Thursday, 10 August 2017

अंकविद्या




प्राचीन भारतीय इतिहासके अवलोकनसे प्रत्येक निष्पक्ष विद्वान इस निष्कर्षपर पहुचेगा कि प्राच्य-विद्या-विशारदोंने गणितमे भी संसारके विद्याकोषमे बहुतसे अमूल्य रत्न समर्पित किये है । गणित विज्ञानकी उद्-घाटिका है । विज्ञानकी उन्नति विशेषत: गणितपर निर्भर है । पश्चिमके आद्य विद्वानोंने ईसासे पूर्व प्राचीन भारतने अंकविद्यामे जो विज्ञता प्राप्त की थी, इसका उल्लेख किया है । शतोत्तर गणना भी भारतीय मस्तिष्ककी देन है । प्राचीन भारतीय ब्राह्मणोंको हरमन हेकल बीजगणितका आदि रचयिता मानता है । शून्यका उपयोग अपने छंद:सूत्रमे ईसाके २००वर्ष पूर्व किया था   दूसरी भी और बहुत-सी पुरानी गणित तथा छंदकी पुस्तकोंमे इसका प्रयोग पाया जाता है । पंचसिध्दांतिकामे भी, जो ५०५ईस्वीका ग्रंथ है, शून्यका कई बार प्रयोग किया गया है । भास्करने ईस्वी५२५मे  अपने महाभास्करीयमे शून्यका प्रयोग किया है । भारतीय विद्वानोंके अथक परिश्रम तथा खोजसे जो सामग्री प्राप्त हुई है, उससे यह निर्विवाद सिध्द हो गया है कि संसारको संख्याए लिखनेकी आधुनिक प्रणाली भारतने दी है । वर्गमूल, घनमूल निकालनेकी रीति भारतने दी है । आर्यभट्टीयमे इसका उल्लेख है । संभव है, आर्यभट्टके पूर्वके भारतीय गणितज्ञोंने यह रीति निकाली हो । आर्यभट्ट कहीपर भी इस बातका श्रेय नही लेते कि वर्गमूल, घनमूल निकालनेकी रीति उन्होने ही अविष्कार की । ये रितीया  आठवी शताब्दीके मध्यमे भारत वर्षसे अरबोंके पास पहुची और उनके द्वारा अन्य देशोंमे गयी ।  प्राचीन भारतीयोंने बीजगणितमे बडी दक्षता प्राप्त की थी । बडे   गणितज्ञोंमे मुख्यत: आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य, श्रीधराचार्य इस विषयके बडे विद्वान थे । इनसाइक्लोपीडीया के अनुसार यही  बडे   गणितज्ञोंको युनानके बीजगणितज्ञ डायोफैन्टससे कही आधिक विषयका ज्ञान था ।
कोटीके बाद गणनाके कोष्टकसे पता होता है, प्राचीन भारतीयोंका ज्ञान कितना विशाल था ।
१०० कोटी
=  १ अयुत
१०० अयुत
=  १ नियुत
१०० नियुत
=  १ कंकर
१०० कंकर
=  १ विवर
१०० विवर
=  १ क्षोम्य
१०० क्षोम्य
=  १ निवाह
१०० निवाह
=  १ उत्संग
१०० उत्संग
=  १ बहुल
                              
१०० बहुल
=  १ नागबाल
१०० नागबाल
=  १ तितिलंब
१०० तितिलंब
=  १ व्यवस्थानप्रज्ञप्ति
१०० व्यवस्थानप्रज्ञप्ति
=  १ हेतुहील
१०० हेतुहील
=  १ करहु
१०० करहु
=  १ हेतुविंद्रीय
१०० हेतुविंद्रीय
=  १ समाप्तलंभ
१०० समाप्तलंभ
=  १ गणनागति
१०० गणनागति
=  १ निरवद्य
१०० निरवद्य
=  १ मुद्रावाल
१०० मुद्रावाल
=  १ सर्वबाल
१०० सर्वबाल
=  १ विषमज्ञगति
१०० विषमज्ञगति
=  १ सर्वज्ञ
१०० सर्वज्ञ
=  १ विभुतंगमा
१०० विभुतंगमा
=  १ तल्लाक्षण
                                                                                                                                           

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