Tuesday, 27 March 2018

चैत्र मास



चैत्र मास मे चार प्रमुख व्रतपर्वोत्सव है ।
१)संवत्सर प्रतिपदा (चैत्र मास शुक्ल प्रतिपदा)
चैत्र मास शुक्ल प्रतिपदासे नवसंवत्सरका आरंभ होता है । यह अत्यंत पवित्र तिथी है, इस दिनसे ब्रह्माजीने सृष्टी निर्माण प्रारंभ किया था । इस दिन प्रात:काल उठनेसे तुरंत निंबके कोमल पत्ते, निंबके फुल, काली मिर्च, हिंग, जिरा, मिस्त्री और अजवाइन आदिकी चटणी खाए, इससे रुधिर-विकार नही होता और आरोग्यकी प्राप्ती होती है ।  इस दिन प्रात: तेलका उबटन लगाकर स्नान करके पवित्र होकर देश कालके उच्चारणके साथ  शुभ संकल्प करे । यह दिन चार स्वयंसिध्द अभिजित मुहूर्तमेसे एक है । (१)चैत्र शुक्ल प्रतिपदा गुढीपाडवा, (२)वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया, (३)आश्विन शुक्ल दशमी दशहरा, (४)कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा दिपावली पाडवा | संकल्प करके वालूकी वेदीपर श्वेतवस्त्र बिछाकर उसपर हल्दीसे रंगे अक्षतसे अष्टदल कमल बनाये । उसपर ब्रह्माजीकी सुवर्ण मूर्तीकी स्थापित करे । ॐ ब्रह्मणे नम: इस मंत्रसे ब्रह्माजीका आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करे । नवरात्रके लिये घट स्थापन करे । महाराष्ट्रमे प्रात:कालमे स्नान करके इस दिन नववर्षका स्वागत के लिये दरवाजे पर गुढी उभारते है । वर्षभरके लिये शुभकामनाये एक दूसरेको देते है ।

२)वासंतिक नवरात्र (चैत्र मास शुक्ल प्रतिपदासे नवमीतक)
प्रात:कालमे स्नान करके गोमयसे पूजास्थान पवित्र करे । घट स्थापनके लिये पवित्र मिट्टीसे वेदीका निर्माण करे, फिर उसमे जौ और गेहु बोये तथा सुवर्णका कलश स्थापन करे । कलशपर श्रीदुर्गादेवीकी मूर्ति स्थापित करे तथा षोडषोपचारसे पूजन करे । नौ दिन कुमारी पूजन करे । नौ दिन उपवास करे, निरंतर श्रीदुर्गादेवीका चिंतन करे । दसवे दिन पारणके लिये ब्राह्मणोंको दक्षिणासहित भोजन करवाये । बादमे स्वयं भोजन करे । इस व्रतसे शक्ति, बुध्दि प्राप्त होती है ।

३)श्रीरामनवमी (चैत्र मास शुक्ल नवमी)
चैत्र शुक्ल नवमीको श्रीरामजीने अवतार लिया था । इस दिन प्रात:काल स्नान करके घरके उत्तर भागमे मंडप बनाये ।  पूर्वद्वारपर हनुमान, दक्षिण द्वारपर गरूड, पश्चिम द्वारपर अंगद, उत्तर द्वारपर नील की स्थापना करे । मंडप के मध्य भागमे श्रीरामजीकी मूर्ती स्थापित करे ।  श्रीरामजी की षोडशोपचारसे पूजन करे । दोपहर बारा बजे श्रीरामजीका जन्मोत्सव करे । जन्मोत्सवतक उपवास करके निरंतर श्रीरामजीका चिंतन करे । जन्मोत्सवके बाद ब्राह्मणोंको दक्षिणासहित भोजन करवाये । बादमे स्वयं भोजन करे । इस व्रतसे श्रीरामजीकी भक्ति प्राप्त होती है ।

४)श्रीहनुमान जयंति (चैत्र मास पुर्णिमा)
इस दिन श्रीरामभक्त हनुमानजीका सूर्योदयके समय जन्म हुआ है । इस दिन प्रात:काल स्नान करके हनुमानकी प्रतिमा प्रतिष्ठा कर ॐ हनुमते नम: मंत्रका उच्चारणसे, षोडशोपचारसे पूजन करे । दिनभर निरंतर श्रीराम-हनुमानजीका चिंतन करे । नैवेद्यमे गुड, चनाका लड्डु करे । दोपहरको ब्राह्मणोंको  दक्षिणासहित भोजन करवाये । बादमे स्वयं भोजन करे । इस व्रतसे श्रीरामजीकी भक्ति और ह्नुमानकी शक्ति प्राप्त होती है ।

वैशाख मास



वैशाख मास मे तीन प्रमुख व्रतपर्वोत्सव है ।
१)अक्षयतृतीया (वैशाख मास शुक्ल तृतीया)
वैशाख मासके शुक्ल तृतीयको अक्षयतृतीया कहते है । अक्षयतृतीयाके दिन सोमवार और रोहिणी नक्षत्र तिनोंका सुयोग बहुत फलदायी होता है । इसी दिन नर-नारायण, हयग्रीव और परशुरामजीका जन्म हुआ है । इसी दिन के दान, स्नान,जप, तप, हवन, तर्पण, पिंडदान आदि कर्मोंका शुभ और अनंत फल मिलता है । प्रात:कालमे स्नान करके गौरीकी यथाविधी पूजा करे । ब्राह्मणोंको यथाशक्ती दक्षिणा देकर उन्हे सुग्रास भोजन करवाये । इसी दिन ईखके रससे बने पदार्थ, दही, चावल, दूधसे बने व्यंजन, खरबूज, तरबूज और लड्डुका भोग लगाकर ब्राह्मणोंको दान करे । अक्षयतृतीयाव्रत करनेसे सुख-समृध्दि होती है ।

२)श्रीसीतानवमीव्रत (वैशाख मास शुक्ल नवमी)
वैशाख मास शुक्ल नवमीको श्रीसीताजीका अविर्भाव हुआ है । श्रीसीतानवमीके पावन पर्वपर जो यथाशक्ति भक्तीभावसे व्रत करता है, उसे पृथ्वी दानका फल, महाषोडश दानका फल, अखिलतीर्थ-भ्रमणका फल, और सर्वभूत-दयाका फल अनायास ही मिल जाता है । प्रात:कालमे स्नान करके श्रीसीताजीकी यथाविधी पूजा करे । साथमे श्रीराम, जनकजी, माता सुनयना आदिंकी भी पूजा करे । षोडशोपचारे पूजन करे । संपूर्ण दिन उपवास करके दिनभर श्रीराम, जानकीजीका चिंतन करे । दशमीके दिन व्रतकी संपन्नता करे । ब्राह्मणोंको यथाशक्ती श्रीराम, जानकीजीकी सुवर्ण प्रतिमा दान देकर उन्हे सुग्रास भोजन करवाये । गोदान, अन्नदान करे ।

३)श्रीनृसिंहचतुर्दशीव्रत (वैशाख मास शुक्ल चतुर्दशी)
वैशाख मास शुक्ल चतुर्दशीको भक्त प्रल्हादका अभीष्ट सिध्द करनेके लिये भगवान नृसिंहरूपमे प्रकट हुए थे । श्रीनृसिंहचतुर्दशीव्रत अत्यंत कठीन है । प्रात:काल स्नान करके व्रतका संकल्प करे । व्रतमे दुष्ट पुरूषोंसे वार्तालाप न करे । मध्यान्हकालमे फिरसे वैदिक मंत्रोसे स्नान करे । मिट्टी, गोबर, आवला-चूर्णसे नदीमे स्नान करे । फिर घर आकर पूजास्थलपर अष्टदल कमल बनाये । कमलके उपर पंचरत्नसहित तांबेका कलश स्थापन करे । कलशपर चावलोंसे भरा पात्र रखे । पात्रमे सुवर्णकी लक्ष्मी-नृसिंहकी प्रतिमाकी प्राणप्रतिष्ठा करे । प्रतिमाको पंचामृतसे अभिषेक करे । षोडशोपचारसे पूजन करे । पवमान सुक्तका पठण करे । दिनभर उपवास करे । सायंकालमे जन्मोत्सव मनाये । दूसरे दिन प्रात:काल स्नान करके प्रथम वैष्णव श्राध्द करे । ब्राह्मणोंको गौ, भुमि, तिल, सुवर्ण, ओढने-बिछौने आदिके सहित चारपाई, सप्तधान्य यथाशक्ती दान करे । दानमे धनकी कृपणता न करे । इस व्रतसे भगवान नृसिंह प्रसन्न होते है ।  मोक्षप्राप्त होता है । यह श्रीनृसिंहचतुर्दशीव्रत सभी कर सकते है ।

ज्येष्ठमास



ज्येष्ठ मास मे दो प्रमुख व्रतपर्वोत्सव है ।
१)गंगा दशहरा (ज्येष्ठ मास शुक्ल द्वितीया)
ज्येष्ठ  शुक्ल द्वितीयाको पावन गंगा नदीका अवतरण धरतीपर हुआ । इस तिथीको यदी सोमवार और हस्तनक्षत्र हो तो यह दिन सब पापोंको हरण करनेवाला होता है । इस दिन गंगास्नान एवं गंगापूजनसे दस प्रकारके पापोंका नाश होता है ।(तीन कायिक, चार वाचिक, तथा तीन मानसिक) बिना दिये हुए दूसरेकी वस्तु लेना, शास्त्रवर्जित हिंसा करना तथा परस्त्री गमन करना -- तीन कायिक पाप है, कटु बोलना, झूठ बोलना, परोक्षमे किसीका दोष कहना तथा निष्प्रयोजन बाते करना --चार वाचिक पाप है, तथा दूसरेके द्रव्यको अन्यायसे लेनेका विचार करना, मनसे दूसरेका अनिष्ट चिंतन करना तथा नास्तिक बुध्दि रखना--तीन मानसिक पाप है ।
इसलिये इसे दशहरा कहा जाता है । प्रात:काल गंगाजीमे स्नान करके गंगाके उत्पत्तीस्थान हिमालय एवं भगीरथका नाममंत्रसे पूजन करे । पूजामे दस प्रकारके पुष्प, दशांग धूप, दस दिपक, दस प्रकारके नैवेद्य, दस तांबूल एवं दस फल होना चाहिए । दक्षिणा भी यथाशक्ती दस ब्राह्मणोंको दे दे । दस प्रकारके पापोंका नाश होनेके लिये सभी वस्तुए दसकी संख्यामे निवेदित करे

२)वटसावित्री व्रत (ज्येष्ठ मास पूर्णिमा)
वट देववृक्ष है । वटवृक्षके मूलमे भगवान ब्रह्मा, मध्यमे विष्णु तथा अग्रभागमे महादेव है । देवी सावित्रीभी वटवृक्षमे प्रतिष्ठित रहती है । पाच वटोंसेयुक्त स्थानको पंचवटी पहते है । हनिकारक गैसोंको नष्टकर वातावरणको शुध्द करनेमे तथा औषधीके रुपमे भी वटवृक्षका विशेष महत्त्व है । जैसे वटवृक्ष दीर्घकालतक अक्षय बना रहता है, उसी प्रकार दीर्घ आयु, अक्षय सौभाग्य तथा अभ्युदयकी प्राप्तिके लिये वटवृक्षकी आराधना की जाती है । इसी वटवृक्षके नीचे सावित्रीने अपने पतिव्रतसे मृत पतिको पुन: जिवीत किया था । तबसे यह व्रत सावित्रीके नामसे किया जाता है । प्रात:काल स्नान करके महिलाए अपने अखंड सौभाग्य एवं कल्याणके लिये यह व्रत करे । वटवृक्षके मूलको जलसे सींचे । यथाविधी पूजन करे । साथमे यमराजका भी पूजन करे ।  १०८ बार सूत लपेटकर परिक्रमा करे । सौभाग्य वस्तुंका ब्राह्मण्को दान करे । इस व्रतसे सभी मनोरथ पूर्ण होते है, सारी विपत्तीया दूर होती है ।

आषाढमास



आषाढ मास मे दो प्रमुख व्रतपर्वोत्सव है ।
१)जगन्नाथकी रथयात्रा (आषाढ मास शुक्ल द्वितीया)
आषाढ मास शुक्ल द्वितीयासे दशमीतक नौ दिन यह पुरीमे होनेवाली जगन्नाथकी रथयात्रा विश्वप्रसिध्द है । तीन रथोंका प्रचलन होता है । बलभद्रजीके रथका नाम तालध्वज, सुभद्राजीके रथका नाम देवदलन, जगन्नाथजीके रथका नाम नंदीघोष है । तीनो विग्रहोंको रत्नवेदीसे पहण्डी करके रथोंपर अलग-अलग लाते है तथा बडदाण्डसे होकर रथोंको श्रीगुण्डिचा मंदिर तक खींचकर ले जाते है । ये रथ प्रतिवर्ष नयी लकडीसे बनाये जाते है और कहीं भी लोहेके काटो आदिका प्रयोग नही होता । श्रीगुण्डिचा मंदिरके शरघाबलि मैदानपर आठवे दिन तीनो रथोंको घुमाकर सीधा किया जाता है । जगन्नाथकी  यह रथयात्रा साम्य और एकताका प्रतीक है । जो यह रथयात्रामे सहभागी होता है, उसके करोडो जन्मोंके पाप नष्ट होते है ।

२)गुरुपूर्णिमा (आषाढ मास पूर्णिमा)
पराशरकी कृपासे वेदव्यासजीका अवतरण इस भारतवसुंधरापर आषाढकी पूर्णिमाको हुआ । इसलिये इसी दिन सभी अपने-अपने गुरूकी पूजा विशेषरुपसे करते है । व्यासदेवजी गुरुओंकेभी गुरु माने जाते है । यह गुरु-पूजा विश्वविख्यात है । यह पूर्णिमा सबसे बडी पूर्णिमा मानी जाती है; क्योंकि परमात्माके ज्ञान, परमात्माके ध्यान, और परमात्माकी प्रीतीकी तरफ ले जानेवाली है यह पूर्णिमा । व्यासपूर्णिमाका पर्व वर्षभरकी पूर्णिमा मनानेके पुण्यका फल तो देता ही है, साथ ही नयी दिशा, नया संकेत भी देता है और कृतज्ञताका सदगुण भी भरता है । गुरुके प्रति कृतज्ञता ज्ञापनका अवसर, ऋषिऋण चुकानेका अवसर, गुरूकी प्रेरणा और आशीर्वाद पानेका यही अवसर है—व्यासपूर्णिमा ।






श्रावण मास



श्रावण मास मे छ्: प्रमुख व्रतपर्वोत्सव है ।
१)नागपंचमी (श्रावण मास शुक्ल पंचमी)
श्रावण मास शुक्ल पंचमीको नागपंचमीका त्योहार नागोंको समर्पित है । इस त्योहारपर  नागोंका अर्चन-पूजन होता है । नागपूजामे नागोंको गो-दुग्धसे स्नान कराते है । इस दिन केवल एक बार ही भोजन करे । प्रात:कालमे स्नान करके, उपवास करके नागोंकी पूजन करे । पुष्प, गंध, धूप, दिप एवं नॆवेद्योंसे नागोंका पूजन करे । प्रार्थना करे—जो नाग पृथ्वीपर, पानीमे निवास करते है, वे सब हमपर प्रसन्न हो, हम उनको बार-बार नमस्कार करते है ।

२)रक्षाबंधन (श्रावण मास पूर्णिमा)
श्रावण मास पूर्णिमाको रक्षाबंधनका पर्व मनाया जाता है । इस दिन सविधि स्नान करके देवता पितर और ऋषियोंका तर्पण करे । दोपहरके बाद रेशमी पीतवस्त्र लेकर उसमे सरसो, सुवर्ण, चंदन, अक्षत, और दुर्वा रखकर बांध ले । कलशकी स्थापना करके बंधा हुआ पीतवस्त्र (रक्षासूत्र) कलशपर रखकर पुष्प, गंध, धूप, दिप एवं नॆवेद्योंसे पूजन करे । उसके बाद बहन भाईके दाहिने हाथमे रक्षासूत्र बंधाती है  । इससे भाईकी विजय होती है ।

३)श्रावणी उपाकर्म (श्रावण मास पूर्णिमा)
श्रावण मास पूर्णिमाको उपाकर्मका प्रसिध्द काल माना गया है । इसी दिन ब्राह्मण वेद पारायणका शुभारंभ करते है । इसी दिन यज्ञोपवित पूजनका भी विधान है ।  इसी दिन श्रावणीपर्वभी मनाया जाता है ।

४)जन्माष्टमी (श्रावण कृष्ण अष्टमी)
श्रावण कृष्ण अष्टमीको रातके बारह बजे भगवान श्रीकृष्णका अवतार हुआ था । इसी दिन प्रात:काल स्नान करके पूरे दिन उपवास करके भगवान श्रीकृष्णका चिंतन करे । रातके बारह बजे शंख तथा घंटोंके निनादसे भगवान श्रीकृष्णका जन्मोत्सव संपन्न करे । दरवाजेपर केलेके खंबे, आमके पत्तोंसे घर सजाया जाता है । रातमे श्रीकृष्णकी मूर्तीको पंचामृतसे अभिषेक करे । षोडशोपचार पूजन करे । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इस मंत्रका उच्चारण निरंतर करे । विवीध प्रकारकी फलोंसे, मिठाईसे भगवानको नैवेद्य करे । जो इस जन्माष्टमीव्रत करता है, उसको विष्णुलोक प्राप्त होता है ।

५) श्रावणके सोमवार
श्रावणमे आशुतोष महादेवकी पूजाका विशेष महत्त्व है । सोमवार महादेवका प्रिय दिन है । अत: श्रावणके सोमवारको महादेवका षोडशोपचारसे पूजन करे । रुद्र पाठ करे । इसी दिन प्रात:काल स्नान करके पूरे दिन उपवास करके भगवान महादेवका चिंतन करे । ॐ नम: शिवायका निरंतर जप करे । सायंकालमे फिरसे महादेवका षोडशोपचारसे पूजन करे । यथाशक्ति ब्राह्मणको दान करे । फिर ब्राह्मण भोजन कराकर ही स्वयं प्रसाद ग्रहण करे ।

६) मंगलागौरीव्रत (श्रावणके मंगलवार)
श्रावणके हर मंगलवारको मंगलागौरीका पूजन करे । यह व्रत विवाहके बाद प्रत्येक स्त्रीको पाच वर्षोंतक करना चाहिये । इसी दिन प्रात:काल स्नान करके पूरे दिन उपवास करके सोलह प्रकारके पुष्प, सोलह प्रकारके वृक्षके पत्ते, सोलह प्रकारके अनाज, सोलह फल, आदिसे मंगलागौरीकी पूजा करे । सोलह विवाहित स्त्रियोंको भी निमंत्रित करे ।  सोलह प्रकारके पक्वानका भोग लगाए । फिर सोलह मुखवाले दिपकसे आरती करे । यथाशक्ति ब्राह्मणको दान करे । फिर ब्राह्मण भोजन कराकर ही स्वयं प्रसाद ग्रहण करे रात्री जागरण करके दूसरे दिन निर्माल्यका विसर्जन करे ।