मेरा भारत
हमारे भारत के हिंदु, बौध्द, जैन, यहुदी, पारसी, ईसाई, मुस्लिम, सिक्ख तथा अन्य सभी नागरिकों को समभाव से प्रेमपूर्ण मैत्री-भावना और एकत्व की भावना सहित समर्पित !
राष्ट्रिय आचार-संहिता
१. देशभक्ति--हमारे लिए अपनी मातृभूमि भारत का स्थान सबसे प्रथम, सबसे बढ कर और सबसे ऊँचा होना चाहिए। देश की भलाई मे हमारी भलाई है। इसलिए अपने देश भारत के लिए हम अपना जीवन तक दे देने के लिए प्रसन्नता से तैयार रहे। हमे अपने बच्चों के तथा परिवार के अन्य सब सदस्यों के मन मे देशभक्ति की भावना तथा अपने देश और अपने देशवासियों के अति प्रेम और सेवा की भावना भरनी चाहिए।
२. कर्तव्य--हमारा पहला और मुख्य कर्तव्य भगवान और सद्-आचरण के प्रति है। नेक जीवन जीना हमारे राष्ट्र की सबसे मूल्यवान और उत्तम सेवा है, क्योंकि इससे हमारी मातृभूमि के गौरव मे वृध्दी होगी।
३. चरित्र--चरित्र सबसे बढा धन है। एक शुध्द और भ्रष्ट न होने वाला नागरिक हमारे देश की सबसे बडी संपत्ति है। यह अत्यावश्यक और अनिवार्य है। इसलिए अच्छे चरित्र को सबसे प्रथम और अधिक महत्व देना होगा। हमारे राष्ट्र की भलाई और उसकी भावी सुदृढता इसी पर निर्भर करती है।
४. स्वास्थ्य--स्वास्थ्य सफलता का आधार है। स्वास्थ्य ही सच्चा धन है। चरित्र के बाद यही सबसे बडी राष्ट्रिय संपत्ति है। आदर्श नागरिक होने के नाते राष्ट्र के प्रति हमारा मुख्य कर्तव्य है--अपने चरित्र का निर्माण और स्वास्थ्य की रक्षा करना।
५. सद्गुण--हम सब मिल कर जुआ खेलना, शराब पीना, नशीली दवाओं का सेवन धुम्रपान, पान खाना इत्यादि दुर्व्यसनों को नष्ट कर दे। हम धूसखोरी, भ्रष्टाचार, स्वार्थपरता, अनैतिकता, बेईमानी और दुराचरण जैसी बुराइयों को जड से उखाड दे। अपने राष्ट्र के प्रति विश्वासघात एक अपराध है और एक राष्ट्रविरोधी अक्षम्य दोष है।
६. सार्वजनिक-संपत्ति--हम समस्त सार्वजनिक संपत्ति के रक्षक है। राष्ट्र की संपत्ति को हम बिगाडे नही, उसका दुरूपयोग न करे, उसकी चोरी न करे या उसे नष्ट न करे। हम प्रेमपूर्वक और सावधानी से उसकी रक्षा करे। अपने देश को हम स्वच्छ और निर्मल रखे। यह हमारा पावन कर्तव्य है।
७. एक ही परिवार--सभी नागरिक हमारे भाई है। भाईचारे की इस भावना को हम हृदय से अनुभव करे। हम एक-दूसरे को प्रेम करे और एक हो कर रहे; क्योंकि हम एक ही परिवार है।
८. धर्म--सभी धर्मो, पंथो और मतों के हम समान आदर की भावना रखे। सब धर्मो के अनुयायियों के हम अपने ही भाई मान कर प्रेम करे। दूसरोंसे हम वैसा ही व्यवहार करे, जैसा व्यवहार हम उनसे अपने प्रति चाहते है। सभी संप्रदायों को परस्पर प्रेम के बंधन मे बंध कर मिल कर रहना चाहिए।
९. उग्रतावर्जन--प्रत्येक परिस्थिति मे, किसी भी मूल्य पर हर प्रकार की उग्रता और घृणा से बचे; क्योंकि यह हमारे राष्ट्र के निर्मल नाम पर कलंक है। यह हमारी अंतरात्मा को नष्ट कर देने वाली और हमारे देश की भलाई और उन्नति को अत्यधिक हानि पहुँचाने वाली है। यह हमारे राष्ट्र के आदर्श के पूर्णरूप से प्रतिकूल और विरूध्द है।
१०. मितव्यय--अपने जीवन मे सादा जीवन और उच्च विचार का सिध्दांत अपनाये। असंयमी न बने। हम बरबाद करने से बचे। हम मितव्ययिता(कम खर्च) का अभ्यास करे। जो कुछ हमारे पास है, उसने अपने से कम भाग्यशाली साथी नागरिको को सहभागी(हिस्सेदार)बनाये। यह एक ऐसा गुण है जिसकी आज हमारे भारत को अत्यंत आवश्यकता है।
११. कानून--हम कानून के शासन का आदर करे और सामाजिक न्याय को बनाये रखे। इसी मे हमारे देश की भलाई की तथा आज और कल के और भी अधिक अच्छे भारत की ओर क्रमानुसारी प्रगति की गारंटी निहित है।
१२. अहिंसा--अहिंसा हमारा सबसे उत्तम गुण है। करूणा का एक दिव्य गुण है। पसु-पक्षियों की सुरक्षा करना हमारा पावन कर्तव्य है। यह भारत देश की विशेष शिक्षा है। हम प्राणी मात्र के प्रति दयावान हो और इस प्रकार सच्चे भारतीय बने। प्रयत्नपूर्वक पशुओं के प्रति करुणा की साकार मूर्ति बने। अपने दैनिक जीवन और कर्मो मे करूणा और भलाई को अपनाये।
१३. जैविक परिपार्श्व और पर्यावरण--मानव और प्रकृति अलग नही किये जा सकते है। मनुष्य और उसका प्राकृतिक पर्यावरण परस्पर जुडे हुए है। और दोनो एक-दूसरे पर निर्भर है। प्रकृति की प्रत्येक वस्तु की हमारी सुरक्षा और हमारे पोषण मे सहायता है। अतः हम सब प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे। जैविक पर्यावरण-संतुलन बनाये रखने मे सहायता देना हमारा कर्तव्य है। हमारे सुरक्षित जीवन-निर्वाह और सर्वतोमुखी कल्याण के लिए यह अनिवार्य है। सार्वजनिक स्थानो को प्रदूषित करना तथा देश के जल और वायु को प्रदूषित करना राष्ट्रीय अपराध है। अतीत मे की गयी गलतियों को हम सुधारना होगा।
१४. एकता--देश के लोग जितने अधिक एक हो कर रहेंगे, बाधाओं को पार करने और संकटोंका सामना करने की उनकी क्षमता अधिक बढेगी। एक होने से हम रह सकेंगे, और अलग होने से हमारा पतन होगा। वर्तमान के भारत पर यह तथ्य विशेष रूप से लागू होता है। इसलिए अपने सभी देशवासियों के साथ हम घनिष्ठ समन्वय और प्रेमपूर्ण सद्भावना से रहे। हमारा देशप्रेम का अर्थ है--हमारे देशवासियों के प्रति प्रेम। अपनी मातृभूमि भारत के प्रति एक भारतीय नागरिक जो अर्पण कर सकता है, उनमे से यही सबसे अधिक अमूल्य सेवा है। अपने देश को सुदृढ और अभेद्य बनाने के लिए एकता की अत्यधिक आवश्यकता है।
१५. शिक्षा--हमारी शिक्षा-प्रणाली मे भारत की महान संस्कृति, उसके महान आदर्शो, श्रेष्ठ मूल्यों और जीने के सिध्दांतों के संबंध मे मूलभूत ज्ञान देना संमिलीत होना चाहिए। हमे अपनी शिक्षा को हमारे युवाओं और विद्यार्थियोंके जीवन की गुणवत्ता को पुष्ट करने और बढाने वाली बनाना होगा। यह हमे सच्चे भारतीय बनाने वाली होनी चाहिए।
इस प्रकार एक सच्चे नागरिक के रूप मे आप चमके और अपने जीने के ढंग तथा आचरण के द्वारा अपमे देश की उत्तम रूप से सेवा करे।
संकलन---स्वामी मोहनदास, भारतीय तत्त्वज्ञान-प्रचारक (९४२०८५९६१२) नारायणधाम
भास्करा-एच-विश्व,
धायरी, पुणे - ४१
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