अविद्याके वशीभूत होकर
कामनापूर्वक किये हुए निषिध्द कर्मोंके परिणाममे अनेक तरहकी नारकी गतिया होती है ।
दक्षिणकी ओर नरकलोकमे सूर्यके पुत्र यमराज अपने सेवकोंके सहित रहते है । वे अपने
दूतोंके द्वारा लाये हुए मृत प्राणियोंके सुक्ष्म शरीरको उनके दुष्कर्मोंके अनुसार
पापका फल दंड देते है । कर्मभावनामे
भेद होनेके कारण
गती विवीध
प्रकारकी होती है ।
जो पुरूष दुसरोंके धन, संतान, अथवा स्त्रीयोंका
हरण करता है, उसे अत्यंत
भयानक यमदूत कालपाशमे बांधकर तामिस्त्र नरकमे गिरा देते है । जो पुरूष किसी दुसरोंको धोखा देकर उसकी स्त्रीको भोगता है, वह अंधतामिस्त्र
नरकमे पडता है । जो पुरूष यह शरीर
ही मै हू और ये स्त्री-धन आदि मेरे है ऎसी बुध्दीसे दुसरे प्राणियोंसे द्रोह करके
निरंतर अपने कुटुंबके ही
पालन-पोषणमे लगा रहता है, वह रौरव नरकमे गिरता है । जो पुरूष अपने कुटुंबकी
भी परवा
न कर केवल अपने
ही शरिरका पालन-पोषण करता है, वह महारौरव नरकमे गिरता है । जो पुरूष अपना पेट पालनेके लिये जिवीत पशू या पक्षियोंको रांधता है, वह कुंभीपाक नरकमे गिरता
है । जो
पुरूष माता,पिता,ब्राह्मण और वेदसे
विरोध करता है, वह कालसूत्र
नरकमे गिरता है । जो पुरूष
वैदिक मार्गको छोडकर पाखंडपूर्ण धर्मोंका आश्रय लेता है
वह असिपत्रवन
नरकमे गिरता है । जो पुरूष राजा होकर निरपराध मनुष्यको दंड देता है, वह सूकरमुख नरकमे गिरता
है । जो पुरूष
खटमल आदि जीवोंकी हिंसा करता है, वह अंधकूप नरकमे गिरता है । जो पुरूष बिना पंचमहायज्ञ(१.ब्रह्मयज्ञ-गुरूजन पूजन, २.पितृयज्ञ-तर्पण, ३.देवयज्ञ-देवतापूजन, ४.भूतयज्ञ-गोग्रास, ५.मनुष्ययज्ञ-अतिथी सत्कार) किये तथा जो
कुछ मिले, उसे बिना किसी दुसरेको दिये स्वयं ही खा लेता है, वह कृमिभोजन नरकमे गिरता है । जो पुरूष चोरी या बरजोरीसे आपत्तीके बिना किसी दुसरेके सुवर्ण और रत्नांदिका
हरण करता है, वह संदंश नरकमे गिरता है । जो पुरूष अगम्या स्त्रीके साथ
संभोग करता है, वह तप्तसूर्मी नरकमे गिरता
है । जो पुरूष
पशू आदि
सभीके साथ व्यभीचार करता है, वह वज्रकंटकशाल्मली नरकमे गिरता है । जो पुरूष श्रेष्ठ कुलमे जन्म पाकरभी धर्मकी मर्यादाका उच्छेद करता
है, वह वैतरणी नरकमे गिरता है । जो पुरूष
शॊच और आचारके नियमोंका परित्याग तथा लज्जाको तिलांजलि देकर
शूद्रोंके साथ पशुओंके समान आचरण करता है, वह पूयोद नरकमे गिरता
है । जो
ब्राह्मण पुरूष कुत्ते पालते और पशुकी शिकार करते है, वह प्राणरोध नरकमे गिरता
है । जो
पुरूष पाखंडपूर्ण
यज्ञोंमे पशूओंका वध करता है, वह वैसस
नरकमे गिरता है । जो द्विज पुरूष
कामातुर होकर अपनी सवर्णा भार्याको वीर्यपान
कराता है, वह लालभक्ष नरकमे गिरता है । जो
पुरूष किसीके घरमे आग लगा देते है, किसीको विष दे देते है, व्यापारियोंकी टोलियोंको
लूट लेते है, वह सारमेयादन
नरकमे गिरता है । जो पुरूष
किसीकी गवाही देनेमे, व्यापारमे अथवा दानके समय किसी भी तरह
झूठ बोलता है, वह अवीचिमान
नरकमे गिरता है । जो ब्राह्मण अथवा कोई भी पुरूष प्रमादवश मद्यपान या सोमपान करता है, वह अयःपान नरकमे गिरता है । जो पुरूष निम्न श्रेणीका होकर भी अपनेसे श्रेष्ठोंका विशेष सत्कार
नही करता, वह क्षारकर्दम
नरकमे गिरता है । जो पुरूष
नरमेधादिके द्वारा भैरव, यक्ष, राक्षस आदिका यजन करता है, वह रक्षोगणभोजन नरकमे गिरता
है । जो
पुरूष निरपराध पशू-प्राणीयोंकी हत्या करके आनंदित होता है, वह शूलप्रोत
नरकमे गिरता है । जो पुरूष
उग्र स्वभावसे दुसरे जीवोंको पीडा पहुचाता है, वह छळ-दंदशूक
नरकमे गिरता है । जो पुरूष
दुसरे प्राणीयोंको अधेरी खत्तियोंमे डाल देता है, वह अवटनिरोधन नरकमे गिरता है । जो पुरूष अपने घर आये अतिथी-अभ्यागतोंकी ओर कुटिल दृष्टिसे देखता है,
वह पर्यावर्तन नरकमे गिरता है । जो पुरूष
अपनेको बडा धनवान समझकर अभिमानवश सबको टेढी नजरसे देखता है,
सभीपर संदेह रखता है, पैसा कमाने, बढाने और बचानेमे तरहके पाप करता है, वह सूचीमुख नरकमे गिरता है ।
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