कलियुग
लगभग ५००० साल पुर्व कलियुग शुरू हुवा है। कलियुगकी आयु ४,३२,०००वर्षोंकी है
कलियुगके प्रभावसे उत्तरोत्तर धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल, और स्मरणशक्तिका लोप होता जायेगा। (भागवत १२.२.१)
जिसके पास धन होगा उसीको कुलीन, सदाचारी और सद्गुणी माना जायेगा। १२.२.२
शक्तिवान मनुष्य धर्मकी और न्यायकी व्यवस्था अपने अनुकूल करा सकेगा। १२.२.२
विवाहसंबंधके लिये कुल-शील-योग्यता आदिकी पारख-निरख नही रहेगी, युवक-युवतीकी पारस्परिक रूचिसे ही संबंध हो जायेगा। १२.२.३
व्यवहारकी निपुणता सच्चाई और ईमानदारीमे नही रहेगी, जो जितना छल कपट करेगा वह उतना ही कुशल माना जायेगा। १२.२.३
स्त्री-पुरूषकी श्रेष्ठताका आधार उनका शील-संयम न होकर केवल रतिकौशल ही रहेगा। १२.२.३
ब्राह्मणकी पहचान उसके गुण-स्वभावसे नही, केवल यज्ञोपवितसे ही होगी। १२.२.३
जो बोल-चालमे जितना चालाक होगा, उसे उतना ही बडा पंडित माना जायेगा। १२.२.४
जो जितना आधिक दंभ पाखंड कर सकेगा उसे उतनाही बडा साधु समझा जायेगा। १२.२.५
विवाहके लिये एक-दूसरेकी स्वीकृति ही पर्याप्त होगी।१२.२.५
शास्त्रीय विधि-विधानकी और संस्कारकी कोई आवश्यकता न समझी जायेगी। १२.२.५
लोग दूरके तालाबको तीर्थ मानेंगे और निकटके तीर्थ गंगा-गोमती और माता-पिता आदिकी उपेक्षा करेंगे। १२.२.६
अपना पेट भर लेना ही जीवनका सबसे बडा पुरूषार्थ होगा। १२.२.६
जो जितनी ढिठाईसे बात कर सकेगा, उसे उतना ही सच्चा समझा जायेगा।१२.२.३
अपने कुटुंबका पालन करना ही योग्यता-चतुराईका सबसे बडा लक्षण होगा १२.२.७
धर्मका सेवन बहुत कम लोग करेंगे।१२.२.७
धर्मका सेवन केवल यशके लिये ही करेंगे।१२.२.७
राजा होनेका कोई नियम न रहेगा।१२.२.८
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य अथवा शूद्रोंमे जो बलवान होगा, वही राजा बन बैठेगा। १२.२.८
वे नीच राजा अत्यंत निर्दय एवं क्रूर होंगे।१२.२.९
वे नीच राजा लुटेरों जैसे लोभी होंगे। १२.२.९
वे नीच राजा प्रजाकी पूँजी एवं पत्नियोंतकको छीन लेंगे। १२.२.९
कभी वर्षा न होगी, सूखा पड जायेगा। तो कभी कर पर कर लगाये जायेंगे। कभी कडाकेकी सदर्ी पडेगी। १२.२.१०
तो कभी पाला पहेगा। आंधी चलेगी, कभी गरमी पडेगी तो कभी बांढ आ जायेगी। १२.२.१०
इन उत्पातोंसे तथा आपसके संघर्षसे प्रजा अत्यंत पिडित होगी। १२.२.१०
लोग भूख-प्यास तथा नाना प्रकारकी चिंताओंसे दुःखी होंगे। १२.२.११
इससे रोगराई बढकर मनुष्योंकी आयु केवल बीस या तीस वर्षकी होगी। १२.२.११
वर्ण और आश्रमोंका धर्म मार्ग नष्ट हो जायेगा। १२.२.१२
धर्ममे पाखंडता की प्रधानता होगी। १२.२.१३
लोग चोरी, झूठ तथा निरपराध हिंसा आदि नाना प्रकारके कुकर्मोंसे जीविका चलाने लगेंगे। १२.२.१३
वानप्रस्थी और संन्यासी आदि विरक्त आश्रमवाले भी घर-गृहस्थी जुटाकर गृस्थोंका-सा व्यापार करने लगेंगे। १२.२.१४
कलियुगका अंत होते-होते मनुष्योंका स्वभाव गधों-जैसा दुःसह बन जायेगा। १२.२.१६
लोग प्रायः गृहस्थीका भार ढोनेवाले और विषयी हो जायेंगे। १२.२.१६
ब्रह्मचारी ब्रह्मचर्य-व्रतसे रहित और अपवित्र रहने लगेंगे। गृहस्थ दूसरोंको भिक्षा देनेके बदले स्वयं भीख माँगने लगेंगे। १२.३.३३
वानप्रस्थी गाँवोंमे बसने लगेंगे। संन्यासी धनके अत्यंत लोभी अर्थपिशाच हो जायेंगे। १२.३.३३
कलियुग दोषोंका खजाना है, परंतू इसमे एक बहुत बडा गुण है। १२.३.५१
श्रीकृष्णका चिंतन करनेसे ही सारी आसक्तीयाँ छूट जाती है। १२.३.५१
साधकोंके हृदयमे स्थित होकर भगवान उनके अशुभ संस्कारोंको सदाके लिये मिटा देते है।१२.३.४७
हजारो जन्मोंके पापके ढेर-के-ढेर भी क्षणभरमे ही भस्म कर देते है।१२.३.४९
जो मनुष्य भगवानके रूप, गुण, लीला, धाम और नामके श्रवण, संकीर्तन, ध्यान, और पूजन निष्काम भावनासे करते है, उनके हृदयमे भगवान विराजमान हो जाते है। १२.३.४९
परमात्माकी प्राप्ती हो जाती है। १२.३.५१
सत्ययुगमे भगवानका ध्यान करनेसे, त्रेतायुगमे यज्ञ करनेसे, द्वापारयुगमे भगवानकी विधीपुर्वक पुजासेवासे जो फल मिलता है, वह कलियुगमे केवल हरि नाम-संकीर्तन करनेसे ही प्राप्त हो जाता है। १२.३.५२
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