श्रीमद भागवत पुराणके
द्वादश स्कंधमे कलियुगके धर्मका वर्णन किया है । कलियुगका
काल है—४,३२,०००वर्ष । अबतक तो लगभग ५,०००वर्ष पुरे हो गये है । ज्यों-ज्यों
आता जायगा त्यो-त्यो धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, बल और, स्मरणशक्तिका लोप
होता जायेगा । कलियुगमे जिसके पास धन होगा उसीको लोग कुलीन, सदाचारी और सदगुणी
मानेंगे । जिसके हाथमे शक्ती होगी, वही धर्म और न्यायकी व्यवस्था अपने अनुकूल करा
सकेगा । विवाह-संबंधके लिये कुल-शील-योग्यता आदिकी परख-निरख नही रहेगी,
युवक-युवतीकी पारस्परिक रूचिसे ही संबंध हो जायेगा । व्यवहारकी निपूणता सचाई और
ईमानदारी नही रहेगी; जो जितना छल-कपट कर सकेगा, वह उतना ही व्यवहारकुशल माना जायेगा
। स्त्री और पुरूष श्रेष्ठताका आधार उनका शील-संयम न होकर केवल रतिकौशल ही रहेगा ।
ब्राह्मण्की पहचान उसके गुण-स्वभावसे नही, यज्ञोपवीतसे हुआ करेगी । जो बोलचालमे
जितना चालाक होगा, उसे उतना ही बडा पंडित माना जायेगा । जो जितना आधिक दंभ-पाखंड
कर सकेगा, उसे उतना ही बडा साधु समझा जायेगा । विवाहके लिये एक-दूसरेकी स्वीकृति ही
पर्याप्त होगी, शास्त्रीय विधि-विधान की, संस्कार आदिकी कोई आवश्यकता न समझी जायेगी
। बाल आदि सवारकर कपडे-लत्तेसे लैस हो जाना ही स्नान माना जायेगा । लोग दूरके तालाबको
तीर्थ मानेंगे और निकटके तीर्थ गंगा-गोमती, माता-पिता आदिकी उपेक्षा करेंगे । सिरपर
बडे-बडे बाल—काकुल रखाना ही शारीरिक् सौंदर्यका चिन्ह समझा जायेगा और जीवनका सबसे बडा
पुरूषार्थ होगा—अपना पेट भर लेना । जो जितनी ढिठाईसे बात कर सकेगा, उसे उतना ही सच्चा
समझा जायेगा । योग्यता—चतुरईका सबसे बडा लक्षण यह होगा कि मनुष्य अपने कुटुंबका पालन
कर ले । धर्मका सेवन बहुत कम लोग करेंगे; जो करेंगे भी, वे इसलिये कि मेरा यश हो, इस
प्रकार जब सारी पृथ्वीपर दुष्टोंका बोलबाला हो जायेगा, तब राजा होनेका कोई नियम न रहेगा;
ब्राह्मण, क्षत्रिय्, वैश्य अथवा शूद्रोंमे जो बली होगा, वही राजा बन बैठेगा । उस समयके
नीच राजा अत्यंत निर्दय एवं क्रूर होंगे; लोभी तो इतने होंगे कि उनमे और लुटेरोंमे
कोई अंतर न किया जा सकेगा । वे प्रजाकी पूंजी एवं स्त्रीयोंतकको छीन लेंगे । उनसे डरकर
प्रजा पहाडो और जंगलोंमे भाग जायेगी । उस समय प्रजा तरह-तरहके शाक, कंद-मूल, मांस,
मधु, फल-फूल और बीज-गुठली आदि खा-खाकर अपना पेट भरेगी । कभी वर्षा न होगी, सूखा पड
जायेगा; तो कभी कर-पर कर लगाये जायेंगे । कभी कडाकेकी सर्दी पडेगी तो कभी पाला पडेगा,
कभी आंधी चलेगी, कभी गरमी पडेगी, तो कभी बाढ आ जायेगी । इन उत्पातोंसे तथा आपसके संघर्षसे
प्रजा अत्यंत पीडित होगी, नष्ट हो जायेगी । लोग भूख-प्यास तथा नाना प्रकारकी चिंताओंसे
दुखी रहेंगे । रोगोंसे तो उन्हे छुट्कारा ही न मिलेगा । मनुष्योंकी आयु केवल बीस या
तीस वर्षकी होगी । वर्ण और आश्रमोंका धर्म बतलानेवाला वेद-मार्ग नष्टप्राय हो जायेगा
। धर्ममे पाखंडकी प्रधानता हो जायेगी । मनुष्योंमे चोरी, झूठ, हिंसा आदि कुकर्मोंकी
वृध्दी हो जायेगी । चारो वर्णोंके लोग शूद्रोंके समान हो जायेंगे । वानप्रस्थी और संन्यासी
आदि विरक्त आश्रमवाले भी घर-गृहस्थी जुटाकर गृहस्थोंका-सा व्यापार करने लगेंगे । मनुष्योंका
स्वभाव गधों-जैसा दु:सह बन जायेगा, लोग प्राय: गृहस्थीका भार ढोनेवाले और विषयी हो
जायेंगे । ऎसी स्थितिमे धर्मकी रक्षा करनेके लिये सत्त्वगुण स्वीकार करके स्वयं भगवान
अवतार ग्रहण करेंगे ।
कलियुग दोषोंका खजाना है, परंतु इसमे एक बहुत बडा गुण है । वह
गुण है कि कलियुगमे केवल भगवान श्रीकृष्णका संकीर्तन करनेमात्रसे ही सारी आसक्तियां
छूट् जाती है और परमात्माकी प्राप्ती हो जाती
है ।
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