Tuesday, 15 August 2017

भीष्मपितामहका प्राणत्याग




सब धर्मोंका ज्ञान प्राप्त करनेकी इच्छासे युधिष्ठिर महाराज सभी बांधव और श्रीकृष्णसमवेत भीष्मपितामहके पास कुरूक्षेत्र गये, जो शरशय्यापर पडे हुए थे । उसी समय भरतवंशियोंके गौरवरूप  भीष्मपितामहको देखनेके लिये सभी ब्रह्मर्षी, देवर्षी और राजर्षी वहॉ आये ।
उत्तरायणका समय आ गया । भीष्मपितामहने वाणीका संयम करके मनको सब ओरसे हटाकर अपने सामने स्थित आदिपुरुष भगवानमे लगा दिया । उनकी ऑंखे भगवानपर एकटक लग गयी । उनको शर्त्रोंकी चोटसे जो पीडा हो रही थी, वह तो भगवानके दर्शनमात्रसे दूर हो गयी । अब शरीर छोडनेके समय उन्होने अपनी समस्त इंद्रियोंके वृत्ति-विलासको रोक दिया और बडे प्रेमसे भगवान स्तुति की ।
भीष्मपितामह— अब मृत्युके समय मै अपनी वह बुध्दी, जो अनेक प्रकारके साधनोंका अनुष्ठान करनेसे अत्यंत शुध्द एवं कामनारहित हो गयी है, भगवान  श्रीकृष्णके चरणोंमे समर्पित करता हू । जो सर्वदा अपने आनंदमय स्वरूपमे स्थित है, जिनका शरीर तमालके समान श्यामवर्ण है, उन भगवान  श्रीकृष्णमे मेरी हेतुरहित प्रीति हो । उन भगवान  श्रीकृष्णके प्रति मेरा शरीर, अंत:करण और मेरी आत्मा समर्पित हो जायॅ । जिन्होने गीताके रुपमे आत्मविद्याका उपदेश करके अर्जुनके अज्ञानका नाश कर दिया, उन परमपुरूष भगवान  श्रीकृष्णके चरणोंमे मेरी प्रीति बनी रहे । भगवान  श्रीकृष्ण जो मेरे प्रति अनुग्रह और भक्तवत्सलतासे परिपूर्ण थे, मेरे एकमात्र गति हो, आश्रय हो । उन्ही पार्थसारथी भगवान  श्रीकृष्णमे मुझ मरणासन्नकी परम  अप्प्रीति हो । वे ही सबके आत्मा प्रभु अभी इस मृत्युके समय मेरे सामने खडे है । ये श्रीकृष्ण साक्षात भगवान है । ये सबके आदि कारण और परम पुरुष नारायण है । इनका प्रभाव अत्यंत गूढ एवं रहस्यमय है । वे अपने भक्तोंपर अपार कृपा करते है । यही कारण है कि ऎसे समयमे जब कि मै अपने प्राणोंका त्याग करने जा रहा हू, इन भगवान  श्रीकृष्णने मुझे साक्षात दर्शन दिया है । इन भगवान  श्रीकृष्णको मै भेद-भ्रमसे रहित होकर प्राप्त हो गया हू ।
इस प्रकार भीष्मपितामहने मन, वाणी, दृष्टी और वृत्तियोंसे आत्मस्वरूप भगवान  श्रीकृष्णमे अपने आपको लीन कर दिया । उनके प्राण वही विलीन हो गये और वे शांत हो गये । उन्हे अनंत ब्रह्ममे लीन जानकर सब लोग चुप हो गये । उस समय देवता नगाडे बजाने लगे । सभी ब्रह्मर्षी, देवर्षी और राजर्षी उनकी प्रशंसा करने लगे और आकाशसे पुष्पोंकी वर्षा होने लगी । उस समय ब्रह्मर्षी, देवर्षी और राजर्षीयोंने बडे आनंदसे भगवान  श्रीकृष्णकी स्तुति की ।

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