Sunday, 20 August 2017

नरक यातना




अविद्याके वशीभूत होकर कामनापूर्वक किये हुए निषिध्द कर्मोंके परिणाममे अनेक तरहकी नारकी गतिया होती है । दक्षिणकी ओर नरकलोकमे सूर्यके पुत्र यमराज अपने सेवकोंके सहित रहते है । वे अपने दूतोंके द्वारा लाये हुए मृत प्राणियोंके सुक्ष्म शरीरको उनके दुष्कर्मोंके अनुसार पापका फल दंड देते है । कर्मभावनामे  भेद होनेके कारण  गती  विवीध प्रकारकी होती है ।
जो पुरूष दुसरोंके  धन, संतान, अथवा स्त्रीयोंका हरण  करता है, उसे अत्यंत भयानक यमदूत कालपाशमे बांधकर तामिस्त्र नरकमे गिरा देते है । जो पुरूष किसी दुसरोंको धोखा देकर उसकी स्त्रीको  भोगता है, वह अंधतामिस्त्र नरकमे पडता है । जो पुरूष यह शरीर ही मै हू और ये स्त्री-धन आदि मेरे है ऎसी बुध्दीसे दुसरे प्राणियोंसे द्रोह करके निरंतर अपने  कुटुंबके ही पालन-पोषणमे लगा रहता है, वह रौरव नरकमे गिरता है । जो पुरूष अपने  कुटुंबकी भी परवा   कर केवल अपने ही शरिरका पालन-पोषण करता है, वह महारौरव नरकमे गिरता है । जो पुरूष अपना पेट पालनेके लिये जिवीत पशू या पक्षियोंको रांधता है, वह कुंभीपाक नरकमे गिरता है । जो पुरूष माता,पिता,ब्राह्मण और वेदसे विरोध करता है, वह कालसूत्र नरकमे गिरता है । जो पुरूष वैदिक मार्गको छोडकर पाखंडपूर्ण धर्मोंका  आश्रय लेता है वह असिपत्रवन नरकमे गिरता है । जो पुरूष राजा होकर निरपराध मनुष्यको दंड देता है, वह सूकरमुख नरकमे गिरता है । जो पुरूष खटमल आदि जीवोंकी हिंसा करता है, वह अंधकूप नरकमे गिरता है । जो पुरूष बिना पंचमहायज्ञ(१.ब्रह्मयज्ञ-गुरूजन पूजन, २.पितृयज्ञ-तर्पण, ३.देवयज्ञ-देवतापूजन, ४.भूतयज्ञ-गोग्रास, ५.मनुष्ययज्ञ-अतिथी सत्कार)  किये तथा जो कुछ मिले, उसे बिना किसी दुसरेको दिये स्वयं ही खा लेता है, वह कृमिभोजन नरकमे गिरता है । जो पुरूष चोरी या बरजोरीसे आपत्तीके बिना किसी दुसरेके सुवर्ण और रत्नांदिका हरण करता है, वह  संदंश नरकमे गिरता है । जो पुरूष अगम्या स्त्रीके साथ  संभोग करता है, वह तप्तसूर्मी नरकमे गिरता है । जो पुरूष पशू आदि सभीके साथ व्यभीचार करता है, वह वज्रकंटकशाल्मली नरकमे गिरता है । जो पुरूष श्रेष्ठ कुलमे जन्म पाकरभी धर्मकी मर्यादाका  उच्छेद करता है, वह वैतरणी नरकमे गिरता है । जो पुरूष शॊच और आचारके नियमोंका परित्याग तथा लज्जाको तिलांजलि देकर शूद्रोंके साथ पशुओंके समान आचरण करता है, वह पूयोद नरकमे गिरता है । जो ब्राह्मण पुरूष कुत्ते पालते और पशुकी शिकार करते है, वह प्राणरोध नरकमे गिरता है । जो पुरूष पाखंडपूर्ण यज्ञोंमे पशूओंका वध करता है, वह वैसस नरकमे गिरता है । जो द्विज पुरूष कामातुर होकर अपनी सवर्णा भार्याको  वीर्यपान कराता है, वह लालभक्ष नरकमे गिरता है । जो पुरूष किसीके घरमे आग लगा देते है, किसीको विष दे देते है, व्यापारियोंकी टोलियोंको लूट लेते है, वह सारमेयादन नरकमे गिरता है । जो पुरूष किसीकी गवाही देनेमे, व्यापारमे अथवा दानके समय किसी भी तरह झूठ बोलता है, वह अवीचिमान नरकमे गिरता है । जो ब्राह्मण अथवा कोई भी पुरूष प्रमादवश मद्यपान  या सोमपान करता है, वह अयःपान नरकमे गिरता है । जो पुरूष निम्न श्रेणीका होकर भी अपनेसे श्रेष्ठोंका विशेष सत्कार नही करता, वह क्षारकर्दम नरकमे गिरता है । जो पुरूष नरमेधादिके द्वारा भैरव, यक्ष, राक्षस आदिका यजन करता है, वह रक्षोगणभोजन नरकमे गिरता है । जो पुरूष निरपराध पशू-प्राणीयोंकी हत्या करके आनंदित होता है, वह शूलप्रोत नरकमे गिरता है । जो पुरूष उग्र  स्वभावसे दुसरे जीवोंको पीडा पहुचाता है, वह छळ-दंदशूक नरकमे गिरता है । जो पुरूष दुसरे प्राणीयोंको अधेरी खत्तियोंमे डाल देता है, वह अवटनिरोधन नरकमे गिरता है । जो पुरूष अपने घर आये अतिथी-अभ्यागतोंकी ओर कुटिल दृष्टिसे देखता है, वह पर्यावर्तन नरकमे गिरता है । जो पुरूष अपनेको बडा धनवान समझकर अभिमानवश सबको टेढी नजरसे देखता है, सभीपर संदेह रखता है, पैसा कमाने, बढाने और बचानेमे तरहके पाप करता है, वह सूचीमुख नरकमे गिरता है ।

No comments:

Post a Comment