प्राचीन भारतीय इतिहासके अवलोकनसे प्रत्येक निष्पक्ष विद्वान इस निष्कर्षपर
पहुचेगा कि प्राच्य-विद्या-विशारदोंने गणितमे भी संसारके विद्याकोषमे बहुतसे
अमूल्य रत्न समर्पित किये है । गणित विज्ञानकी उद्-घाटिका है । विज्ञानकी उन्नति विशेषत: गणितपर निर्भर है । पश्चिमके आद्य विद्वानोंने ईसासे पूर्व
प्राचीन भारतने अंकविद्यामे जो विज्ञता प्राप्त की थी, इसका उल्लेख किया है । शतोत्तर
गणना भी भारतीय मस्तिष्ककी देन है । प्राचीन भारतीय ब्राह्मणोंको हरमन हेकल
बीजगणितका आदि रचयिता मानता है । शून्यका उपयोग अपने छंद:सूत्रमे ईसाके २००वर्ष
पूर्व किया था दूसरी भी और बहुत-सी पुरानी गणित तथा छंदकी
पुस्तकोंमे इसका प्रयोग पाया जाता है । पंचसिध्दांतिकामे भी, जो ५०५ईस्वीका ग्रंथ
है, शून्यका कई बार प्रयोग किया गया है । भास्करने ईस्वी५२५मे अपने महाभास्करीयमे शून्यका प्रयोग किया है ।
भारतीय विद्वानोंके अथक परिश्रम तथा खोजसे जो सामग्री प्राप्त हुई है, उससे यह निर्विवाद सिध्द
हो गया है कि संसारको संख्याए लिखनेकी आधुनिक प्रणाली भारतने दी है । वर्गमूल,
घनमूल निकालनेकी रीति भारतने दी है । आर्यभट्टीयमे इसका उल्लेख है । संभव है, आर्यभट्टके पूर्वके भारतीय गणितज्ञोंने यह रीति निकाली हो । आर्यभट्ट कहीपर भी
इस बातका श्रेय नही लेते कि वर्गमूल, घनमूल निकालनेकी रीति उन्होने ही अविष्कार की । ये रितीया आठवी शताब्दीके मध्यमे भारत वर्षसे अरबोंके पास
पहुची और उनके द्वारा अन्य देशोंमे गयी । प्राचीन
भारतीयोंने बीजगणितमे बडी दक्षता प्राप्त की थी । बडे गणितज्ञोंमे मुख्यत: आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त,
भास्कराचार्य, श्रीधराचार्य इस विषयके बडे विद्वान थे । इनसाइक्लोपीडीया के अनुसार
यही बडे
गणितज्ञोंको युनानके बीजगणितज्ञ डायोफैन्टससे कही आधिक विषयका ज्ञान था ।
कोटीके बाद गणनाके कोष्टकसे पता होता है, प्राचीन भारतीयोंका ज्ञान कितना
विशाल था ।
१०० कोटी
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= १ अयुत
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१०० अयुत
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= १ नियुत
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१०० नियुत
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= १ कंकर
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१०० कंकर
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= १ विवर
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१०० विवर
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= १ क्षोम्य
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१०० क्षोम्य
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= १ निवाह
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१०० निवाह
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= १ उत्संग
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१०० उत्संग
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= १ बहुल
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१०० बहुल
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= १ नागबाल
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१०० नागबाल
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= १ तितिलंब
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१०० तितिलंब
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= १ व्यवस्थानप्रज्ञप्ति
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१०० व्यवस्थानप्रज्ञप्ति
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= १ हेतुहील
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१०० हेतुहील
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= १ करहु
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१०० करहु
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= १ हेतुविंद्रीय
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१०० हेतुविंद्रीय
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= १ समाप्तलंभ
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१०० समाप्तलंभ
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= १ गणनागति
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१०० गणनागति
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= १ निरवद्य
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१०० निरवद्य
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= १ मुद्रावाल
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१०० मुद्रावाल
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= १ सर्वबाल
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१०० सर्वबाल
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= १ विषमज्ञगति
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१०० विषमज्ञगति
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= १ सर्वज्ञ
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१०० सर्वज्ञ
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= १ विभुतंगमा
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१०० विभुतंगमा
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= १ तल्लाक्षण
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