इंद्र आदि देवताओंका समुदाय खडा होकर स्तुति कर रहा हॆ । इसी प्रकार उपर्युक्त घेरेसे बाहर भगवानके दक्षिण भागमे सुदृढ धर्मकी अभिलाषासे वेदभ्यासपरायण मुनियोंका समुदाय उपस्थित हॆ तथा पृष्ठभागकी ओर समाधिके द्वारा मुक्तीकी इच्छा रखनेवाले सनकादि योगेश्वर खडे हॆ । वाम भागमे अपनी स्त्रियोंसहित यक्ष, सिध्द, गंधर्व, विद्याधर, चारण और किन्नर खडे हॆ । साथ ही भगवत्प्रेमकी इच्छा रखनेवाली मुख्य-मुख्य अप्सराए भी मौजूद हॆ । वे नाचने, गाने तथा बजानेके द्वारा भगवानकी सेवा कर रहे हॆ । तत्पच्श्रात आकाशमे स्थित मुझ ब्रम्हपुत्र देवर्षि नारदका चिंतन करना चाहिये । नारदजीके शरीरका वर्ण शंख, चंद्रमा तथा कुंदके समान गौर हॆ; वे संपूर्ण आगमोंके ज्ञाता हॆ; उनकी जटाए बिजलीकी पंक्तीयोंके समान पीली और चमकीली हॆ, वे भगवानके चरण-कमलोंकी निर्मल भक्तीके इच्छुक हॆ तथा अन्य सब ओरकी आसक्तीयोंका सर्वथा परित्याग कर चुके हॆ और संगीतसंबंधी नाना प्रकारकी श्रुतियोंसे युक्त सात स्वरो और त्रिविध ग्रामोंकी मनोहर मूर्च्छनाओंको आभिव्यंजित करके अत्यंत भक्तीके साथ भगवानको प्रसन्न कर रहे हॆ । इसी प्रकार आत्मस्वरूप भगवान नंदनंदनका ध्यान करना चाहिये ।

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