Wednesday, 5 June 2019

भारतीय संविधानकी उद्देशिका


भारतीय संविधानकी उद्देशिका
हम, भारतके लोग, भारतको एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनानेके लिये, तथा उनके समस्त नागरिकों को
यही संविधानकी उद्देशिकाका महत्व है, कि हम भारतके ही सभी नागरिकभारतको एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न देश बनानेका संकल्प करते है । प्रभुत्वसंपन्नका मतितार्थ है कि भारत अपने आंतरिक एवं बाह्य मामलों में किसी विदेशी सत्ता या शक्ति के अधीन नहीं है ।वह अपने आंतरिक एवं बाह्य विदेश नीति निर्धारित करने के लिए तथा किसी भी राष्ट्र के साथ मित्रता एवं संधि करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र है ।इसकी प्रभुता जनता में निहित है ।समाजवादीका अर्थ है है भारतीय नागरिकोंमे अमीर और गरीबके मध्य अंतर को समाप्त किया जाएगा तथा शोषण के विरुद्ध कदम उठाया जाएगा ।धर्मनिरपेक्षका तात्पर्य है राज्यमे, भारतीय नागरिकोंमे धर्म के नाम पर कोई भेदभाव नहीं होगा । लोकतंत्रात्मक का आशय है जनता का शासन ।भारत में जनता अपने द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन चलाती है जिसे अप्रत्यक्ष लोकतांत्रिक प्रणाली कहा जाता है ।भारत एक गणराज्य है इसका तात्पर्य है भारतमे सर्वोच्च पदाधिकारीकी नियुक्ती भीजनता अपने द्वारा करके शासन चलाती है ।
लेकिन आज परिस्थिती विरूध्द है । १२५कोटी भारतकी जनताको पुरी तरह संविधानकी उद्देशिकाका सखोल ज्ञान नही है, वे ज्ञान कराना भी नही चाहते, वे संविधानकी उद्देशिकाका महत्व भी जानते नही । भारतको एक संपूर्णप्रभुत्वसंपन्न देश बनानेका संकल्प नही करते । सिर्फ अपनेको, अपनेवालोंको अमीर बनाना चाहते है । आज भारत अपने आंतरिक एवं बाह्य मामलों में किसीभी विदेशी सत्ता या शक्ति के अधीन हो रहा है | आज भारतकी प्रभुता जनता में निहित नही है, मुठ्ठीभर लोगोंके हाथमे दिखाई दे रही है |भारतीय नागरिकोंमे अमीर और गरीबके मध्य अंतर को समाप्त किया जाएगा इस प्रकार सिर्फ घोषणा हो रही है, असलमे अमीर ज्यादा अमीर हो रहा है और गरीब ज्यादा गरीब हो रहा है तथा शोषण के विरुद्ध मामुली कदम उठाया जा रहे है |धर्मनिरपेक्ष का तात्पर्य है गलत ढंगसे राज्यमे प्रचलित हो रहा है, भारतीय नागरिकोंमे धर्म के नाम पर सिर्फ भेदभाव नहीं, हत्या और अत्याचार, संपत्तीका नाशहो रहा है |आज जनता का शासन नही है । राजकिय पक्षोंका शासन है । राजकिय पक्षोंका उल्लेख संविधानमे नही है ।
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए,
भारतके नागरिकोंको सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्यायदेनेके लिये यह संविधान बनाया है ।सामाजिक क्षेत्रमे आर्थिक क्षेत्रमे और राजनैतिक क्षेत्रमे भारतके सभी नागरिकोंको समान संधी देनेके लिये यह संविधान बनाया है । विचार और अभिव्यक्तिका स्वातंत्र्य देनेके लिये यह संविधान बनाया है ।विवीध धर्म और उपासना की स्वतंत्रता देनेके लिये यह संविधान बनाया है ।भारतके प्रत्येक नागरिकको प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए यह संविधान बनाया है ।
लेकिन आज परिस्थिती विपरित है । आज समाजमे हर आदमीको काम नही है, आर्थिक विषमता है, राजकिय क्षेत्रमे वंशवाद ही दिखाई दे रहा है । विचार और अभिव्यक्तिका स्वातंत्र्य पूर्णत: नही है । कोई फिल्म निर्माताने फिल्म बनाई तो मत्सरभावसे फिल्म रोकनेका आंदोलन किया जाता है, शासन व्यवस्थाभी कुछ नही करती, ये क्या अभिव्यक्तिका स्वातंत्र्य है ? न्यायव्यवस्था इतनी थीमी है, कि कोई संस्थानमे केमीकल स्फोट होनेके २० साल बाद बेकसुर मजदूरोंको न्याय मिलता है । धर्म-धर्ममे समाज बट गया है, किसी-किसीने स्वार्थसे समाज बटवाया है, और नागरिककोंमे शत्रुता निर्माण की गयी है  । आज १२०कोटी भारतकी जनताको प्रतिष्ठाप्राप्त नही हो रही है । केवल अमीरोंको ही प्रतिष्ठाप्राप्त हो रही है । अवसर की समता नही है ।
तथा उन सबमे, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्रकी एकता और अखंडता सुनिश्चित करानेवाली, बंधुता बढानेके लिये,
भारतके सभी नागरिकोंको व्यक्तिमत्वका सन्मान देनेके लिये यह संविधान बनाया है । हर नागरिकको उचित मान देनेके लिये यह संविधान बनाया है । राष्ट्रकी एकता और अखंडता सुनिश्चित करने के लिये यह संविधान बनाया है । भारतमे अनेक प्रांत है, अनेक भाषा है, फीर भी अनेकतामे एकता प्रदान करनेके लिये यह संविधान बनाया है । और भारतके सभी नागरिकोंमे बंधुता बढानेके लिये यह संविधान बनाया है । १२५कोटी हर नागरिकको आपसमे बंधुभाव निर्माण करनेके लिये यह संविधान बनाया है । देशकी भौगोलिक अखंडताकी रक्षा करनेके लिये यह संविधान बनाया है ।
लेकिन आज परिस्थिती विपरित है । भारतके सभी नागरिकोंमे एक-दूसरेको सन्मान देनेकी आदत नही है । बडोंका आदर करना, छोटोंपर दया करना सिखाया ही नही है । नागरी शिक्षित नागरिक गावके अशिक्षितको नीचा देखता है । अमीर गरीबोंका तिरस्कार करते है । संपूर्ण भारतमे राष्ट्रभाषाका सन्मान नही है, साऊथमे हिंदी भाषाकी आजभी अवहेलना हो रही है । काश्मिरमे थोडा भुभाग आजभी दुसरे देशके कब्जेमे है । आज सगा भाई-भाई भी एक दुसरेकी हत्या करता है, तो हिंदु-मुस्लिम भाई-भाई कैसे होगे ?
दृढ़ संकल्प होकर इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
हम भारतके ही सभी नागरिक अटल संकल्प करके इस संविधान को अंगीकृत करते हैं, अधिनियमित करते हैंऔर आत्मार्पित करते हैं। हम भारतके सभी नागरिक इस संविधान को समजते है, चिंतन करते है, देशकी सर्वोच्च संसदभवनमे विधिवत नियमित करते हैंऔर खुद्को समर्पित करते है । यह संविधानके उद्देशिकाकी भाषा अभिनव है ।
लेकिन आज परिस्थिती पूर्णत: विपरित है । हम भारतके कोईभी नागरिकने संविधानकी उद्देशिकाको अंगीकृत करनेका अटल संकल्प किया ही नही है,  संविधानकी उद्देशिकाको पढा भी नही है, समजा भी नही है, चिंतन तो दूर की बात  है । मुझे संभ्रम है, की जिसने यह संसदभवनमे विधिवत नियमित किया, उन्होने संविधानके उद्देशिकाको पुर्णत: जाना है क्या ?, चिंतन किया है ? अगर किया होता तो काश्मिरका (देशकी प्रभुत्वसंपन्नता और अखंडता) प्रश्न देशके बाहर सुलझानेका प्रयास नही करते । एक गलतीका और कितने सालोतक देशको सामना करना पडेगा इसीपर भी चिंतन करनेकी आवश्यकता है ।



भारतीय संविधानकी उद्देशिका विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। यह उद्देशिका संविधान का सार है; और यह संविधान की आत्मा भी हैं। यह उद्देशिका संविधानके लक्ष्य प्रकट करती है; संविधान का दर्शन भी इसके माध्यम से प्रकट होता है।भारत के समस्त नागरिकोंने भारतीय संविधानकी उद्देशिकाका अवश्य अध्ययन करना चाहिये ।क्योंकि अपने देशका व्यवहार किसके आधारपर चल रहा है, चलना चाहिये, इसकी जानकारी भारत के समस्त नागरिकोंने आत्मसात करना चाहिये, जैसे अपना जीवन किसके आधारपर चल रहा है, चलना चाहिये, आदि जानकारी हर आदमी बडे ही उत्साहसे कर लेते है ।लोकसभा और विधानसभा के लिये सही उमेदवार चुननेके लिये भी मतदारोंको संविधानकी उद्देशिकाका ज्ञान आवश्यक है । संविधानका पालन सांसदोंके उपर ही निर्भर होता है । इसलिये मतदारोंने संविधानकी उद्देशिकाको समज लेना चाहिये । चिंतन करना चाहिये ।
इसलिये विशेषत: सभी राजकिय नेताओंने, सांसदोंने भारतीय संविधानकी उद्देशिकाका अवश्य अध्ययन करना चाहिये ।अपने-अपने मतदार-क्षेत्रके समाजका, अपने-अपने मतदारोंका भी प्रबोधन कराना चाहिये । यही असलमे इनकी ही जिम्मेवारी है । सभी भारतीयोंकोभारतीय संविधानकी उद्देशिकाका अध्ययन करवाना यही तो राजकिय नेताओंकी राष्ट्रसेवा है ।सभी शिक्षणक्षेत्रके आधिकारींओने शैक्षणिक अभ्यासक्रममे संविधानकी उद्देशिकाकाविचारमंथन करना चाहिये । विद्यार्थीयोंमे संविधानकी उद्देशिका ज्ञान किस प्रकार जागृत होगा इसीपर ध्यान देना चाहिये । सिर्फ शब्दोंकी कवायत तो बहोत सालोंसे चल रही है, जो केवल निरर्थक है । संविधानकी उद्देशिकाका सखोल ज्ञान विद्यार्थीदशामे ही होना चाहिये । इसी प्रकार बडा कदम ऊठाना चाहिये । निर्वाचन आयोगका भी इस प्रबोधनमे काफी महत्त्वपूर्ण सहभाग होना चाहिये । मतदान जागृती अभियानकी तरह निर्वाचन आयोगने ही भारत के समस्त नागरिकों को भारतीय संविधानकी उद्देशिकाका प्रबोधन करना चाहिये, क्योंकि सही मतदान करनेके लिये भारतीय संविधानकी उद्देशिकाका सखोल ज्ञान अति महत्त्वपूर्ण है । संविधानकी उद्देशिकाका उद्देश समस्त नागरिकोंमे राष्ट्रभक्ती जागृत होना ही है ।  राष्ट्रभक्तीसे ही  संविधानकी उद्देशिकाका सही अर्थ समजमे आयेगा । अंतत: सभी भारतीय इसका गहराईसे जरूर विचार करे । जितना जल्दी करे उतना ही सबके लिये, देशके लिये लाभदायी है ।

स्वामी मोहनदास,राष्ट्रभक्त    एल-५०७ चंद्रमा-विश्व धायरी पुणे-४११०४१
swamiji.mohandas@gmail.com sanatan-sanskar.blogspot.in 
भारतका संविधान
राज्य, किसीनागरिककेविरुद्धकेवलधर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थानयाइनमेंसेकिसीकेआधारपरकोईविभेदनहींकरेगा। (समताकाअधिकार१५.)

''राज्य'' केअंतर्गतभारतकीसरकारऔरसंसदतथाराज्योंमेंसेप्रत्येकराज्यकीसरकारऔरविधान-मंडलतथाभारतकेराज्यक्षेत्रकेभीतरयाभारतसरकारकेनियंत्रणकेअधीनसभीस्थानीयऔरअन्यप्राधिकारीहैं। (साधारणपरिभाषा१२)

प्रत्येकराष्ट्रपतिऔरप्रत्येकव्यक्ति, जोराष्ट्रपतिकेरूपमेंकार्यकररहाहैयाउसकेकृत्योंकानिर्वहनकररहाहै, अपनापदग्रहणकरनेसेपहलेभारतकेमुख्यन्यायमूर्तियाउसकीअनुपस्थितिमेंउच्चतमन्यायालयकेउपलब्धज्येष्ठतमन्यायाधीशकेसमक्षनिम्नलिखितप्ररूपमेंशपथलेगायाप्रतिज्ञानकरेगाऔरउसपरअपनेहस्ताक्षरकरेगा, अर्थात्: --''मैं, ईश्वरकीशपथलेताहूँ-किमैंश्रद्धापूर्वकभारतकेराष्ट्रपतिकेपदकाकार्यपालनसत्यनिष्ठासेप्रतिज्ञानकरताहूँ। (अथवाराष्ट्रपतिकेकृत्योंकानिर्वहन) करूंगातथाअपनीपूरीयोग्यतासेसंविधानऔरविधिकापरिरक्षण, संरक्षणऔरप्रतिरक्षणकरूँगाऔरमैंभारतकीजनताकीसेवाऔरकल्याणमेंनिरतरहूँगा।'' (अध्याय अनुच्छेद६०)

संघकीकार्यपालिकाशक्तिराष्ट्रपतिमेंनिहितहोगीऔरवहइसकाप्रयोगइससंविधानकेअनुसारस्वयंयाअपनेअधीनस्थअधिकारियोंकेद्वाराकरेगा (अध्याय अनुच्छेद ५३.)

राष्ट्रपतिकोसहायताऔरसलाहदेनेकेलिएएकमंत्रि-परिषदहोगीजिसकाप्रधान, प्रधानमंत्रीहोगाऔरराष्ट्रपतिअपनेकृत्योंकाप्रयोगकरनेमेंऐसीसलाहकेअनुसारकार्यकरेगा। (अध्याय अनुच्छेद ७४.)

जबसंविधानकेओंतक्रमणकेलिएराष्ट्रपतिपरमहाभियोगचलानाहो, तबसंसदकाकोईसदनआरोपलगाएगा। (अध्याय अनुच्छेद ६१.)

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