प्रतिज्ञा
भारत मेरा देश है ।
यह मेरापन बहोत ही महत्त्वपूर्ण
है । जैसा मेरा हाथ है । मेरा पाव है । मेरा मन है । मेरा शरिर है । वैसा ही भारत
मेरा देश है । जिस प्रकार मै मेरे शरिरकी सुरक्षा करता हु वैसे ही भारत देशकी
सुरक्षा करना है ।
अगर सभी भारतीय भारत देशकी सुरक्षा करते है, तो दुनियामे
किसीकी हिम्मत है, जो भारत देशकी अवहेलना कर सके । आक्रमण तो दूर की बात है ।
सभी भारतीय मेरे भाई-बहन
है ।
सामान्यत: भाई अपने बहनके
शीलकी रक्षा करता है । और बहन सामान्यत:
भाईका पोषण करती है, और भाई-बहन परस्पर प्यार करते है ।
अगर सभी भारतीय भाई-बहन परस्पर प्यार करते है, तो किसकी
हिम्मत है, जो महिलाके उपर अत्याचारका विचार कर सके । अत्याचार करना तो दूर की बात है ।
मुझे अपने देशसे प्यार है
।
प्यारमे सबकुछ देनेका भाव
होता है । पति-पत्नीका प्यार, मा-बेटीका प्यार, पिता-पुत्रका प्यार, गुरू-शिष्यका
प्यार, आदि । पति पत्नीको सुख देता है, पत्नी पतिको सुख देती है, आदि । अगर सभी
भारतीय अपने देशसे प्यार करते है, तो सभी भारतीय अपने देशको सुख जरूर देंगे ।
देशको सुख देनेका मतलब क्या है, सभी भारतीयको सुख देना है ।
अगर सभी भारतीय अपने देशसे प्यार करते है, तो किसकी हिम्मत
है, जो अपने भारतीयको दुखी करनेका विचार कर सके । दुख देना तो दूर की बात है ।
अपने देशकी समृध्द तथा
विविधताओंसे विभूषित परंपराओं पर मुझे गर्व है ।
अपना भारत देश संस्कृतीसे
संपन्न है । हमारी संस्कृती धर्म, दर्शन, इतिहास, वर्ण और संस्कार-परंपरा इन पाच मुलतत्वोंसे
समृध्द है । वसुधैव कुटूम्बकम्
ऎसा जगत्-व्यापक ध्यास लेनेवाली
हमारी
भारतीय संस्कृती अखिल विश्वमे एकमेव है
। मै अपनेको धन्य मानता हु की मै इस विशाल भारतीय
संस्कृतीमे पैदा हुवा हु ।
अगर सभी भारतीय अपने भारतीय संस्कृतीका ज्ञान प्राप्त करते
है, विश्वास करते है, तो किसी दुसरे संस्कृतीका अनुकरण करनेका विचार ही व्यर्थ है,
क्योंकी हमारी संस्कृती अखिल विश्वमे एकमेव है
। जैसेकी अपनी मा छोडकर कोईभी भारतीयको दुसरेंकी माको अपना मानना निरर्थक है ।
मै हमेशा प्रयत्न करूंगा
कि उन परंपराओं का सफल अनुयायी बननेकी क्षमता मुझे प्राप्त हो ।
जगत्-व्यापक ध्यास लेनेवाली
हमारी
भारतीय संस्कृती महान है । आजन्म इस अपने भारतीय संस्कृतीका
ज्ञान प्राप्त करना निश्चय किया तो भी पुरा होगा
असंभवनीय है, इसलिये निरंतर प्रयत्न करनेकी क्षमता मुझे प्राप्त होना यही सभी
भारतीयका एकमेव ध्येय होना चाहिये ।
अगर सभी भारतीय अपने भारतीय संस्कृतीको अपनाना चाहते है, तो
दुनियामे किसकी हिम्मत है, जो भारतीय संस्कृतीकी अवहेलना कर सके । अनुकरण तो दूर
की बात है ।
मै अपने माता-पिता,
गुरूजनों और बडोंका सम्मान करूंगा और हर एक से सौजन्यपूर्ण व्यवहार करूंगा ।
हमारी भारतीय
संस्कृतीमे अपनोंसे छोटेपर दया, अपनोंसे समान व्यक्तीपर मित्रता और अपनोंसे
बडोंका आदर करनेको कहा गया है ।
अगर सभी भारतीय अपने भारतीय संस्कृतीका आदर करके सभीके साथ
सौजन्यपूर्ण व्यवहार करते है, तो हमारे भारत देशमे हर एक भारतीय शांती समाधानका
जरूर अनुभव करेंगे । जहा शांती और स्थिरता है,
वहा उद्योगोंकी निर्मिती, रोजगार निर्मिती होती है । वहा आर्थिक प्रगती होती है । देशका विकास होता
है ।
मै प्रतिज्ञा करता हू कि
मै अपने देश और अपने देशवासियोंके प्रति निष्ठा रखूंगा । उनकी भलाई और समृध्दि मे
ही मेरा सुख निहित है ।
देश और अपने देशवासियोंके
प्रति निष्ठा होना अति आवश्यक है । मुझे अपने देशसे प्यार है, इसीमे ही
राष्ट्रभक्ती है । इसीका आश्वासन देना अपने देशके प्रति यह एक वचननामा है । लेकीन
यह वचननामा सिर्फ अदालतमे पेश करनेके लिये नही है । इसी प्रतिज्ञाका पालन करनेमे
ही मेरा सुख निश्चित है । यह बात दिलसे समजना चाहिये । हमारी भारतीय
संस्कृतीमे कृतज्ञताकी बडी महिमा है । मै इस भारतभूमीमे पैदा हुआ हु । इस
भारतभूमीमे मेरा पालन पोषण हुआ है । मुझे अपने देशसे और अपने देशवासियोंसे प्यार
मिला है । तो मेरी कुछ जिम्मेवारी भी है, की मै अपने देशके और अपने देशवासियोंके
प्रति कृतज्ञता अदा करू ।
अगर सभी भारतीय राष्ट्रभक्तीका वचन देकर उसीका निरंतर अंमल
करते है, तो अपने भारत देशका विकास, प्रगती जरूर जरूर होगी ।
कौनसा राजकीय पक्ष क्या करता है, विरोधी पक्ष क्या करता
है, कौन सत्तामे है, दुनिया भारत देशके
बारेमे क्या सोचती है, देशकी संपत्ती कीतनी है, देशमे निर्यात मुल्य कीतना आ रहा
है, आदि यह सभी ज्यादा महत्त्वपूर्ण नही है, केवल हमारे देशकी प्रतिज्ञाका सभी
भारतियोंसे आचरण हो जाय, यह सबसे महत्त्वपूर्ण है । अंतत: सभी भारतीय इसका गहराईसे
जरूर विचार करे । जितना जल्दी करे उतना ही सबके लिये, देशके लिये लाभदायी है ।
इसिलिये सभी भारतियोंने
विशेषत: सभी राजकिय नेताओंने, सांसदोंने प्रथमत: खुद देशकी प्रतिज्ञाका आचरण करना चाहिये । अपने-अपने मतदार-क्षेत्रके समाजसे, अपने-अपने
मतदारोंसे देशकी प्रतिज्ञाके आचरण करवाना
चाहिये । यही असलमे इनकी जिम्मेवारी है । सभी भारतीयोंमे राष्ट्रभक्ती निर्माण
करना ही तो राजकिय नेताओंकी राष्ट्रसेवा है । सभी शिक्षणक्षेत्रके आधिकारींओने शैक्षणिक
अभ्यासक्रममे देशकी प्रतिज्ञाके आचरण संबंधी विचारमंथन करना चाहिये ।
विद्यार्थीयोंमे राष्ट्रभक्ती किस प्रकार जागृत होगी इसीपर ध्यान देना चाहिये ।
सिर्फ शब्दोंकी कवायत तो बहोत सालोंसे चल रही है, जो केवल निरर्थक है । प्रतिज्ञाके आचरणपर बडा कदम ऊठाना चाहिये । सभी
कला(मनोरंजन)क्षेत्रके सिनेमा निर्देशकोंने देशकी प्रतिज्ञाके आचरण यही विषयपर
तरह-तरहकी दृक-श्राव्य कलाकृती निर्माण करना चाहिये, क्योंकी मनोरंजन यह बहोतही
प्रभावी साधन है । अपना सिनेमा देखनेके बाद प्रेक्षकके मनमे राष्ट्रभक्ती किस
प्रकार जागृत होगी, इसीपर सिनेमा निर्देशकोंमे स्पर्धा होनी चाहिये । इससे
कलाकारोंमे भी राष्ट्रभक्ती जागृत होगी । उत्तेजनार्थ ग्राम-स्तर पर, नगर-स्तर पर,
तहसिल-स्तर पर, जिला-स्तर पर, राज्य-स्तर पर, राष्ट्र-स्तर पर, पुरस्कारकी
व्यवस्था शासनद्वारा होनी चाहिये । इससे समाजमे राष्ट्रभक्तीको बढावा मिलेगा । सभी
सामाजिक क्षेत्रके समाज सुधारकोंने समाजको देशकी प्रतिज्ञाके आचरणकी एक नई दिशा देकर
खुदके आचरण द्वारा समाज-प्रबोधन करना चाहिये । संपूर्ण समाजमे राष्ट्रभक्ती किस
प्रकार निर्माण हो इसी का ही चिंतन करना चाहिये । सभी साहित्य क्षेत्रके लेखकोंने,
गीतकारोंने देशकी प्रतिज्ञाके आचरणपर ही विविधतासे परिपूर्ण विपूल साहित्य निर्माण
करना चाहिये । अपना साहित्य पढकर वाचकके मनमे राष्ट्रप्रेम निर्माण हो, इसीपर
साहित्यकारोंमे स्पर्धा होनी चाहिये । उत्तेजनार्थ ग्राम-स्तर पर, नगर-स्तर पर, तालुका-स्तर
पर, जिल्ह्या-स्तर पर, राज्य-स्तर पर, राष्ट्र-स्तर पर, पुरस्कारकी व्यवस्था
शासनद्वार होनी चाहिये । इससे समाजमे राष्ट्रभक्तीको बढावा मिलेगा । सभी माहिती-तंत्र-ज्ञान
क्षेत्रके संपादकोंने अपने-अपने अखबारोंमे, दृक-श्राव्य वाहीनीओंमे देशकी
प्रतिज्ञाके आचरणको ही बढावा देना चाहिये
। देशकी प्रतिज्ञाके आचरण यही एक केंद्रबिंदु बनाकर तरह-तरहके विषय लेकर मालिका
निर्माण करना चाहिये । यह भी एक प्रभावी साधन है । मालिका देखकर देखनेवालेके मनमे
सभी भारतीयोमे अपने देश और अपने देशवासियोंके प्रति निष्ठा होना चाहिये । देशकी
प्रतिज्ञामे अनेक विषय है । एक-एक विषयपर मनोरंजनात्मक मालिका निर्माण करना चाहिये
। देशके सभी अध्यात्मिक संतोंने देशकी प्रतिज्ञाके अलग-अलग विषयोंपर प्रवचन करना
चाहिये । उदा. सभी भारतीय अपने भाई-बहन है, अपने देशसे प्यार करना है, अपने देशकी
समृध्द तथा विविधताओंसे विभूषित परंपराओं पर गर्व करना है, हमेशा प्रयत्न करना है,
उन परंपराओं का सफल अनुयायी बननेकी क्षमता कीस प्रकार प्राप्त करना है, अपने
माता-पिता, गुरूजनों और बडोंका सम्मान कैसे करना है, हर एक से सौजन्यपूर्ण व्यवहार
कैसे किया जाय, अपने देश और अपने देशवासियोंके
प्रति निष्ठाका अर्थ क्या है, क्यो निष्ठा रखना है । उनकी भलाई और समृध्दि मे ही
मेरा सुख कैसे निहित है, आदि ।
स्वामी
मोहनदास, राष्ट्रभक्त एल-५०७
चंद्रमा-विश्व धायरी पुणे-४११०४१
swamiji.mohandas@gmail.com
sanatan-sanskar.blogspot.in
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