Saturday, 13 July 2019

युधिष्ठिरास नारदांचा उपदेश



एकदा युधिष्ठिरास राजभवनामध्ये  देवर्षी  नारद  आले.  पांडवांनी  नारदांचे  स्वागत-सत्कार  केले.  पाद्यपूजन  केले.  नारदमुनी  प्रसन्न  झाले.  त्यांनी  युधिष्ठिरास  राजधर्माचा  उपदेश  केला. राजाने आपली धन-संपत्ती  यज्ञ,  दानधर्म,    कुटुंबनिर्वाह  या  साठी  खर्च  करावी.
धर्माचरणामध्ये  राजाचे मन  प्रसन्न  झाले पाहिजे.  भगवत्‌-चिंतनामध्ये  असलेले  राजाचे  मन  संसारी  आसक्तीने  विचलित  होऊ देऊ नये. ब्राह्मण,  वैश्य  आणि  शूद्र  या  तीन  वर्णाच्या  प्रजेविषयी  राजाच्या मनामध्ये  धर्मयुक्त  व्यवहार  असला पाहिजे. राजाने  धनाचा  लोभ करू नये.  कामभोगामुळे  धर्म    अर्थ  यांची  अवहेलना  करतोस  काय. राजाने काळानुसार  धर्म,  अर्थ    काम  यांचा  उपभोग  घेतला पाहिजे. राजाच्या अंगी  सहा  गुण  असले पाहिजेत.(.व्याख्यानचातुर्य,  .विचारांची  प्रगल्भता,  .तर्ककोशल्य,  .भूतकाळातील  विशेष  घटनांचे  स्मरण,  .भविष्यतील  घटनांची  दूरदृष्टी,  .नीति  निपुणता) राजाने राजशासनाचे  सात  उपायांद्वारा  प्रजेचे  (पोषण) केले पाहिजे.(.मंत्र,  .औषध,  .जादुटोणा,  .साम,  .दान,  .दंड,  .भेद)  आणि  आपल्या  तसेच  राज्याच्या  चौदा  व्यक्तींची  पारख  योग्यतेने  केली पहिजे.(.देशाचा  अधिकारी,  .किल्यांचा  अधिकारी,  .रथांचा  अधिकारी,  .घोड्यांचा  अधिकारी,  .हत्तींचा  अधिकारी,  .अन्नाचा  अधिकारी,  .प्रजा  गणनेचा  अधिकारी,  .शास्त्रांचा  अधिकारी,  .व्यवहार  नोंदणीचा  अधिकारी,  १०.सैनिकांचा  अधिकारी,  ११.अंतःपूराचा  अधिकारी,  १२.पराक्रमाचा  अधिकारी,  १३.राजकोषाचा  अधिकारी,  १४.यासर्व  अधिका-यांचा  अधिकारी). राजाने आपल्या शत्रुच्या  शक्तींचे  परिक्षण  केले पाहिजे.  शत्रु  जर  प्रबळ  असेल  तर  संधीसाधूपणा  करून  त्यास  नामोहरण  केले पाहिजे.  प्रजेच्या  धनवृध्दीसाठी    आपल्या  राजकोषाची  वृध्दी  करण्यासाठी  आठ  उपायांचे  नियोजन  केले पाहिजे. (.शेतीचा  विस्तार,  .व्यापाराची  वृध्दी,  .किल्यांची  रचना    संरक्षण,  .नद्यांवर  पुलांची  निर्मिती    त्यांची  देखभाल,  .हत्तींची  देखभाल,  .सोने-चांदीच्या,  हियांच्या  खाणींची  देखभाल,  .प्रमाणित  कर  वसुली,  .ओसाड  प्रदेशामध्ये  प्रजेचे  पुनर्वसन).  राजाने  मंत्रीगण    प्रजेतील  सात  प्रमूख  व्यक्ति  शत्रुमध्ये  गुप्तरूपाने  सामिल  झाले  नाहीत  ना याकडे निरंतर लक्ष ठेवले पाहिजे.(.दुर्गाध्यक्ष,  .बलाध्यक्ष,  .धर्माध्यक्ष,  .सेनापती,  .पुरोहित,  .वैद्य,  .ज्योतिषी). प्रजानन  व्यसनमुक्त असावेत यासाठी राजाने योग्य काळजी घेतली पाहिजे. मित्र,  शत्रु    वैरागी  कधी  काय  करतील  याचा  अंदाज  राजाला  आधी  समजण्याचे चातुर्य त्याच्याकडे असले पाहिजे. परिस्थितीनुरूप  कोणते  नियोजन  करायचे  याचा  विचार  राजाने केला पाहिजे. प्रजेतील  वैरागी  तसेच  मध्यम  वर्ग  यांच्याशी  राजाने अत्यंत चातुर्याने  वागावे.  अत्यंत  विश्वासू,  शुध्द  अंतःकरणाचे,  विचारवंत,  श्रध्दावान  व्यक्तींनाच  मंत्री  करावे. कारण  आदर्श  राज्याचा  मुख्य  आधार  मंत्री  परिषद  असते.  तसेच  कार्यक्षम  सचिवांच्या  योग्य  निर्णयाने  राज्य  सुरक्षित  रहात असते. राजाने  राज्य  शासनामध्ये  बारकाईने  सदा-सर्वदा  लक्ष  दिले पाहिजे. राजशासनातील  गुप्त  गोष्टी  फक्त  दोघांमध्येच  गोपनीय  राहु  शकतात.  म्हणून  अत्यंत  विषयांवर  सर्वदा  एकट्यानेच  विचार  करावा. गुप्त  विषय  प्रजेमध्ये  उघड  करू नयेत. कारण प्रजेमध्ये  विषय उघड  झाल्यावर  शत्रु  पर्यंत  जाण्यास  काहीच  वेळ  लागत  नाही.  त्याची  काळजी  नेहमी राजाने घेतली पाहिजे. प्रजाजनांच्या  धनवृध्दीसाठी  कमी भांडवलामध्ये    उत्पन्न  जास्त होणारे उद्योग निर्माण करावेत. त्यामध्ये अडथळा  निर्माण होणार नाही  याकडे  राजाने  बारीक  लक्ष  द्यावे. राज्यातील  शेतकरी,  कष्टकरी  कामगार यांचे  कार्य  कार्यक्षमता  याकडे   जातीने  लक्ष  द्यावे. कारण राज्याच्या  समृध्दीसाठी  सर्व  शेतकरी,  कष्टकरी  कामगार  यांचा  सहयोग  महत्त्वाचा  असतो.  दीर्घकाळ  प्रजेच्या  विश्वासानेच  प्रजेचे  राजावर  प्रेम  निर्माण  होते. राजाचे कार्य  सिध्दीला  गेल्यानंतरच  प्रजेला  समजले  पाहिजे. राजकुमारांचे    प्रमुख  सेनापतींचे  शिक्षण  धर्मशास्त्राच्या  मर्मज्ञ    विद्वानांकडून  करवून घ्यावे.  मर्मज्ञ    विद्वानांची  नियुक्ती  अत्यंत  महत्त्वाची  कारण  अतिसंकटामध्ये  मर्मज्ञ    विद्वानांचा  निर्णय  कल्याणकारी  असतो.



राजपुरोहित  विनयी,  कुलीन,  विद्वान,  धर्मशास्त्रामध्ये  कुशल  असले पहिजेत.  तू  त्यांचा  यथायोग्य  सत्कार  करतोस  ना. 

राजाने अग्निहोत्रासाठी  बुध्दीमान,  विनम्र,  वेदज्ञ  ब्राह्मणांची  नियुक्ती  केली  पाहिजे.
राजभवनातील  ज्योतिषांस  भविष्यातील  ग्रहांची  शुभ    अशुभ  परिणामता,  सर्व  प्रकारच्या  उत्पाताची  पुर्व  सूचना अचुकपणे जाणता  आली पाहिजे.  अतिमहत्वाच्या  कार्यासाठी  बुध्दीमानांची,  सर्वसाधारण  कार्यासाठी  कार्यक्षम  व्यक्तींची,    कष्टप्रद  कार्यांसाठी  सेवाभावी  व्यक्तींची  नियुक्ती  कार्यानुरूप  योग्यतेनुसार  केली  पाहिजे.  कठोर  दंड-शिक्षेने  प्रजेमध्ये  प्रक्षोभ  झाला  नाही  पाहिजे.  कठोर  दंड-शिक्षेमुळे  प्रजा  राजाचा  अनादर  करीत  नाही  याकडे राजाचे लक्ष हवे.  राजाचा सेनापती  आनंदी,  उत्साही,  शौर्यवान,  बुध्दीमान,  धैर्यवान,  स्वामीभक्त  असला पाहजे.  सैन्यातील  विवीध  अधिकारी  निर्भय,  पराक्रमी,  युध्दनितीज्ञ  असले पाहिजेत.  त्यांचा  यथायोग्य  सन्मान    सत्कार  केला पाहिजे.  सेनेतील  सर्वांना  भोजन    वेतन  योग्य    वेळेवर  दिले पाहिजे.  अन्यथा  ते  राजावर  नाराज  झाल्याने  मोठा  अनर्थ  घडू  शकतो.  युध्दभूमीवर  राजासाठी  ते  प्राण  त्याग  करायला  तयार  असले पाहिजेत.  सेनेमध्ये  आपल्या  इच्छेने  निर्णय  घेणारा    राज-शासनाचे  उल्लंघन  करणारा  कोणीही नसावा याकडे राजाचे नेहमी लक्ष असले पाहिजे. विद्यावान  व्यक्तीस  त्याच्या  सद्गुणांचा  धन  देऊन  सन्मान  केला पाहिजे.  युध्दामध्य  वीरगतीस  प्राप्त  होतात,  त्यांच्या  कुटुंबाचे  पालन-पोषण  राजाने केले पाहिजे. युध्दामध्ये  पराजित  झालेल्या  शरणागतांचे  राजाने आपल्या  पुत्रासमान  पालन-पोषण  केले पाहिजे.  प्रजेने  राजाला  माता-पिता  समान  विश्वसनीय  मानावे असेच राजाचे वर्तन असले पाहिजे. शत्रुवर  आक्रमण  करण्यापुर्वी  साम,  दान,  दंड,  भेद  या  नितीचे  अवलंबन  केले पाहिजे.  आश्रित,  गुरूजन,  वृध्द  व्यापारी,  दीन-दुःखी  यांना  धन-धान्य  देउन  त्यांच्यावर  राजाने नेहमी  अनुग्रह  केला पाहिजे.  राजकोषाचा  जमाखर्च  रोजचा  रोज  राजा समोर  सादर  केला  गेला पाहिजे.  आरोपी  सेवकांच्या  अपराधाची  पूर्ण  तपासणी  केल्या  शिवाय  त्यांना  कामावरून  कमी  करू नये.  चोर,  लोभी,  राजकुमार,  राज-घराण्यातील  स्त्रीया  हे  सर्वजण  राज्यासमोर  मोठे  संकट  उभे  करू शकतात, याकडे राजाने चतुराईने लक्ष ठेवले पाहिजे.

राजाने  राज्यातील  शेतकरी  संतुष्ट  ठेवण्यासाठी योग्य उपाय योजना केल्या पाहिजेत.    राज्यामध्ये  पावसाचे  पाणी  साठविण्यासाठी  ठिकठिकाणी  तलाव  बांधावेत.  कारण  केवळ  पावसावर  वर्षभर  शेती  होऊ  शकत  नाही.  शेतक-यांना  आवश्यक अन्न    बी-बीयाणे  मिळत आहे याकडे लक्ष द्यावे.  राज्यातील  शेतकरी,  गोपालक,  व्यापारी  कार्यक्षमतेने  उत्पन्नाची  वृध्दी  करतात  याकडे लक्ष द्यावे.  राज्यातील  गाव-गावांमध्ये  निरपेक्ष  वृत्तीने  समाजसेवेचे  कार्य  करतात  याकडे लक्ष द्यावे.  चोर  डाकूंची  वृत्ती  नष्ट  करण्यासाठी   राज्यामध्ये  प्रयत्न  करावेत.   राजाने  रोज  प्रातःकाळी  उठून  नित्यकर्मे  आटोपल्यानंतर  मंत्र्यांसमवेत  प्रजेची  इच्छा(विनंती,  प्रार्थना  तसेच  दर्शनाची)  पूर्ण  करावी. राजाच्या  अंगरक्षकांच्या अतिदक्षतेकडे  लक्ष द्यावे. राजाची अपराधींसाठी  यमराजाची  भूमिका    पूजनीयांसाठी  धर्मराजाची  भूमिका  असावी.  सुपथ्य  आहार-विहार  करून  राजाने त्याचे शारिरीक  कष्ट  दूर  करावेत. सत्परूषांची  सेवा-सत्संग  करून  मानसिक  पीडा  नष्ट  करावेत. राजाने  अष्टांगचिकित्सा करून  शरीर  स्वस्थ  करण्याचा  प्रयत्न  नेहमी  करावा. राजाने  ब्राह्मणांची,  साधुसंतांची  सेवा-पूजा  करावी. ब्राह्मणांना  नेहमी  दक्षिणा  देऊन  संतुष्ट  करावे. राजाने धर्माचे  अनुष्ठान  केले पाहिजे.   गुरूजन,  वयोवृध्द,  देवता,  तपस्वी  इत्यादींना  राजाने नमस्कार  केला पाहिजे.  राजाने  कोणाच्या ही  मनामध्ये  शोक,  क्रोध  उत्पन्न  करू नये.  कारण  धर्मानुकूल  वृत्ती    बुध्दी  आयुष्य    धनवृध्दी  करीत  असते.  तसेच  त्यामुळे  धर्म,  अर्थ    काम  हे  तिन्ही  पुरूषार्थ  प्राप्त  होतात.  जो  राजा  अशा  प्रकारे  आचरण  करतो  त्याचे  राज्य  कधीही  संकटामध्ये  पडत  नाही.  तो  राजा  संपूर्ण  पृथ्वीवर  राज्य  सुखा-समाधानाने  करीत  दिवसेदिवस  आपली  तसेच  प्रजेची  उन्नती  करतो. राजाने १.नास्तिकता,  .असत्य,  .क्रोध,  .उन्मत्तपणा,  .आळस,  .ज्ञानीजनांचा  अनादर,  .रेंगाळणे,  .इंद्रियासक्ती,  .एककल्लीपणा,  १०.मूर्खांबरोबर  चर्चा,  ११.अंमलबजावणीमध्ये  दिरंगाई,  १२.गुप्त  बातमी  उघड  करणे,  १३.मंगल  उत्सव    करणे,  १४.एकाच  वेळी  अनेक  शत्रुंवर  आक्रमण  अशा  राजशासनाच्या  चौदा  दोषांचा  नेहमी  त्याग  केला पाहिजे.  कारण  समृध्द  राजा  सुध्दा  चौदा  दोषांमुळे  राज्यहीन  होऊ  शकतो.  आंधळे,  मूके,  बहिरे,  पांगळे,  तसेच  शारीरिक कमजोर  व्यक्तींचे  पालन-पोषण राजाने पित्याच्या  भूमिकेतून  केले पाहिजे. राजाने निद्रा,  आळस,  भय,  क्रोध,  कठोरता,  दिरंगाई  या  सहा  दोषांचा  त्याग नेहमी केला  पाहिजे.
युधिष्ठिराने नारदांच्या उपदेशानुसार आचरण  करून  समुद्रपर्यंतचे  पृथ्वीचे  राज्य  केले.