Wednesday, 5 June 2019

प्रतिज्ञा


प्रतिज्ञा
भारत मेरा देश है ।
यह मेरापन बहोत ही महत्त्वपूर्ण है । जैसा मेरा हाथ है । मेरा पाव है । मेरा मन है । मेरा शरिर है । वैसा ही भारत मेरा देश है । जिस प्रकार मै मेरे शरिरकी सुरक्षा करता हु वैसे ही भारत देशकी सुरक्षा करना है ।
अगर सभी भारतीय भारत देशकी सुरक्षा करते है, तो दुनियामे किसीकी हिम्मत है, जो भारत देशकी अवहेलना कर सके । आक्रमण तो दूर की बात है ।
सभी भारतीय मेरे भाई-बहन है ।
सामान्यत: भाई अपने बहनके शीलकी रक्षा करता है । और  बहन सामान्यत: भाईका पोषण करती है, और भाई-बहन परस्पर प्यार करते है ।
अगर सभी भारतीय भाई-बहन परस्पर प्यार करते है, तो किसकी हिम्मत है, जो महिलाके उपर अत्याचारका विचार कर सके । अत्याचार करना  तो दूर की बात है ।
मुझे अपने देशसे प्यार है ।
प्यारमे सबकुछ देनेका भाव होता है । पति-पत्नीका प्यार, मा-बेटीका प्यार, पिता-पुत्रका प्यार, गुरू-शिष्यका प्यार, आदि । पति पत्नीको सुख देता है, पत्नी पतिको सुख देती है, आदि । अगर सभी भारतीय अपने देशसे प्यार करते है, तो सभी भारतीय अपने देशको सुख जरूर देंगे । देशको सुख देनेका मतलब क्या है, सभी भारतीयको सुख देना है ।
अगर सभी भारतीय अपने देशसे प्यार करते है, तो किसकी हिम्मत है, जो अपने भारतीयको दुखी करनेका विचार कर सके । दुख देना तो दूर की बात है ।
अपने देशकी समृध्द तथा विविधताओंसे विभूषित परंपराओं पर मुझे गर्व है ।
अपना भारत देश संस्कृतीसे संपन्न है । हमारी संस्कृती धर्म,  दर्शन,  इतिहास,  वर्ण  और  संस्कार-परंपरा  इन  पाच  मुलतत्वोंसे  समृध्द  है । वसुधैव  कुटूम्बकम्  ऎसा  जगत्-व्यापक  ध्यास  लेनेवाली  हमारी  भारतीय  संस्कृती  अखिल  विश्वमे  एकमेव  है । मै अपनेको धन्य मानता हु की मै इस विशाल भारतीय  संस्कृतीमे पैदा हुवा हु ।
अगर सभी भारतीय अपने भारतीय संस्कृतीका ज्ञान प्राप्त करते है, विश्वास करते है, तो किसी दुसरे संस्कृतीका अनुकरण करनेका विचार ही व्यर्थ है, क्योंकी हमारी संस्कृती अखिल  विश्वमे  एकमेव  है । जैसेकी अपनी मा छोडकर कोईभी भारतीयको दुसरेंकी माको अपना मानना निरर्थक है ।   
मै हमेशा प्रयत्न करूंगा कि उन परंपराओं का सफल अनुयायी बननेकी क्षमता मुझे प्राप्त हो ।
जगत्-व्यापक  ध्यास  लेनेवाली  हमारी  भारतीय  संस्कृती  महान है । आजन्म इस अपने भारतीय संस्कृतीका ज्ञान प्राप्त करना निश्चय किया तो भी पुरा होगा  असंभवनीय है, इसलिये निरंतर प्रयत्न करनेकी क्षमता मुझे प्राप्त होना यही सभी भारतीयका एकमेव ध्येय होना चाहिये ।
अगर सभी भारतीय अपने भारतीय संस्कृतीको अपनाना चाहते है, तो दुनियामे किसकी हिम्मत है, जो भारतीय संस्कृतीकी अवहेलना कर सके । अनुकरण तो दूर की बात है ।
मै अपने माता-पिता, गुरूजनों और बडोंका सम्मान करूंगा और हर एक से सौजन्यपूर्ण व्यवहार करूंगा ।
हमारी  भारतीय  संस्कृतीमे अपनोंसे छोटेपर दया, अपनोंसे समान व्यक्तीपर मित्रता और अपनोंसे बडोंका आदर करनेको कहा गया है ।
अगर सभी भारतीय अपने भारतीय संस्कृतीका आदर करके सभीके साथ सौजन्यपूर्ण व्यवहार करते है, तो हमारे भारत देशमे हर एक भारतीय शांती समाधानका जरूर अनुभव करेंगे । जहा शांती और स्थिरता है,  वहा उद्योगोंकी निर्मिती, रोजगार निर्मिती होती है ।  वहा आर्थिक प्रगती होती है । देशका विकास होता है ।
मै प्रतिज्ञा करता हू कि मै अपने देश और अपने देशवासियोंके प्रति निष्ठा रखूंगा । उनकी भलाई और समृध्दि मे ही मेरा सुख निहित है ।
देश और अपने देशवासियोंके प्रति निष्ठा होना अति आवश्यक है । मुझे अपने देशसे प्यार है, इसीमे ही राष्ट्रभक्ती है । इसीका आश्वासन देना अपने देशके प्रति यह एक वचननामा है । लेकीन यह वचननामा सिर्फ अदालतमे पेश करनेके लिये नही है । इसी प्रतिज्ञाका पालन करनेमे ही मेरा सुख निश्चित है । यह बात दिलसे समजना चाहिये । हमारी  भारतीय  संस्कृतीमे कृतज्ञताकी बडी महिमा है । मै इस भारतभूमीमे पैदा हुआ हु । इस भारतभूमीमे मेरा पालन पोषण हुआ है । मुझे अपने देशसे और अपने देशवासियोंसे प्यार मिला है । तो मेरी कुछ जिम्मेवारी भी है, की मै अपने देशके और अपने देशवासियोंके प्रति  कृतज्ञता अदा करू ।
अगर सभी भारतीय राष्ट्रभक्तीका वचन देकर उसीका निरंतर अंमल करते है, तो अपने भारत देशका विकास, प्रगती जरूर जरूर होगी ।
कौनसा राजकीय पक्ष क्या करता है, विरोधी पक्ष क्या करता है,  कौन सत्तामे है, दुनिया भारत देशके बारेमे क्या सोचती है, देशकी संपत्ती कीतनी है, देशमे निर्यात मुल्य कीतना आ रहा है, आदि यह सभी ज्यादा महत्त्वपूर्ण नही है, केवल हमारे देशकी प्रतिज्ञाका सभी भारतियोंसे आचरण हो जाय, यह सबसे महत्त्वपूर्ण है । अंतत: सभी भारतीय इसका गहराईसे जरूर विचार करे । जितना जल्दी करे उतना ही सबके लिये, देशके लिये लाभदायी है ।

इसिलिये सभी भारतियोंने विशेषत: सभी राजकिय नेताओंने, सांसदोंने प्रथमत: खुद देशकी प्रतिज्ञाका आचरण करना चाहिये । अपने-अपने मतदार-क्षेत्रके समाजसे, अपने-अपने मतदारोंसे  देशकी प्रतिज्ञाके आचरण करवाना चाहिये । यही असलमे इनकी जिम्मेवारी है । सभी भारतीयोंमे राष्ट्रभक्ती निर्माण करना ही तो राजकिय नेताओंकी राष्ट्रसेवा है । सभी शिक्षणक्षेत्रके आधिकारींओने शैक्षणिक अभ्यासक्रममे देशकी प्रतिज्ञाके आचरण संबंधी विचारमंथन करना चाहिये । विद्यार्थीयोंमे राष्ट्रभक्ती किस प्रकार जागृत होगी इसीपर ध्यान देना चाहिये । सिर्फ शब्दोंकी कवायत तो बहोत सालोंसे चल रही है, जो केवल निरर्थक है ।  प्रतिज्ञाके आचरणपर बडा कदम ऊठाना चाहिये । सभी कला(मनोरंजन)क्षेत्रके सिनेमा निर्देशकोंने देशकी प्रतिज्ञाके आचरण यही विषयपर तरह-तरहकी दृक-श्राव्य कलाकृती निर्माण करना चाहिये, क्योंकी मनोरंजन यह बहोतही प्रभावी साधन है । अपना सिनेमा देखनेके बाद प्रेक्षकके मनमे राष्ट्रभक्ती किस प्रकार जागृत होगी, इसीपर सिनेमा निर्देशकोंमे स्पर्धा होनी चाहिये । इससे कलाकारोंमे भी राष्ट्रभक्ती जागृत होगी । उत्तेजनार्थ ग्राम-स्तर पर, नगर-स्तर पर, तहसिल-स्तर पर, जिला-स्तर पर, राज्य-स्तर पर, राष्ट्र-स्तर पर, पुरस्कारकी व्यवस्था शासनद्वारा होनी चाहिये । इससे समाजमे राष्ट्रभक्तीको बढावा मिलेगा । सभी सामाजिक क्षेत्रके समाज सुधारकोंने समाजको देशकी प्रतिज्ञाके आचरणकी एक नई दिशा देकर खुदके आचरण द्वारा समाज-प्रबोधन करना चाहिये । संपूर्ण समाजमे राष्ट्रभक्ती किस प्रकार निर्माण हो इसी का ही चिंतन करना चाहिये । सभी साहित्य क्षेत्रके लेखकोंने, गीतकारोंने देशकी प्रतिज्ञाके आचरणपर ही विविधतासे परिपूर्ण विपूल साहित्य निर्माण करना चाहिये । अपना साहित्य पढकर वाचकके मनमे राष्ट्रप्रेम निर्माण हो, इसीपर साहित्यकारोंमे स्पर्धा होनी चाहिये । उत्तेजनार्थ ग्राम-स्तर पर, नगर-स्तर पर, तालुका-स्तर पर, जिल्ह्या-स्तर पर, राज्य-स्तर पर, राष्ट्र-स्तर पर, पुरस्कारकी व्यवस्था शासनद्वार होनी चाहिये । इससे समाजमे राष्ट्रभक्तीको बढावा मिलेगा । सभी माहिती-तंत्र-ज्ञान क्षेत्रके संपादकोंने अपने-अपने अखबारोंमे, दृक-श्राव्य वाहीनीओंमे देशकी प्रतिज्ञाके आचरणको ही बढावा देना  चाहिये । देशकी प्रतिज्ञाके आचरण यही एक केंद्रबिंदु बनाकर तरह-तरहके विषय लेकर मालिका निर्माण करना चाहिये । यह भी एक प्रभावी साधन है । मालिका देखकर देखनेवालेके मनमे सभी भारतीयोमे अपने देश और अपने देशवासियोंके प्रति निष्ठा होना चाहिये । देशकी प्रतिज्ञामे अनेक विषय है । एक-एक विषयपर मनोरंजनात्मक मालिका निर्माण करना चाहिये । देशके सभी अध्यात्मिक संतोंने देशकी प्रतिज्ञाके अलग-अलग विषयोंपर प्रवचन करना चाहिये । उदा. सभी भारतीय अपने भाई-बहन है, अपने देशसे प्यार करना है, अपने देशकी समृध्द तथा विविधताओंसे विभूषित परंपराओं पर गर्व करना है, हमेशा प्रयत्न करना है, उन परंपराओं का सफल अनुयायी बननेकी क्षमता कीस प्रकार प्राप्त करना है, अपने माता-पिता, गुरूजनों और बडोंका सम्मान कैसे करना है, हर एक से सौजन्यपूर्ण व्यवहार कैसे किया जाय, अपने देश और अपने देशवासियोंके प्रति निष्ठाका अर्थ क्या है, क्यो निष्ठा रखना है । उनकी भलाई और समृध्दि मे ही मेरा सुख कैसे निहित है, आदि ।

स्वामी मोहनदास, राष्ट्रभक्त    एल-५०७ चंद्रमा-विश्व धायरी पुणे-४११०४१
swamiji.mohandas@gmail.com                        sanatan-sanskar.blogspot.in 

भारतीय संविधानकी उद्देशिका


भारतीय संविधानकी उद्देशिका
हम, भारतके लोग, भारतको एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनानेके लिये, तथा उनके समस्त नागरिकों को
यही संविधानकी उद्देशिकाका महत्व है, कि हम भारतके ही सभी नागरिकभारतको एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न देश बनानेका संकल्प करते है । प्रभुत्वसंपन्नका मतितार्थ है कि भारत अपने आंतरिक एवं बाह्य मामलों में किसी विदेशी सत्ता या शक्ति के अधीन नहीं है ।वह अपने आंतरिक एवं बाह्य विदेश नीति निर्धारित करने के लिए तथा किसी भी राष्ट्र के साथ मित्रता एवं संधि करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र है ।इसकी प्रभुता जनता में निहित है ।समाजवादीका अर्थ है है भारतीय नागरिकोंमे अमीर और गरीबके मध्य अंतर को समाप्त किया जाएगा तथा शोषण के विरुद्ध कदम उठाया जाएगा ।धर्मनिरपेक्षका तात्पर्य है राज्यमे, भारतीय नागरिकोंमे धर्म के नाम पर कोई भेदभाव नहीं होगा । लोकतंत्रात्मक का आशय है जनता का शासन ।भारत में जनता अपने द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन चलाती है जिसे अप्रत्यक्ष लोकतांत्रिक प्रणाली कहा जाता है ।भारत एक गणराज्य है इसका तात्पर्य है भारतमे सर्वोच्च पदाधिकारीकी नियुक्ती भीजनता अपने द्वारा करके शासन चलाती है ।
लेकिन आज परिस्थिती विरूध्द है । १२५कोटी भारतकी जनताको पुरी तरह संविधानकी उद्देशिकाका सखोल ज्ञान नही है, वे ज्ञान कराना भी नही चाहते, वे संविधानकी उद्देशिकाका महत्व भी जानते नही । भारतको एक संपूर्णप्रभुत्वसंपन्न देश बनानेका संकल्प नही करते । सिर्फ अपनेको, अपनेवालोंको अमीर बनाना चाहते है । आज भारत अपने आंतरिक एवं बाह्य मामलों में किसीभी विदेशी सत्ता या शक्ति के अधीन हो रहा है | आज भारतकी प्रभुता जनता में निहित नही है, मुठ्ठीभर लोगोंके हाथमे दिखाई दे रही है |भारतीय नागरिकोंमे अमीर और गरीबके मध्य अंतर को समाप्त किया जाएगा इस प्रकार सिर्फ घोषणा हो रही है, असलमे अमीर ज्यादा अमीर हो रहा है और गरीब ज्यादा गरीब हो रहा है तथा शोषण के विरुद्ध मामुली कदम उठाया जा रहे है |धर्मनिरपेक्ष का तात्पर्य है गलत ढंगसे राज्यमे प्रचलित हो रहा है, भारतीय नागरिकोंमे धर्म के नाम पर सिर्फ भेदभाव नहीं, हत्या और अत्याचार, संपत्तीका नाशहो रहा है |आज जनता का शासन नही है । राजकिय पक्षोंका शासन है । राजकिय पक्षोंका उल्लेख संविधानमे नही है ।
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए,
भारतके नागरिकोंको सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्यायदेनेके लिये यह संविधान बनाया है ।सामाजिक क्षेत्रमे आर्थिक क्षेत्रमे और राजनैतिक क्षेत्रमे भारतके सभी नागरिकोंको समान संधी देनेके लिये यह संविधान बनाया है । विचार और अभिव्यक्तिका स्वातंत्र्य देनेके लिये यह संविधान बनाया है ।विवीध धर्म और उपासना की स्वतंत्रता देनेके लिये यह संविधान बनाया है ।भारतके प्रत्येक नागरिकको प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए यह संविधान बनाया है ।
लेकिन आज परिस्थिती विपरित है । आज समाजमे हर आदमीको काम नही है, आर्थिक विषमता है, राजकिय क्षेत्रमे वंशवाद ही दिखाई दे रहा है । विचार और अभिव्यक्तिका स्वातंत्र्य पूर्णत: नही है । कोई फिल्म निर्माताने फिल्म बनाई तो मत्सरभावसे फिल्म रोकनेका आंदोलन किया जाता है, शासन व्यवस्थाभी कुछ नही करती, ये क्या अभिव्यक्तिका स्वातंत्र्य है ? न्यायव्यवस्था इतनी थीमी है, कि कोई संस्थानमे केमीकल स्फोट होनेके २० साल बाद बेकसुर मजदूरोंको न्याय मिलता है । धर्म-धर्ममे समाज बट गया है, किसी-किसीने स्वार्थसे समाज बटवाया है, और नागरिककोंमे शत्रुता निर्माण की गयी है  । आज १२०कोटी भारतकी जनताको प्रतिष्ठाप्राप्त नही हो रही है । केवल अमीरोंको ही प्रतिष्ठाप्राप्त हो रही है । अवसर की समता नही है ।
तथा उन सबमे, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्रकी एकता और अखंडता सुनिश्चित करानेवाली, बंधुता बढानेके लिये,
भारतके सभी नागरिकोंको व्यक्तिमत्वका सन्मान देनेके लिये यह संविधान बनाया है । हर नागरिकको उचित मान देनेके लिये यह संविधान बनाया है । राष्ट्रकी एकता और अखंडता सुनिश्चित करने के लिये यह संविधान बनाया है । भारतमे अनेक प्रांत है, अनेक भाषा है, फीर भी अनेकतामे एकता प्रदान करनेके लिये यह संविधान बनाया है । और भारतके सभी नागरिकोंमे बंधुता बढानेके लिये यह संविधान बनाया है । १२५कोटी हर नागरिकको आपसमे बंधुभाव निर्माण करनेके लिये यह संविधान बनाया है । देशकी भौगोलिक अखंडताकी रक्षा करनेके लिये यह संविधान बनाया है ।
लेकिन आज परिस्थिती विपरित है । भारतके सभी नागरिकोंमे एक-दूसरेको सन्मान देनेकी आदत नही है । बडोंका आदर करना, छोटोंपर दया करना सिखाया ही नही है । नागरी शिक्षित नागरिक गावके अशिक्षितको नीचा देखता है । अमीर गरीबोंका तिरस्कार करते है । संपूर्ण भारतमे राष्ट्रभाषाका सन्मान नही है, साऊथमे हिंदी भाषाकी आजभी अवहेलना हो रही है । काश्मिरमे थोडा भुभाग आजभी दुसरे देशके कब्जेमे है । आज सगा भाई-भाई भी एक दुसरेकी हत्या करता है, तो हिंदु-मुस्लिम भाई-भाई कैसे होगे ?
दृढ़ संकल्प होकर इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
हम भारतके ही सभी नागरिक अटल संकल्प करके इस संविधान को अंगीकृत करते हैं, अधिनियमित करते हैंऔर आत्मार्पित करते हैं। हम भारतके सभी नागरिक इस संविधान को समजते है, चिंतन करते है, देशकी सर्वोच्च संसदभवनमे विधिवत नियमित करते हैंऔर खुद्को समर्पित करते है । यह संविधानके उद्देशिकाकी भाषा अभिनव है ।
लेकिन आज परिस्थिती पूर्णत: विपरित है । हम भारतके कोईभी नागरिकने संविधानकी उद्देशिकाको अंगीकृत करनेका अटल संकल्प किया ही नही है,  संविधानकी उद्देशिकाको पढा भी नही है, समजा भी नही है, चिंतन तो दूर की बात  है । मुझे संभ्रम है, की जिसने यह संसदभवनमे विधिवत नियमित किया, उन्होने संविधानके उद्देशिकाको पुर्णत: जाना है क्या ?, चिंतन किया है ? अगर किया होता तो काश्मिरका (देशकी प्रभुत्वसंपन्नता और अखंडता) प्रश्न देशके बाहर सुलझानेका प्रयास नही करते । एक गलतीका और कितने सालोतक देशको सामना करना पडेगा इसीपर भी चिंतन करनेकी आवश्यकता है ।



भारतीय संविधानकी उद्देशिका विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। यह उद्देशिका संविधान का सार है; और यह संविधान की आत्मा भी हैं। यह उद्देशिका संविधानके लक्ष्य प्रकट करती है; संविधान का दर्शन भी इसके माध्यम से प्रकट होता है।भारत के समस्त नागरिकोंने भारतीय संविधानकी उद्देशिकाका अवश्य अध्ययन करना चाहिये ।क्योंकि अपने देशका व्यवहार किसके आधारपर चल रहा है, चलना चाहिये, इसकी जानकारी भारत के समस्त नागरिकोंने आत्मसात करना चाहिये, जैसे अपना जीवन किसके आधारपर चल रहा है, चलना चाहिये, आदि जानकारी हर आदमी बडे ही उत्साहसे कर लेते है ।लोकसभा और विधानसभा के लिये सही उमेदवार चुननेके लिये भी मतदारोंको संविधानकी उद्देशिकाका ज्ञान आवश्यक है । संविधानका पालन सांसदोंके उपर ही निर्भर होता है । इसलिये मतदारोंने संविधानकी उद्देशिकाको समज लेना चाहिये । चिंतन करना चाहिये ।
इसलिये विशेषत: सभी राजकिय नेताओंने, सांसदोंने भारतीय संविधानकी उद्देशिकाका अवश्य अध्ययन करना चाहिये ।अपने-अपने मतदार-क्षेत्रके समाजका, अपने-अपने मतदारोंका भी प्रबोधन कराना चाहिये । यही असलमे इनकी ही जिम्मेवारी है । सभी भारतीयोंकोभारतीय संविधानकी उद्देशिकाका अध्ययन करवाना यही तो राजकिय नेताओंकी राष्ट्रसेवा है ।सभी शिक्षणक्षेत्रके आधिकारींओने शैक्षणिक अभ्यासक्रममे संविधानकी उद्देशिकाकाविचारमंथन करना चाहिये । विद्यार्थीयोंमे संविधानकी उद्देशिका ज्ञान किस प्रकार जागृत होगा इसीपर ध्यान देना चाहिये । सिर्फ शब्दोंकी कवायत तो बहोत सालोंसे चल रही है, जो केवल निरर्थक है । संविधानकी उद्देशिकाका सखोल ज्ञान विद्यार्थीदशामे ही होना चाहिये । इसी प्रकार बडा कदम ऊठाना चाहिये । निर्वाचन आयोगका भी इस प्रबोधनमे काफी महत्त्वपूर्ण सहभाग होना चाहिये । मतदान जागृती अभियानकी तरह निर्वाचन आयोगने ही भारत के समस्त नागरिकों को भारतीय संविधानकी उद्देशिकाका प्रबोधन करना चाहिये, क्योंकि सही मतदान करनेके लिये भारतीय संविधानकी उद्देशिकाका सखोल ज्ञान अति महत्त्वपूर्ण है । संविधानकी उद्देशिकाका उद्देश समस्त नागरिकोंमे राष्ट्रभक्ती जागृत होना ही है ।  राष्ट्रभक्तीसे ही  संविधानकी उद्देशिकाका सही अर्थ समजमे आयेगा । अंतत: सभी भारतीय इसका गहराईसे जरूर विचार करे । जितना जल्दी करे उतना ही सबके लिये, देशके लिये लाभदायी है ।

स्वामी मोहनदास,राष्ट्रभक्त    एल-५०७ चंद्रमा-विश्व धायरी पुणे-४११०४१
swamiji.mohandas@gmail.com sanatan-sanskar.blogspot.in 
भारतका संविधान
राज्य, किसीनागरिककेविरुद्धकेवलधर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थानयाइनमेंसेकिसीकेआधारपरकोईविभेदनहींकरेगा। (समताकाअधिकार१५.)

''राज्य'' केअंतर्गतभारतकीसरकारऔरसंसदतथाराज्योंमेंसेप्रत्येकराज्यकीसरकारऔरविधान-मंडलतथाभारतकेराज्यक्षेत्रकेभीतरयाभारतसरकारकेनियंत्रणकेअधीनसभीस्थानीयऔरअन्यप्राधिकारीहैं। (साधारणपरिभाषा१२)

प्रत्येकराष्ट्रपतिऔरप्रत्येकव्यक्ति, जोराष्ट्रपतिकेरूपमेंकार्यकररहाहैयाउसकेकृत्योंकानिर्वहनकररहाहै, अपनापदग्रहणकरनेसेपहलेभारतकेमुख्यन्यायमूर्तियाउसकीअनुपस्थितिमेंउच्चतमन्यायालयकेउपलब्धज्येष्ठतमन्यायाधीशकेसमक्षनिम्नलिखितप्ररूपमेंशपथलेगायाप्रतिज्ञानकरेगाऔरउसपरअपनेहस्ताक्षरकरेगा, अर्थात्: --''मैं, ईश्वरकीशपथलेताहूँ-किमैंश्रद्धापूर्वकभारतकेराष्ट्रपतिकेपदकाकार्यपालनसत्यनिष्ठासेप्रतिज्ञानकरताहूँ। (अथवाराष्ट्रपतिकेकृत्योंकानिर्वहन) करूंगातथाअपनीपूरीयोग्यतासेसंविधानऔरविधिकापरिरक्षण, संरक्षणऔरप्रतिरक्षणकरूँगाऔरमैंभारतकीजनताकीसेवाऔरकल्याणमेंनिरतरहूँगा।'' (अध्याय अनुच्छेद६०)

संघकीकार्यपालिकाशक्तिराष्ट्रपतिमेंनिहितहोगीऔरवहइसकाप्रयोगइससंविधानकेअनुसारस्वयंयाअपनेअधीनस्थअधिकारियोंकेद्वाराकरेगा (अध्याय अनुच्छेद ५३.)

राष्ट्रपतिकोसहायताऔरसलाहदेनेकेलिएएकमंत्रि-परिषदहोगीजिसकाप्रधान, प्रधानमंत्रीहोगाऔरराष्ट्रपतिअपनेकृत्योंकाप्रयोगकरनेमेंऐसीसलाहकेअनुसारकार्यकरेगा। (अध्याय अनुच्छेद ७४.)

जबसंविधानकेओंतक्रमणकेलिएराष्ट्रपतिपरमहाभियोगचलानाहो, तबसंसदकाकोईसदनआरोपलगाएगा। (अध्याय अनुच्छेद ६१.)