योगेन चित्तस्य पदेन वाचां
मलं शरीरस्य च वैद्यकेन
।
यो पाकरोत्तं
मुनीनां पतंजलिं प्रांजलिरानतोस्मि ।।
योग-स्वाध्याय पतंजलि योग-सुत्रोंका
यथार्थ ज्ञान प्राप्त
करानेका एक उपक्रम
है । इसी योग-साधनसे मनुष्य-जन्मका अंतिम उद्दीष्ट
प्राप्त हो सकता
है । हिरण्यगर्भ-सूत्रोंके
आधारपर पतंजलिमुनिने योग-दर्शनका निर्माण किया, जो
तर्कशास्त्रपर आधारित है,
जो विज्ञाननिष्ठ मनुष्योंको भी ग्राह्य
हो सकता है
। योग-दर्शनके चार पाद
है, समाधिपादमे ५१सूत्र, साधनपादमे ५५सूत्र, विभूतिपादमे ५५सूत्र, कैवल्यपादमे ३४सूत्र, इस प्रकार
कुल मिलाकर १९५सूत्र
है । समाधिपादमे
विस्तारपूर्वक योगके स्वरूपका
वर्णन किया है
। साधनपादमे योगका साधन
बतलाया है । विभूतिपादमे नाना प्रकारकी
सिध्दियोंका वर्णन किया
है । कैवल्यपादमे
चित्तके संबंधी जो-जो
शंकाएँ हो सकती
है, उनका युक्तिपूर्वक
निवारण किया है
।
पातंजलयोगप्रदीप (गीता प्रेस,
गोरखपूर) इस ग्रंथका
अध्ययन करके आँठ
प्रश्नोंके उत्तर हर
तीन मासके बाद
हमारे यहँा भेज
देना है । चार विभागोंके
प्रश्न बारह मासमे
पूरे हो जाते
है । साथमे
जबाबी टपाल भेज
दियँा, तो आपके
उत्तरोंपर मार्गदर्शन करके आपको
वापीस भेज दिया
जायेगा । अभ्यासक्रमकी
रूपरेखा इस प्रकार
है ।
पहला मास
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समाधिपादोंके ५१ योगसुत्रोंका
प्रतिदीन पठण
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दूसरा मास
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समाधिपादोंके ५१ योगसुत्रोंका
प्रतिदीन चिंतन
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तीसरा मास
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समाधिपादोंके आठ प्रश्नोंके
उत्तरांेका लेखन (लगभग १०० शब्दोंमे)
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चौथा मास
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साधनपादोंके ५५ योगसुत्रोंका
प्रतिदीन पठण
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पाँचवाँ मास
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साधनपादोंके ५५ योगसुत्रोंका
प्रतिदीन चिंतन
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छठा मास
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साधनपादोंके आठ प्रश्नोंके
उत्तरांेका लेखन (लगभग १०० शब्दोंमे)
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सातवाँ मास
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विभूतिपादोंके ५५ योगसुत्रोंका
प्रतिदीन पठण
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आठवाँ मास
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विभूतिपादोंके ५५ योगसुत्रोंका
प्रतिदीन चिंतन
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नवाँ मास
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विभूतिपादोंके आठ प्रश्नोंके
उत्तरांेका लेखन (लगभग १०० शब्दोंमे)
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दसवाँ मास
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कैवल्यपादोंके ३४ योगसुत्रोंका
प्रतिदीन पठण
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ग्यारहवाँ मास
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कैवल्यपादोंके ३४ योगसुत्रोंका
प्रतिदीन चिंतन
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बारहवाँ मास
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कैवल्यपादोंके आठ प्रश्नोंके
उत्तरांेका लेखन (लगभग १०० शब्दोंमे)
|
स्वाध्यायके उपरान्त वार्षिक परिक्षा नही है,
तथा प्रमाणपत्र भी नही दिये जाते
है । यह योग स्वाध्याय
निरपेक्षवृत्तीसे (विनामुल्य और मराठी,
इंग्रजी भाषाओंमे भी) किया
जा रहा है । यह योग-स्वाध्याय आजकी परिस्थितीमे
अत्यंत कल्याणकारी है । आजकलके सभ्य
कहलानेवाले संसारमे असत्यकी पूजा और
सत्यकी अवहेलना प्रचलित हो गयी है । जो जितना
ही सुशिक्षित है, जितनी
ही अधिक मस्तिष्क-शक्तिसे
संपन्न है, वह उतना ही
असत्यके आश्रित है
। उसके जीवनमे
शांतीका अभाव है
। यह शांती
योग-स्वाध्यायसे प्राप्त हो सकती
है । योगसाधना
ही मनुष्योंके लौकिक और
पारलौकिक कल्याण तथा
मुक्तिमार्गका एकमात्र पथ है । योगाभ्यासके
द्वारा चित्तकी एकाग्रता प्राप्त हो जानेपर
ज्ञान उत्पन्न होता है
। और उसी ज्ञानके प्रकाशमे जीवात्मा कर्मबंधनका उच्छेद करके
मुक्ति प्राप्त कर लेता
है ।
आशा है इस अभिनव
उपक्रमकी महत्ता जानकर
अपने हितचिंतककों भी इस योग-स्वाध्यायकी जानकारी निवेदित करे ।
स्वामी मोहनदास,
(भ्रमणध्वनी-०९४२०८५९६१२) एल - ५०७ चंद्रमा-विश्व,
धायरी, पुणे - ४११०४१
योग स्वाध्याय
एक सालका अभ्यासक्रम
समाधिपादके
आँठ प्रश्न
१. चित्त
किससे प्रसन्न होता है
?
२. योगीकी
प्रज्ञा ऋतंभरा कब
होती है ?
३. ईश्वर
कैसा है ?
४. वैराग्य
किसको कहते है
?
५. निर्बीज
समाधि कब प्राप्त
होती है ?
६. मनुष्य
स्वरूपमे कब स्थिर
होता है ?
७. कौनसे
दोन उपायोंसे चित्त-वृत्तींका निरोध होता
है ?
८. योग किसको कहते
है ?
साधनपादके आँठ प्रश्न
१. आसन किसको कहते
है ?
२. योगके
अंग कितने है
?
३. क्रियायोग
किसको कहते है
?
४. यम कितने है?
५. प्राणायामसे
क्या लाभ होता
है ?
६. प्रत्याहार
किसको कहते है
?
७. अपरिग्रहतासे
क्या प्राप्त होता है
?
८. नियम
कितने है?
विभूतिपादके आँठ प्रश्न
१. कैवल्यका
लाभ किस प्रकार
प्राप्त होता है
?
२. इंद्रियसिध्दी
किस प्रकार प्राप्त
होती है ?
३. समाधिमार्गमे
क्या अडसर है
। ?
४. चित्तको
स्थिरता किस प्रकार
प्राप्त होता है
?
५. धारणा
किसको कहते है?
६. निरोधसंस्कार
किसको कहते है?
७. भूत और भविष्यका
ज्ञान कैसे प्राप्त
होता है ?
८. समाधि
किसको कहते है?
कैवल्यपादके आँठ प्रश्न
१. कैवल्यअवस्था
कैसे प्राप्त होती है
?
२. समाधिअवस्था
कैसे प्राप्त होती है
?
३. कर्मवासनाओंकी
अभिव्यक्ति कैसे होती
है ?
४. धर्माचरणसे
कौनसा महत्त्कार्य संपन्न होता
है ?
५. कर्मवासनाओंका
मूल स्वरूप क्या
है ?
६. चित्तका
स्वामी कौन है ?
७. आत्मसाक्षात्कारके
बाद भी पुर्वसंस्कारोंकी
निवृत्ती क्यो आवश्यक
है ?
८. एक जन्मके बाद
दुसरे जन्ममे भिन्न
योनि क्यो प्राप्त
होती है ?
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